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एक परिवार की तीसरी पीढ़ी कर रही देश सेवा, पाक के गांव को कब्जे में लेने में निभाई थी अह्म भूमिका

सेना ने पाकिस्तान के एतिहासिक जरपाल गांव को अपने कब्जे में कर लिया। इस कार्रवाई में नायब सूबेदार हरिसिंह ने दुश्मन द्वारा बिछाई गई माइन फील्ड मे अपने बाएं पैर को भी कुर्बान किया था। इन्होंने राष्ट्र के लिए नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति समर्पण दिखाया

By Manoj KumarEdited By: Updated: Mon, 15 Aug 2022 02:14 PM (IST)
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झज्‍जर जिले का एक परिवार तीन पीढि़यों से सेना में है और बहुमूल्‍य योगदान दे रहा है
संवाद सूत्र, साल्हावास : 15 दिसंबर सन 1971 को नायब सूबेदार हरि सिंह पश्चिमी मोर्चे पर बसंतर नदी के पार दुश्मन के क्षेत्र में भारतीय सेना में ग्रनेडियर्स रेजिमेंट की तीसरी बटालियन की चार्ली कम्पनी मे एक प्लाटून की कमान संभाल रहे थे। जब वे अपनी प्लाटून का नेतृत्व करते हुए लक्ष्य के करीब पहुंचे तो उनकी प्लाटून पहले से ही घात लगाकर बैठे दुश्मन के मशीन गन की फायर की चपेट में आ गई थी, तब नायब सूबेदार हरी सिंह ने अकेले ही दुश्मन की मशीन गन पर हमला किया और मशीन गन के साथ दो कैदियों को पकड़ लिया।

इसके बाद दुश्मन ने 17 दिसंबर, 1971 की सुबह पुनः भारी तोपखाने पर गोलाबारी करना आरंभ कर दिया। जिसके प्रतिउत्तर मे नायब सूबेदार हरिसिंह और उनकी प्लाटून ने जवाबी हमला किया और वह एक मोर्चे से दूसरे मोर्चे की ओर बढ़कर दुश्मन की गोलीबारी का सामना करते हुए अपने लोगों को तेजी से लड़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे और दुश्मन को पुनः हराया। इस युद्ध में इनकी कंपनी पर एक के बाद एक पांच हमले होते रहे परंतु इनकी कंपनी के वीरों ने मिलकर हर हमले को विफल कर दिया।

साथ ही पाकिस्तान के एतिहासिक जरपाल गांव को अपने कब्जे में कर लिया। इस कार्रवाई में नायब सूबेदार हरिसिंह ने दुश्मन द्वारा बिछाई गई माइन फील्ड मे अपने बाएं पैर को भी कुर्बान किया था। इन्होंने राष्ट्र के लिए नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति समर्पण दिखाया तथा इनकी इस बहादुरी को देखते हुए भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने इन्हें सेना मेडल से अलंकृत किया गया। सन 1985 में नायब सूबेदार हरि सिंह प्रोन्नति प्राप्त करके सूबेदार मेजर ऑनरेरी कैप्टन के पद से सेना से सेवानिवृत्त हुए।

गांव साल्हावास जिला झज्जर के रहने वाले चौधरी चंदगीराम जाखड़ किसान के घर सन 1936 मे बेटे हरिसिंह का जन्म हुआ। हरिसिंह 15 वर्ष की अल्पायु में ही सन 1951 में नसीराबाद के ग्रनेडियर्स रेजिमेंट सेंटर की बच्चा कंपनी में भर्ती हुए तथा 34 वर्ष की सेवा के उपरांत सन 1985 में सूबेदार मेजर आनरेरी कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए। वे आजादी के बाद के तीनों युद्धों मे ग्रनेडियर्स रेजिमेंट की तीसरी बटालियन में तैनात रहे। इन्होंने 1962 भारत-चीन युद्ध नेफा (अरूणाचल प्रदेश) में, 1965 भारत-पाक युद्ध सादेवाला (राजस्थान) में तथा 1971 भारत-पाक युद्ध में सांबा सैक्टर के बसंतर नदी को पार करके पाकिस्तान के अंदर 25 किलोमीटर एतिहासिक गांव जरपाल को फ़तेह किया।

इस युद्ध में राष्ट्रपति द्वार इन्हें सेना मेडल से अलंकृत किया गया। वे हरियाणा स्टाइल कबड्डी के अपने समय के उत्तम खिलाड़ी भी रहे हैं। सन 2010 मे इनका निधन हो गया था। परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इनका बड़ा बेटा सतीश जाखड़ राष्ट्रपति अंगरक्षक से, छोटा बेटा जयभगवान जाखड़ इन्ही की रेजिमेंट से सेवानिवृत्त हो चुके है तथा मझला बेटा संजय जाखड़ दिल्ली सरकार में अध्यापक है। तीसरी पीढ़ी में सुपौत्र अनुज जाखड़ कश्मीर में बार्डर पर ग्रनेडियर्स की दूसरी बटालियन में तैनात है।

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