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World Zoonoses Day: जूनेटिक बीमारियां पशुओं के संग इंसानों के लिए भी बनींं घातक, खुद अपनी गलती की चुका रहे कीमत

World Zoonoses Day जूनेटिक बीमारियां कुछ वर्षों से तेजी से फैल रही हैं और पशुओं के साथ - साथ इंसानाें को भी चपेट में ले रही हैं। कोराेना जैसी घातक बीमारी भी जूनेटिक रोग ही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए इंंसान ही जिम्‍मेदार हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Wed, 06 Jul 2022 09:15 AM (IST)
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जूनेटिक बीमारियां इंसानों के लिए भी घातक साबित हो रहे है।
हिसार, [वैभव शर्मा]। World Zoonoses Day: जूनोटिक बीमारियां पिछले कुछ वर्षों से काफी बढ़ गई हैं। यह महामारी की रूप ले रही हैं और इंसानों और पशु पक्षियों की मौत का कारण बन रही हैं। इन बीमारियों से कोई भी देश अछूता नहीं है। कोरोना वायरस ने जिस प्रकार से तबाही मचाई इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। दरअसल हम अपनी ही गलतियों की कीमत चुका रहे हैं। जानें इस पर‍ विशेषज्ञों का क्‍या कहना है और वे इस तरह से इस समस्‍या के समाधान में जुटे हैं।  

जंगलों के क्षरण से साल दर साल पांव पसारती जा रही जूनोटिक बीमारियां

हिसार स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) में विज्ञानियों की बड़ी टीम ऐसी ही कई जूनोटिक बीमारियों का समाधान खोजने में जुटी हुई है। एनआरसीई के वरिष्ठ विज्ञानी और भारत सरकार के जूनोटिक बीमारियों के प्रसार पर नियंत्रण के लिए चलाए गए राष्ट्रीय एकल स्वास्थ्य कार्यक्रम (वन हेल्थ) के रीजनल कोआर्डिनेटर डा. बीआर गुलाटी बताते हैं कि जंगलों के अत्यधिक क्षरण से जंगली जानवर अब इंसानों के अधिक संपर्क में आने लगे हैं।

हिसार स्थित एनआरसीई और राष्‍ट्रीय एकल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम के रीजनल काेआर्डिनेटर डा. बीआर गुलाटी। (फाइल फोटो)  

डा. गुलाटी का कहना है कि इन जानवरों में मौजूद वायरस, बैक्टीरिया जूनोटिक रोग बनकर फैल रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। यहां भी इन बीमारियों का प्रसार बढ़ रहा है। यही कारण है कि एकल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत अब मेडिकल टीम और पशु चिकित्सकों की टीम को एक साथ मिलकर काम करना पड़ रहा है। हर सप्ताह मिलने वाले केसों की रिपोर्ट हर सप्ताह दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) को भेजी जा रही है। हरियाणा पंजाब व आसपास के राज्यों के लिए एनआरसीई क्षेत्रीय केंद्र के रूप में यह कार्य कर रहा हैं।

छह जुलाई को ही क्यों मनाते हैं वर्ल्ड जूनोसिस डे

एनआरसीई के वरिष्ठ विज्ञानी डा. बीआर गुलाटी बताते हैं कि वर्ष 1885 में एक पागल कुत्ते ने लड़के को काट लिया था तब वैज्ञानिक लुइस पाश्चर ने पहली बार उस युवक को रेबीज की वैक्सीन लगाई थी। यह पहली वैक्सीन थी जिसका इंसान पर प्रयोग किया गया। इससे उस युवक की जान बच गई। इसी कारण छह जुलाई 1885 के ऐतिहासिक दिन मानते हुए इसे वर्ल्ड जूनोसिस डे के रूप में चुना गया। विश्‍व जूसोसि दिवस पर इस विश्वव्यापी समस्या पर मंथन व नियंत्रण की रणनीति पर चर्चा की जाती है।

क्या होती हैं जूनोटिक बीमारियां

वह रोग जो पशुओं के माध्यम से मनुष्यों में और मनुष्यों से फिर पशुओं में फैलते है उन्हें जूनोसिस या जूनोटिक रोग कहा जाता है। यह रोग 2300 ईसा पूर्व से चली आ रही है। जूनोटिक संक्रमण प्रकृति या मनुष्यों में जानवरों के अलावा बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी के माध्यम से फैलता है। जूनोटिक रोगों में मलेरिया, एचआइवी एडस, इबोला, कोरोना वायरस रोग, रेबीज आदि शामिल हैं। इन बीमारियों में खास यह है कि यह समय के हिसाब से खुद को म्यूटेट करते रहते हैं। ऐसे में एक वायरस पर प्रभावी वैक्सीन आ भी जाए तो वह जरूरी नहीं कि दूसरे पर भी असर करेगी।

जूनोटिक बीमारियों के बढ़ने का कारण

डा. बीआर गुलाटी बताते हैं कि जूनोटिक बीमारियां बढ़ने के कई कारण हैं। मगर सबसे बड़ी बात है कि जिस प्रकार का जंगलों का क्षरण हो रहा है उससे जंगली जीव इंसानों के संपर्क में अधिक आ रहे हैं। इंसानों का खानपान बदल रहा है यह जीव उनके खानपान में शामिल हो रहे हैं। इनमें से कई जीव तो ऐसे जिनमें काफी बैक्टीरिया व खतरनाक वायरस होते हैं। यह तेजी से संक्रमण फैलात हैं।

