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Jhajjar News: ठंड बढ़ने के साथ ही पिछले सीजन की तुलना में इस साल कोयले के बढ़े दाम; जानिए इसकी नई कीमत

ठंड के दस्तक देते ही बाजारों में गर्म कपड़ों की खरीदारी के साथ-साथ कोयला व लकड़ी की भी बिक्री बढ़ गई है। अभी बाजार में दो तरह का कोयला मौजूद है एक पत्थर का कोयला दूसरा लकड़ी का कोयला। बाजार में पत्थर के कोयले की कीमत 25 रुपये प्रति किलो है तो लकड़ी के कोयला कीमत 40 रुपये प्रति किलो में बिक रहा है।

By Rahul Kumar TanwarEdited By: Monu Kumar JhaUpdated: Tue, 21 Nov 2023 03:50 PM (IST)
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पिछले साल की तुलना में इस साल कोयले के दाम बढ़े। प्रतीकात्मक फोटो
जागरण संवाददाता, झज्जर। ठंड के दस्तक देते ही बाजारों में ठंड से संबंधित सामान की खरीदारी शुरु हो गई है। गर्म कपड़ों की खरीदारी के साथ-साथ कोयला व लकड़ी की भी बिक्री बढ़ गई है। हालांकि, प्रदूषण के चलते इनके प्रयोग को लेकर विशेष निर्देश भी है।

इधर, सावे खुलने का असर सीधा असर बाजार के साथ-साथ लकड़ी के व्यवसाय पर भी पड़ेगा। क्योंकि शादी विवाह कार्यक्रम में तंदूर और भट्टी के काम के भारी मात्रा में लकड़ी व कोयले का प्रयोग किया जाता हैं। 23 नवंबर से अब जब सावे खुल गए हैं, तो इनकी मांग में भी बढ़ोतरी होगी।

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लकड़ी के कोयला कीमत 40 रुपये

अभी बाजार में दो तरह का कोयला मौजूद है, एक पत्थर का कोयला दूसरा लकड़ी का कोयला। बाजार में पत्थर के कोयले की कीमत 25 रुपये प्रति किलो है तो लकड़ी के कोयला कीमत 40 रुपये प्रति किलो में बिक रहा है। जबकि लकड़ी के छोटा कोयले की 30 रुपये प्रति किलो में भी ख़रीददारी हो रही है।

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सर्दी की दस्तक से कोयले की मांग में बढ़ोत्तरी

भट्टी गेट स्थित कोयले के दुकानदार लोकेश जांगड़ा ने बताया कि उनकी 50 साल पुरानी दुकानदारी है। उनके दादा पहले ये काम करते थे। पिता के बाद अब वह यह काम खुद संभालते हैं। सर्दी की दस्तक से कोयले की मांग में बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही रेट भी दो रुपये प्रति किलो बढ़ गए हैं।

पिछले साल कोयले का मूल्य 38 रुपये प्रति किलो

पिछले सीजन की बात करें तो कोयले का मूल्य 38 रुपये प्रति किलो था वहीं, अब बढ़कर 40 रुपये प्रति किलो हो गया है। लकड़ी ईंधन की बात करें तो यह 8 रुपये प्रति किलो था जो कि अब 10 रुपये प्रति किलो कर दिया गया है।

शादी-विवाह सीजन के बंद होने से कोयला की मांग हुई थी कम

बता दें कि विवाह-शादी सीजन के बंद होने से इसका असर लकड़ी, कोयले व्यवसाय पर भी पड़ा था। क्योंकि विवाह के दौरान कोयले का प्रयोग शादियों में तंदूर जलाने के लिए किया जाता था। सीजन नहीं होने से कोयले की मांग भी काफी हद तक कम हुई थी।

वहीं, आचार्य उपेंद्र कृष्ण के अनुसार 23 नवंबर को 5 महीने की चातुर्मास की अवधि पूरी हो रही है। इसी दिन देव योग निद्रा से बाहर आएंगे, इसी के साथ पिछले पांच माह से थमी शहनाइयां गूंजने लगेंगी। बता दे कि जिले में कोयला न बनने के कारण लकड़ी का कोयला यूपी, नूह आदि एरिया से आता हैं।

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