Haryana News: खास अंदाज में गांव-गांव तक पहुंची 'लोटा-नमक' शपथ, नशे पर कुछ यूं पुलिस लगाएगी रोकथाम
झज्जर में पुलिस इन दिनों हार्ट चेंज कैंपेन (Heart Change Campa) के तहत गांव-गांव में पहुंचकर नशे के आदी लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए ये मुहिम चला रहे हैं। ये जागरुकता अभियान व्यापक स्तर पर चलाया जा रहा है। इसके चलते नशे की सप्लाई को रोकना नशा तस्करों को सजा दिलवाना और लोगों को नशे की लत से दूर रखने के लिए जागरूकता फैलाई जाएगी।
अमित पोपली, झज्जर। श्री रामचरितमानस के अयोध्या कांड में एक चौपाई है, रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन ना जाई। आमतौर पर देखने में आता है कि कई दफा लोग अदालत में किए गए रजिस्टर्ड एग्रीमेंट से भी मुकर जाते हैं। जबकि जुबानी संकल्प को निभाने की पुरानी परंपराएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी कायम है। खास मौकों पर विश्वास बहाली के लिए जुबानी संकल्प 'लोटा-नमक' की परंपरा आज भी विशेष महत्व रखती है। ऐसा करते हुए लोग अगर किसी को वचन दे देते हैं तो उसे पूरे विश्वास और ईमानदारी के साथ निभाते भी हैं।
दरअसल, 'हार्ट चेंज कैंपेन' के तहत पुलिस की टीम इन दिनों में गांव-गांव में पहुंचकर नशे के आदी लोग हो या स्टेडियम में खेलने वाले युवा, मेहनत-मजदूरी करने वाले श्रमिक हो या गाड़ी चलाने वाले चालक, ऐसे सभी लोगों के साथ 'लोटा-नमक' डालकर किसी भी प्रकार का नशा या नशीली दवाओं के पूर्ण त्याग की शपथ दिला रही हैं। इसका उद्देश्य नशीली दवाओं के आदी लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना है। साथ ही उन्हें एक तरह से अभियान का ब्रांड एंबेसडर भी बनाना है। जिससे, वह खुद से जन-जन तक इस बात को पहुंचाएं और समाज में नशे के दुष्प्रभाव को दूर करने में अपना योगदान दें।
5 बिंदुओं पर पुलिस का विशेष फोकस
अपनी विशिष्ट शैली के जरिए सिरसा में ऑपरेशन क्लीन की शुरुआत करते हुए जन आंदोलन खड़ा करने वाले डीसीपी डॉ. अर्पित जैन बताते है, अक्सर लोगों का विश्वास जीतना बड़ी चुनौती होती है। अगर इसमें हम सफल हो जाते हैं तो किसी भी मुश्किल लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। पुलिस द्वारा चलाए जा रहे अभियान से गांव-गांव में लोग स्वयं नशे के खिलाफ झंडा उठाए हुए है। लोगों द्वारा सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। नशा तस्करों की कानूनी पैरवी न करने और नशा करने वालों की भी पहचान करने के लिए ग्रामीण एकजुट हुए हैं। कुल मिलाकर बड़े बदलाव के साथ हम आगे बढ़ रहे हैं।ये भी पढ़ें: Haryana Assembly Election 2024: 'कांग्रेस किसी के साथ नहीं करेगी गठबंधन, अपने दम पर लड़ेगी चुनाव', भूपेंद्र हुड्डा का बड़ा बयान
विशेष बिंदु
- सबसे पहले नशे की सप्लाई को रोकना
- जद में आए आरोपितों को सजा दिलवाना, चिह्नित हो चुके आरोपितों की कड़ियां जोड़ते हुए उन तक पहुंचना
- नशे के आदी लोगों के प्रति दया पूर्ण भाव रखते हुए उन्हें समाज से वापिस जोड़ना, काउंसलिंग से मदद करना, प्रयास करना कि लोग उन्हें घृणा के भाव से नहीं देखें
- सामाजिक जागरूकता अहम विषय है। जब भी जरूरत हो नोक-नोक करते हुए विषय उठना चाहिए
- सुधार के नए आइडिया का हमेशा स्वागत करना, अभ्यास में सफल हो चुके लोगों के साथ मुलाकात के निरंतर सेशन रखना।
आखिर क्या है लोटा-नमक परंपरा?
अकसर क्षेत्र में लोटा-नमक का प्रचलन किसी विवाद के दौरान एक-दूसरे पर लगे आरोपों की सत्यता परखने, मतभेद भुलाकर संगठित रहने, किसी भी प्रकार का वचन देने पर उसका अनिवार्य रूप से पालन करने के लिए रहा है। इस परंपरा को आधुनिक समाज ने भी उसी तरह स्वीकार किया है, जैसे उसकी पुरानी पीढ़ियां करती रही हैं। यह परंपरा एक समय में न्याय व्यवस्था का एक हिस्सा थी। लोग इस प्रथा से ही खुद को सच्चा झूठा साबित करते थे।
परंपरा के अनुसार एक शख्स हाथ में पानी से भरे लोटे को पकड़ता है, दूसरे हाथ से उसमें नमक डालता है। इस दौरान वे एक वादा करता है, जिसे पूरा करने की वो कसम खाता है। लोटे में नमक डालने के बाद वो किसी भी सूरत में अपने वचन को पूरा करने से पीछे नहीं हट सकता। पुराने समय में जो सच अदालत में भी साबित नहीं होता था, उसे साबित कराने के लिए लोटा नमक कसम खिलाकर साबित किया जाता था। अब इस परंपरा के जरिए ही लोगों का मन नशे से दूर रखने के लिए किया जा रहा है।
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