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अब घरों में कम और सड़क किनारे ज्‍यादा नजर आ रहा खुद टूटकर परिवारों को जोड़ता गुल्‍लक

कुछ साल पहले हर घर में मिट्टी का गुल्‍लक होता था। बच्‍चों का इससे विशेष लगाव होता था मगर आधुनिक समय में गुल्‍लक की जरुरत कम महसूस होती है। अब सड़क किनारे रखे मिट्टी के गुल्‍लक लोग कम ही खरीदते हैं।

By Manoj KumarEdited By: Updated: Thu, 23 Jun 2022 11:44 AM (IST)
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हिसार में एचएयू के पास सड़क किनारे रखे रंग बिरंगे गुल्‍लक

मनोज कौशिक, हिसार। कमरे की स्‍लेब के कोने में रखा रहता। छोटे नन्‍हें हाथ जब सिक्‍के जुटा मुझमें डालते और कान के पास ले जाकर खनक सुनते तो चेहरे पर मुस्‍कान छा जाती। जैसे-जैसे सिक्‍कों की संख्‍या बढ़ती वैसे-वैसे उस योजना की चर्चा भी जोरों पर होती जिसकी पूरे होने की उम्‍मीद मुझसे जुड़ी होती। परिवार में घट रही हर छोटी बड़ी आर्थिक घटना का मैं गवाह होता। सब कुछ चुपचाप देखता रहता। मगर एक दिन जब मैं टूटता तो बिखर कर भी परिवार की खुशियों को समेट लेता।

मैं गुल्‍लक हूं। भले ही मिट्टी से बना हूं। मगर न जाने भावुक कर देने वाली कितनी ही कहानियाें को महसूस कर चुका हूं। बच्‍चों की जिद पर पापा की जेब से निकली चिल्‍लर मेरी खुराक होती। घर में बाकी सदस्‍यों की तरह ही मेरी भी अहमियत थी, क्‍योंकि बड़े भले ही मुझे हल्‍के में ले लेते मगर बच्‍चे मुझे कभी नहीं भूलते। मेरे भरने तक कितनी ही बार इनका धर्य जवाब दे जाता, मगर इस जिद्दोजहद में जीत मेरी ही होती। मगर अब मेरा पेट कम भरता है, मैं अकेला सा पड़ गया हूं। मेरी ओर ध्‍यान भी अब कम जाता है। मैं टूटने का भी इंतजार करता रहता हूं।

बदलते दौर के साथ मेरी जरूरत कम महसूस होने लगी। अब मैं हर घर में देखने को नहीं मिलता। बच्‍चों की जमापूंजी अब मेरी बजाय बैंक या दूसरे माध्‍यम से सहेजी जाती है। अब घरों की बजाय मैं सड़क किनारे ज्‍यादा नजर आता हूं। मिट्टी के घड़े खरीदते हुए किसी-किसी की नजर ही मुझ पर पड़ती है। बस अब इसी  इंतजार में रहता हूं कि कोई फिर से मुझे अपने पुराने घर का हिस्‍सा बना ले। मैं फिर से टूट जाऊं और परिवारों को जोड़ दूं। वहीं उस शख्‍स के घर का भी चूल्‍हा जले जिसने मुझे इसी उम्‍मीद से सड़क किनारे ला रखा था।

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