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रोजाना सीमित समय में ही करें मोबाइल का इस्तेमाल, अभिभावक बच्चों के सामने बनें रोल माडल

अधिकतर समय मोबाइल खासकर इंटरनेट मीडिया पर बीतता है। छोटे बच्चे भी मोबाइल के आकर्षण से अछूते नहीं है जिसका उनके शरीर खासकर आंखों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। हम मोबाइल का प्रयोग बंद तो नहीं कर सकते परंतु इसका प्रयोग सीमित कर सकते हैं।

By Manoj KumarEdited By: Updated: Sun, 11 Sep 2022 04:18 PM (IST)
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हेलो जागरण कार्यक्रम में पाठकों से रूबरू हुए मनोविज्ञानी डा. रविंद्र पुरी, बोले मोबाइल के आदि होने से बचें

जागरण संवाददाता, सिरसा : आज मोबाइल जीवन का अहम अंग बन गया है। इसके बिना हम रह नहीं सकते। परंतु यह भी सच्चाई है कि लोग मोबाइल के आदि होते जा रहे हैं। उनका अधिकतर समय मोबाइल खासकर इंटरनेट मीडिया पर बीतता है। छोटे बच्चे भी मोबाइल के आकर्षण से अछूते नहीं है, जिसका उनके शरीर खासकर आंखों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। हम मोबाइल का प्रयोग बंद तो नहीं कर सकते परंतु इसका प्रयोग सीमित कर सकते हैं।

इसका प्रयोग इंटरनेट मीडिया के लिए कम प्रयोग करें। यह विचार हेलो जागरण कार्यक्रम में मनोविज्ञानी डा. रविंद्र पुरी ने कहे। दैनिक जागरण के पाठकों के सवालों के जबाव देते हुए डा. पुरी ने मोबाइल खासकर डिजिटल स्क्रीन से खुद को दूर रखने के टिप्स दिए।

कंगनपुर रोड निवासी सावित्री व सुमन ने पूछा कि उनके बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल अधिक करते हैं, कहते हैं स्कूल का काम है। इसके जबाव में डा. पुरी ने कहा कि कोविड में मोबाइल की आवश्यकता ज्यादा थी परंतु अब फिजिकल क्लासे लग रही है। बच्चों में मोबाइल देखने की आदत हो गई है। बहाना बनाकर मोबाइल लेते है।

बच्चों को अगर मोबाइल देना भी है तो उन्हें समझाएं कि आप दो घंटे पढ़ाई करोगे तो आपको आधा घंटे मोबाइल मिलेगा। मोबाइल पर आए होमवर्क को अपनी कापी पर उतारने की आदत डालें। बच्चे जब मोबाइल प्रयोग करें तो बीच बीच में यह देखते भी रहें कि वे मोबाइल पर कुछ आपत्तिजनक तो नहीं देख रहे। इसके साथ ही खुद भी बच्चों के लिए रोल माडल बनें। मोबाइल का इस्तेमाल कम करें।

ऐलनाबाद निवासी युवा ने कहा कि उसे बार बार मोबाइल पर नोटिफिकेशन चेक करने की आदत पड़ चुकी है। इसके जबाव में डा. पुरी ने कहा कि कोई भी अादत हो हम लगातार करते हैं तो हम उसके आदि हो जाते हैं। नोटिफिकेशन को म्यूट कर दें। बार बार मोबाइल का इस्तेमाल आपको बीमार कर सकता है। इंटरनेट मीडिया पर अपना टाइम निश्चित करें कि हमें दिन में इतना समय इंटनेट मीडिया के लिए देना है।

शक्कर मंदोरी निवासी पाठक जय नारायण ने हेलो जागरण कार्यक्रम में मोबाइल व डिजिटल स्क्रीन के मुद्दे को उठाने के लिए सराहनीय बताया। उन्होंने पूछा कि वे मोबाइल का अधिक इस्तेमाल करते हैं जिसके जबाव में मनोविज्ञानी डा. पुरी ने कहा कि हमें यह निश्चित करना है कि हमें फोन का प्रयोग कब क्यों कैसे और कितनी देर करतना है। इंटरनेट मीडिया को बंद करना संभव नहीं है लेकिन उसके लिए समय निश्चित किया जा सकता है।

अध्यापक राकेश भाटिया व डिंग मंडी से हीरालाल ने कहा कि वे अध्यन्न से जुड़े हैं। विभाग के आदेश आते रहते हैं दिनभर मोबाइल से जुड़े रहना पड़ता है।

इसके जबाव में डा. पुरी ने कहा कि संभव हो तो रोजाना करीब एक घंटा ऐसा निश्चित करें जब आप अपने मोबाइल को आफ करके अपने घर पर रख दें और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, परिवार के सदस्यों के साथ बैठें अथवा बाहर घूमने जाएं। शुरूआत में यह आपको मुश्किल लगेगा कि किसी की जरूरी काल आ जाएगी। कोई इमरजेंसी हो जाएगी परंतु धीरे धीरे आप मोबाइल पर निर्भर रहना कम कर देंगे।

डा. पुरी ने कहा कि यह नियम बनाएं कि घर में खाने की टेबल पर मोबाइल का इस्तेमाल कोई न करें। जब पूरा परिवार एक साथ बैठा हो तो मोबाइल व इंटरनेट मीडिया का इस्तेमाल न करें। टीवी देखते समय मोबाइल न देखें और हर रोज कुछ समय ऐसा निश्चित करें जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर आपस में बातें करें, मिलकर बैठे।

एक पाठक ने पूछा कि बच्चे मोबाइल की जिद करते हैं। मारपीट झगड़ा करने लगते हैं। इसके जबाव में डा. पुरी ने कहा कि बच्चा जब ऐसे कदम उठाए तो उसे समझाएं लेकिन मोबाइल न दें। रूठता है तो रूठनें दें। धीरे धीरे उसकी अादत में सुधार हो जाएगा। इसके साथ ही बच्चे के सामने खुद भी मोबाइल का इस्तेमाल सीमित करें। बच्चों को मोबाइल पर गेम खेलने की बजाय खेल के मैदान में , दोस्तों के साथ खेलने के लिए भेजे।

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