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फिरोजशाह महल के सामने बना ऐतिहासिक भवन गुजरी नहीं गूजर महल है

इसकी पुष्टि हिसार के एक जिला मजिस्ट्रेट की तरफ से आगरा स्थित चीफ इंस्पेक्टर ऑफ आर्काइव्स को लिखे पत्र से होती है जिसमें गूजर महल के पुनरुद्धार के लिए धन की व्यवस्था का अनुरोध किया गया था। उन्होंने कहा कि किसी लड़की और शहजादे के प्रेम की कहानियां देश में कई स्थानों पर मिलती हैं जिनमें हैदराबाद का गोलकुंडा किला भी शामिल है। ऐसी ही और कई घटनाओं का ब्योरा राजबीर देसवाल ने वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब हिसार द्वारा आयोजित वेबिनार में दिया। वेबिनार में प्रदेश के विभिन्न शहरों से 65 व्यक्तियों ने भाग लिया।

By JagranEdited By: Updated: Thu, 15 Oct 2020 08:41 AM (IST)
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फिरोजशाह महल के सामने बना ऐतिहासिक भवन गुजरी नहीं गूजर महल है

जागरण संवाददाता, हिसार : हिसार में करीब 650 साल पुराने फिरोजशाह महल के सामने जिस ऐतिहासिक भवन को आम तौर पर गुजरी महल के नाम से जाना जाता है, पुराने रिकॉर्ड में उसका नाम गूजर महल दर्ज है। जाने माने लेखक व पुलिस विभाग के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक राजबीर देसवाल ने कहा कि इसकी पुष्टि हिसार के एक जिला मजिस्ट्रेट की तरफ से आगरा स्थित चीफ इंस्पेक्टर ऑफ आर्काइव्स को लिखे पत्र से होती है, जिसमें गूजर महल के पुनरुद्धार के लिए धन की व्यवस्था का अनुरोध किया गया था। उन्होंने कहा कि किसी लड़की और शहजादे के प्रेम की कहानियां देश में कई स्थानों पर मिलती हैं, जिनमें हैदराबाद का गोलकुंडा किला भी शामिल है। ऐसी ही और कई घटनाओं का ब्योरा राजबीर देसवाल ने वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब हिसार द्वारा आयोजित वेबिनार में दिया। वेबिनार में प्रदेश के विभिन्न शहरों से 65 व्यक्तियों ने भाग लिया। करनाल में हैजा फैलने के कारण छावनी अंबाला शिफ्ट की

राजबीर देसवाल हरियाणा के इतिहास और संस्कृति के चलते फिरते इंसाइक्लोपडिया हैं। उन्होंने बताया कि करनाल शहर में आज भी विद्यमान हांसी रोड और मेरठ रोड का नाम इसलिए पड़ा कि हांसी और मेरठ में सन 1857 के विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने फौजें इन्हीं मार्गो द्वारा करनाल छावनी से भेजी थी। 1858 में करनाल में हैजा फैलने के कारण छावनी अंबाला शिफ्ट कर दी गई थी। करनाल के इंद्री इलाके में मघ जाति के लोग अपने को बताते हैं यूनानी

एक और नई जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि करनाल के इंद्री इलाके में मघ जाति के लोग रहते हैं, जो अपने को यूनानी मूल के बताते हैं। इस जाति के सभी पुरुषों की लंबाई छह फुट से ज्यादा है। समझा जाता है कि सिकंदर के हमले के बाद भारत और यूनान में बने राजनैतिक संबंधों के तहत एक समय तीन हजार यूनानी कन्याएं भी मगध आई थीं और तब से ये यहीं बसे हुए हैं। मगध के नाम से इनका नाम भी मघ पड़ गया। ब्राह्मण परिवार को जाती है चादर

उन्होंने कहा कि सोनीपत में मामा-भांजा मजार के लिए आज भी परंपरानुसार पहली चादर खेड़ी ब्राह्मणा गांव के एक ब्राह्मण परिवार से आती है।

उन्होंने कहा कि हरियाणा में अनेक युद्ध होते रहने के कारण लोगों का बोलचाल का ढंग भी ठेठ किस्म का है। कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध से लेकर, तरावड़ी में पृथ्वीराज व मोहम्मद गौरी के दो युद्ध, पानीपत की तीन लड़ाइयां और करनाल में नादिर शाह की लड़ाई व लूटपाट के कारण प्रदेश का जीवन अक्सर अस्त-व्यस्त रहा। देसवाल ने हरियाणा के इतिहास के अलावा खान पान, वेशभूषा, जेवर और मनोरंजन व संगीत की विधाओं का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जींद के एक शासक को शास्त्रीय संगीत इतना पसंद था कि उसने नौ गांवों के नाम रागों के नाम पर रख दिए। राजबीर देसवाल 4000 से ज्यादा लेख लिख चुके हैं

डा. प्रज्ञा कौशिक व डा. जेके डांग ने राजबीर देसवाल का परिचय देते हुए कहा कि वे पत्र पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख लिखते रहते हैं, जिनकी संख्या चार हजार के पार पहुंच चुकी है। उन्होंने 20 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें हरियाणवी जीवन को उल्लेखित करती तीन पुस्तकें भी शामिल हैं। एक पुस्तक अंटा शीर्षक से उनके अपने गांव अंटा पर आधारित है। हरियाणा ह्यूमर और लटके झटके इनकी अन्य दो पुस्तकें हैं।

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