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हरियाणा में गायब हो रहे हैं उम्रदराज दरख्त, पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजने की रवायत भूल रहा इंसान

मानव को खुद की घटती औसत आयु की तो चिंता है मगर जिन पेड़ों का इंसान से सौ-सौ साल या फिर इससे भी ज्यादा अवधि तक नाता रहता था वह अब टूट रहा है। ये विशाल और उम्रदराज दरख्त एक तरह से आक्सीजन का बड़ा बैंक होते थे

By Manoj KumarEdited By: Updated: Sat, 15 May 2021 09:41 AM (IST)
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पीढ़ी दर पीढ़ी पेड़ों को सहेजने की रवायत को इंसान भूल रहा है।
बहादुरगढ़, जेएनएन। गांवों की धरा से अब विशालकाय दरख्त (पेड़) गायब होते जा रहे हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी इन पेड़ों को सहेजने की रवायत को इंसान भूल रहा है। मानव को खुद की घटती औसत आयु की तो चिंता है, मगर जिन पेड़ों का इंसान से सौ-सौ साल या फिर इससे भी ज्यादा अवधि तक नाता रहता था, वह अब टूट रहा है। ये विशाल और उम्रदराज दरख्त एक तरह से आक्सीजन का बड़ा बैंक होते थे, मगर इनका लुप्त होना ही इंसानी जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह तो हर कोई जानता है कि पेड़ ही मानव जीवन का आधार हैं।

ये इंसान को प्राणवायु देते हैं। यदि दो-तीन दशक पीछे जाएं तो हर गांव में बरगद, नीम, पीपल, आम, पिलखन व अन्य कई पारंपरिक प्रजातियों के विशालकाय पेड़ हर गांव में बहुतायत में होते थे, जो बड़ा आक्सीजन बैंक थे। आबादी के बीच से लेकर खेतों व नहरों की मेड़, रास्तों के किनारों और पंचायती भूमि पर इस तरह के पेड़ न केवल वहां की कई पीढ़ियों के जीवन की यादों को समेट रहते थे बल्कि बहुत से परिंदों का भी आसरा बनते थे। मगर धीरे-धीरे ये गायब हो गए। बहादुरगढ़ के अनेकों गांवों में अब ऐसे पुराने पेड़ नहीं बचे हैं। या तो वे देखभाल के अभाव में खत्म हो या फिर इंसानी इच्छाओं के कारण खत्म कर दिए गए।

विशालकाय पेड़ देते रहे हैं कई फायदे

जिन गांवों में आज चुनिंदा ऐसे पेड़ अगर बचे हैं, तो उनको देखकर यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि इनकी कितनी महत्ता रही है। ऐसे पेड़ों के नीचे बेसहारा पशुओं का झुंड आज भी मिल जाएगा। ऐसे पेड़ ही इनका आसरा हैं। टहनियों पर काफी परिंदों के घरौंदे भी मिलेंगे। ऐसे पेड़ों के आसपास दूसरे पेड़ स्वत: ही उग आते हैं, क्योंकि परिदे बीजों को छितराते हैं। पुराने पेड़ों के जरिये ही इंसान को यह प्रेरणा मिलती रहती है कि इनको सहेजे रखना जरूरी है, क्योंकि एक-एक पड़े बड़ी मात्रा में इंसान को आक्सीजन देते हैं।

बहादुरगढ़ के लोहारहेड़ी गांव में पर्यावरण के लिए काम कर रही बाबा दूधाधारी सेवा समिति के प्रधान संजीव तहलान ने बताया कि उनके गांव में सात-आठ पेड़ ही ऐसे बचे हैं, जिनकी उम्र 100 साल के आसपास है। इनमें से एक पेड़ तो दो दिन पहले आसमानी बिजली गिरने से ध्वस्त हो गया। इसमें तो कोई कुछ नहीं कर सकता, लेकिन बाकी पेड़ों को बचाए रखने के लिए इंसानी स्तर पर जो कुछ हो सकता है, वह प्रयास जरूरी है। संजीव कहते हैं ये विशालकाय पेड़ कई वृक्षों के बराबर होते हैं, जो हमें ज्यादा आक्सीजन प्रदान करते हैं।

 प्रकृति से नजदीकी ही दे सकती है शांति और खुशहाली

पर्यावरण के लिए लगातार काम कर रही बहादुरगढ़ के वैश्य बीएड कालेज की प्राचार्या डा. आशा शर्मा का कहना है कि इंसान को सच्ची शांति और खुशहाली प्रकृति के नजदीक रहने पर ही मिल सकती है। हमारे घर-आंगन और आसपास में हरियाली का होना बहुत जरूरी है। हमें अपनी वनस्पति विरासत को भी बचाए रखना होगा। जहां भी जगह मिले, वहां पर पेड़ लगाना होगा। हर किसी को इसके लिए समर्पित होना होगाा। अगर धरा पर पेड़ ही नहीं रहेंगे, तो बाकी कुछ भी कैसे रहेगा। जहां पर स्वच्छता है, प्रदूषण नहीं है, वहां पर बीमारियां भी दूर रहती है। पेड़ों की संख्या बढ़ाकर और अपने घर के आंगन में आक्सीजन देने वाले पौधों को सहेजकर हम अच्छा स्वास्थ्य पा सकते हैं।

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