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वर्षो की घूंघट प्रथा से बाहर आई महिलाएं

डा. राजेंद्र छाबड़ा, कलायत : लज्जा स्त्रियों का गहना है। जो गहना कानों को काटे वो किस काम का? हरियाणा

By Edited By: Updated: Wed, 16 Sep 2015 06:31 PM (IST)

डा. राजेंद्र छाबड़ा, कलायत : लज्जा स्त्रियों का गहना है। जो गहना कानों को काटे वो किस काम का? हरियाणा के ग्रामीण अंचल में पाव फैलाए पड़ी पर्दा प्रथा कुरीति की दीवार ढहाने में चौशाला गाव की महिला सरपंच सीमा देवी कामयाब रही। हालाकि जब वे गाव में दुल्हन बनकर आई उन्हें भी पर्दे में रहना पड़ता था। घर की चहारदीवारी के अंदर भी मुंह खोलकर रहने की इजाजत नहीं थी। नारी उत्थान में सीमा ने इसे एक जटिल समस्या माना। उन्हे इस बात का गुस्सा था कि एक तरफ महिलाओं को राष्ट्र की उन्नति का दर्पण कहा जाता है जबकि दूसरी तरफ इस वर्ग को अपनी उपलब्धियो के मुकाम स्थापित करने का अवसर नहीं दिया जा रहा। जिस समाज में महिला को पर्दे से बाहर निकलने की इजाजत न हो वहा नारी बुलंदी के आयाम कैसे छुए?

हालाकि भारतीय समाज वह समाज है जहा रामायण और महाभारत काल से ही नारी को स्वयं वर चुनने का अधिकार प्राप्त रहा है। इसके साथ ही राजा राम मोहन राय जैसे समाज सुधारकों ने पर्दा प्रथा का डटकर विरोध किया है। बावजूद इसके 21वीं सदी में नारी शक्ति को पर्दे के पीछे सिमट कर रहने पर विवश करना चिंता का विषय है। इस प्रकार के हालात यह दर्शा रहे है कि वैज्ञानिक दृष्टि से भारत देश ने बुलंदियों के आकाश को छुआ है, लेकिन सामाजिक व्यवस्था आज भी संकीर्ण विचारधाराओं में फंसी है। इस प्रकार के पहलु सीमा को चैन से बैठने नहीं देते थे।

महिलाओं के जीवन में एक नया उजियारा लाने की कसक उसके जेहन में थी। उसका यह ख्वाब उस समय पूरा हो गया जब वर्ष 2009 में उसे गाव की मुखिया चुन लिया गया। अब तो सीमा को हालात बदलने का मानों एक सुनहरा अवसर मिल गया। इस नई सुबह की सोच में उनके पति बलदेव सिंह और परिवार के अन्य सदस्यों ने उसका सहयोग दिया।

नव नियुक्त महिला सरपंच सीमा देवी ने गाव में पहला ऐतिहासिक निर्णय पर्दा प्रथा के खिलाफ लिया। जब सार्वजनिक मंच से इसकी पहल उन्होंने स्वयं से की तो देखते ही देखते महिलाओं का कारवा उसके साथ आ खड़ा हुआ। आरभिक चरण में कुछ लोगों ने इसका दबी जुबान से विरोध किया, लेकिन वक्त के बदलते दौर में ये भी आ मिले। अब तो पर्दा प्रथा के खिलाफ गाव में रैलिया और दूसरे कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू हो गया। ग्रामीण परिवेश में इस प्रकार का बदलाव महिलाओं के जीवन में एक नई किरण लेकर आया। शिक्षा व सरकारी सेवाओं के प्रति परिवार के लोगों का रुझान बढ़ा। महिलाएं अब खुलकर अपनी बात रख सकती थी।

चौशाला गाव देश का ऐसा पहला गाव उभर कर आया जहा सदियों से चली आ रही पर्दा प्रथा, कुरीति के खिलाफ महा अभियान चला। महिला सरपंच की यह प्रगतिशील सोच नारी सशक्तिकरण के साथ ग्राम विकास में मील का पत्थर साबित हुई। यह सच्चाई भी है कि जिस गाव में जनहित और विकास योजनाओं में हर वर्ग की सहभागिता हो वहा कदम-कदम पर बुलंदी की मीनार खड़ी हो जाती है।

सबने किया सीमा के

जज्बे को सलाम

च्यवन ऋषि की तपों भूमि चौशाला गाव में जन जागरूकता की मिशाल क्या जगी कलायत खंड के साथ हरियाणा प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी बदलाव का दौर चल पड़ा। कैथल के तत्कालीन जिला उपायुक्त चंद्रशेखर द्वारा शुरू किए गए रात्रि ठहराव कार्यक्रम व खुल दरबारों में महिलाओं ने संबंधित गाव में पर्दा न करने का संकल्प लिया। सीमा की इस मुहिम को जिला कैथल व हरियाणा के इतिहास में निश्चित तौर से यह एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक संदेश माना जाता रहेगा।

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