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धातु से स्‍टेटस को जोड़कर देखने की बात हुई पुरानी, फिर घर लौटने लगी मिट्टी के बर्तनों की महक

इतिहास अपने आप को दोहराता है। यह कहावत कोरोना काल में सही साबित हुई। जब रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और पाैषक तत्‍वों की चर्चा चली तो फिर से मिट्टी के बर्तनों की ओर लोगों का रुझान बढ़ने लगा। अब हर जगह मिट्टी से बने बर्तनों की क्रोकरी उपलब्‍ध है।

By Manoj KumarEdited By: Updated: Tue, 12 Jul 2022 06:34 PM (IST)
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बाजार में उपलब्‍ध मिट्टी से बने बर्तन, जिनमें बने खाने की खुशबू अलग ही अहसास कराती है

मनोज कौशिक, हिसार। एक वक्‍त था जब संसाधनों का अभाव था और प्राकृतिक वस्‍तुओं को प्रयोग करके ही जीवन यापन होता था। वक्‍त के साथ ज्ञान में विज्ञान का समावेश हुआ और रोजमर्रा में प्रयोग होने वाली वस्‍तुओं में परिवर्तन आ गया। यही बदलाव खाना बनाने के लिए प्रयोग होने वाले बर्तनों में भी देखने को मिला। मिट्टी की जगह धातु से बने बर्तन हर जगह देखने को मिलने लगे। दिखने में सुंदर, सालों साल चलने में सक्षम तो टूटने फूटने की चिंता भी नहीं रही। धातु की कीमत के अुनसार ही इंसान की हस्‍ती को भी जोड़कर देखा जाता। मगर इतिहास अपने आप को दोहराता है। यह कहावत कोरोना काल में सही साबित हुई।

जब रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और पाैषक तत्‍वों की चर्चा चली तो एक बार फिर से मिट्टी के बर्तनों की ओर लोगों का रुझान बढ़ने लगा। यही वजह है कि अब हर जगह मिट्टी से बने बर्तनों की क्रोकरी उपलब्‍ध होती है। सेहतमंद रहने के लिए ऐसी ललक जगी कि मिट्टी के घट से लेकर रसोई में प्रयोग किए जाने वाले बर्तन भी अब घरों में देखने को मिल रहे हैं। हालांकि एक बड़ा अंतर देखने को जरूर मिला। अब मिट्टी के बर्तनों को व्‍यक्ति के स्‍टेटस से नहीं बल्कि जागरूकता से जोड़कर देखा जा रहा है।

परांत, तवा, कुंडी, ट्रे व कप भी उपलब्‍ध

बाजार में आटा गूंथने के लिए परांत, रोटी बनाने के लिए तवा और ट्रे व कप तक उपलब्‍ध हैं। चटनी कूटने के लिए अब कुंडी भी पत्‍थर की नहीं बल्कि मिट्टी की ही पसंद की जा रही है। गर्मियों में मिट्टी के मटके पोश इलाकों में रहने वाले लोग भी चाव से खरीद रहे हैं। कुंभकारों ने भी बदलते वक्‍त के साथ खुद को बदल लिया है और मटकों में टोंटी भी लगा दे रहे हैं ताकि पानी भी किसी वाटर प्‍यूरीफाई की तरह सीधे तौर पर ही लिया जा सके। हिसार में एचएयू के पास मिट्टी के बर्तन बेचने वाले जगदीश व उनकी पत्‍नी संतोष ने कहा कि कोरोना काल के बाद फिर से पुराना दौर लौट रहा है।

अपनी ओर खींच ले रही कुल्‍लड़ चाय

मिट्टी के बर्तनों के साथ कुल्‍लड़ चाय का ट्रेंड भी बढ़ रहा है। कुल्‍लड़ में डाली गई चाय की चुस्‍की के साथ ही मिट्टी की खुशबू भी दिमाग को पुराने दौर का अहसास करा रही है। उत्‍तर भारत के अन्‍य राज्‍यों की तरह अब हरियाणा में भी कुल्‍लड़ चाय की मांग होने लगी है। प्‍लास्टिक के डिस्‍पोजल कप में चाय पीना नुकसानदायी है ये सब जानते हैं और एक जुलाई से सिंगल यूज प्‍लास्टिक भी बैन हो रहा है ऐसे में कुल्‍लड़ चाय का भविष्‍य और सुनहरा होने जा रहा है।

धातु से बने बर्तनों में खाना पकाना नुकसानदायी

केमिकल एक्‍सपर्ट विकास शर्मा के अनुसार धातु से बने बर्तन, खासतौर पर पर पीतल, सिल्‍वर व स्‍टील, तांबे के बर्तन में खाना पकाने से नुकसान होता है। तांबे के बर्तन में पानी पीने से भले ही लाभ मिलता हो मगर खाना पकाने से तांबे समेत अन्‍य धातुओं के बर्तन में केमिकल रिएक्शन होता है। जिसके कारण फूड प्‍वाइजनिंग से लेकर अन्‍य तरह की दिक्‍कत हो सकती है। पीतल के बर्तन में पकाए खाने को देरी से प्रयोग करने पर लिवर डैमेज तक हो सकता है। मिट्टी से बने बर्तनों में बने खाने से कोई नुकसान नहीं होता बल्कि खाने की न्‍यूट्रिशियन वैल्‍यू बढ़ जाती है।

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