डा. गुलाटी कहते हैं, कोरोना वायरस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जो चमगादड़ से फैला। इसके साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर उपयोग, पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग, जलवायु परिवर्तन के कारण भी यह समस्या देखी जा रही है। इन सभी कारणों से साल दर साल जूनोटिक बीमारियां इंसान और पशुओं को अपना शिकार बनाती जा रही हैं। सिर्फ शिकार ही नहीं बल्कि लोगों की मौत भी हो रही है।

पिछले 30 वर्षों में किस प्रकार बढ़ी जूनोटिक बीमारियां

हेंड्रा वायरस- इस वायरस से ये बीमारी वर्ष 1994 में पहली बार मिली थी। यह वायरस चमगादड़ से फैलता है। यह पहले घोड़ों में फिर इंसानों में फैलता है।

निपाह वायरस- यह वायरस भी वर्ष 1998 के बाद आया। यह भी चमगादड़ से फैला। इस वायरस के संक्रमण से बुखार, खांसी, सिरदर्द, सांस की तकलीफ और भ्रम जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

बर्ड फ्लू- इस वायरस ने वर्ष 2004 में इंसानों और पक्षियों को अपना शिकार बनाना शुरू किया। इसे आमतौर पर एवियन इन्फ्लूएंजा भी कहते हैं। इस वायरस के चलते हर साल लाखों पक्षियों को भारत में मौत की नींद सुलाया जाता है।

मर्स कोरोना वायरस- वर्ष 2012 में मर्स कोरोना वायरस बीमारी आ गई। यह वायरस ऊंट के माध्यम से आया। इससे संक्रमित लोगों में बुखार, निमोनिया और खराब किडनी जैसे लक्षण पाए गए। यह बीमारी एक महामारी का रूप लेने की क्षमता रखती है। इसके बाद रिका, इबोला जैसे वायरस भी देखने को मिले, जिन्होंने लोगों को संक्रमित किया।

कोरोना वायरस- सार्स कोव-2 यानि कोरोना वायरस वर्ष 2019 में आया। यह वायरस चमगादड़ से फैला, मगर इसने महामारी का रूप ले लिया। जिसके कारण लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई। इसके बाद साथ ही अभी तक इसका प्रकोप समाप्त नहीं हुआ है।

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कुछ जूनोटिक बीमारियां और उनका असर

बीमारियां-     सामने आने का वर्ष-     इंसानों के केस-        मौतें हुईं

  • हेंड्रा-                 1994-                         7-                     4
  • निपाह-              1998-                          319-                225
  • वेस्ट नील फीवर- 1999 - 2010 -             28975-            1300
  • सार्स कोव 1 -      2002 - 2003-              7918-              761
  • बर्ड फ्लू-             2004-                          861-                455
  • एच1 एन1 स्वाइन फ्लू- 2009-                   16,32,258-      2,84,500
  • मर्स कोव-             2012-                          294-                858
इबोला वायरस-     2013 - 2015-                28,646-                  11,323

जीका वायरस-       2015 और 2016-           7,698-                     9

सार्स कोव 2-         2019-                          54,67,14,307-         63,45,988

मंकी पाक्स-           2022-                          2103-                      1

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भारत में स्वाइन फ्लू के मामले

           वर्ष -              केस -            मौत

  • 2017-             38811-          2270
  • 2018-            15266-           1128
  • 2019-             28798-          1218
  • 2020-              2752-             44
  • 2021-              778-                12
  • 2022 (30 अप्रैल)- 20-                1
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जूनोटिक बीमारियों से बचाने को ये बरतें सावधानियां

  • - जंगली पशु व पक्षियों से दूरी बनाकर रखें।
  • - बीमारियों के वैक्टर्स का रोकथाम करें।
  • - अगर आपको कोई अचानक से दिखता है कि पक्षी या पशु मर रहे हैं तो स्‍वास्‍थ्‍य विभाग को सूचित करें।
  • - बीमार पशु व पक्षियों और इंसानों से दूरी बनाकर रखें। उनसे बचाव के सेफ्टी गियर (मास्क, हाथ सेनिटाइज आदि) का प्रयोग करें।
  • - अगर आपको अचानक से आई बीमारी दिखती है तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करें।
  • - अपने पालतू पशुओं का टीकाकरण समय से कराएं।
  • - दुधारू संक्रमित पशुओं में दूध से भी कई बीमारियां आ जाती है, इसलिए दूध को अच्छे से उबालकर ही पीएं। इसी प्रकार मांस खाते समय उसे अच्छी तरह उबालें और काफी देर तक पकाएं।
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'' जूनोटिक बीमारियों का प्रसार बढ़ा है यह बात आंकड़ों को देखने से साफ पता चलती है। हम नियंत्रण के लिए एकल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत कार्य कर रहे हैं। वहीं संस्थान के विज्ञानी ऐसी कई बीमारियों पर शोध कर समाधान दे रहे हैं। हाल ही में पशुओं को कोरोना से बचाने के लिए देश की पहली एंकोवैक्स वैक्सीन विकसित की है, जिसे जंगली पशुओं को दिया जा रहा ह।

                                                               - डा यशपाल, निदेशक, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार। 

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