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जींद के पांडू पिंडारा तीर्थ का महाभारत से है जुड़ाव, पिंडदान का विशेष महत्‍व

जींद के पांडू पिंडारा तीर्थ का महाभारत से गहरा जुड़ाव है। मार्गशीष अमावस्‍या पर श्रद्धालुओं ने सरोवर में स्‍नान किया। पांडू-पिंडारा तीर्थ पर श्रद्धालुओं ने पिंडदान कर सुखद भविष्य की कामना की। पूरी रात सत्संग तथा कीर्तन चलता रहा।

By Dharmbir SharmaEdited By: Anurag ShuklaUpdated: Wed, 23 Nov 2022 04:30 PM (IST)
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जींद के गांव पांडू पिंडारा स्थित तीर्थ। जागरण
जींद, जागरण संवाददाता। जींद के गांव पांडू पिंडारा स्थित तीर्थ पर बुधवार को मार्गशीष अमावस्या पर श्रद्धालुओं ने सरोवर में स्नान किया तथा पिंडदान कर पितृ तर्पण किया और सुखद भविष्य की कामना की। ऐतिहासिक पिंडतारक तीर्थ पर मंगलवार शाम से ही श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गए थे। पूरी रात धर्मशालाओं में सत्संग तथा कीर्तन चलता रहा।

श्रद्धालुओं ने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया

बुधवार को सुबह से ही श्रद्धालुओं ने सरोवर में स्नान तथा पिंडदान शुरू कर दिया जो मध्यान्ह के बाद तक चलता रहा। इस मौके पर दूर दराज से आए श्रद्धालुओं ने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया तथा सूर्यदेव को जलार्पण करके सुख समृद्धि की कामना की। पिंडतारक तीर्थ के संबंध में कथा प्रचलित है कि महाभारत युद्ध के बाद पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पांडवों ने यहां 12 वर्ष तक सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा में तपस्या की। बाद में सोमवती अमावस के आने पर युद्ध में मारे गए परिजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया।

पिंडतारक तीर्थ पर पिंडदान करने से पूर्वजों को मिलता है मोक्ष

तभी से यह माना जाता है कि पांडू पिंडारा स्थित पिंडतारक तीर्थ पर पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है। वहीं मार्गशीष महीने में स्नान का विशेष महत्व होता है। ऐसे में श्रद्धालु दूर-दूर से पिंडारा तीर्थ पर स्नान करने पहुंचे। महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या पर यहां पिंडदान करने का विशेष महत्व है। यहां पिंडदान करने के लिए विभिन्न प्रांतों के लोग श्रद्धालु आते हैं।

श्रद्धालुओं ने यहां खरीददारी भी की। माता वैष्णवी धाम के आचार्य पवन शर्मा ने बताया कि बुधवार को मार्गशीष अमावस्या रही।अमावस्या के दिन स्नान करने और दान देने की परंपरा है और पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान व श्राद्ध का अपना महत्व है। ऐसा कर हम अपने पितरों की आत्मा को शांत कर सकते हैं।

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