Haryana Politics: 'मुझे मिलता है जींद के पिछड़ेपन का दोष', कलायत में छलका पूर्व मंत्री बीरेंद्र सिंह का दर्द
पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह सोमवार को कलायत पहुंचे। जींद की धरती के लिए यहां उनका दर्द एक बार फिर छलका। उन्होंने कहा कि कई राजनीतिक दल जींद के रास्ते सत्ता तक पहुंचे। लेकिन आज भी लोग उन्हें ही जींद के पिछड़ेपन के लिए दोष देते हैं। पूर्व मंत्री ने यह भी कहा कि उन्होंने कभी अपने नाना सर छोटू राम के नाम पर कभी वोट नहीं मांगे।
कलायत (कैथल), संवाद सहयोगी। Birender Singh In Kaithal पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने कहा कि जींद की धरती पर इनेलो, कांग्रेस, भाजपा व अन्य दलों ने रैलियां करते हुए सत्ता हासिल की है। इसी तरह दुष्यंत चौटाला ने भी अपने दादा से झगड़कर इसी धरती पर रैली की थी। हरियाणा के बीच का यह हिस्सा जिसे बांगर कहा जाता है उसका राजनीतिक दलों ने क्षेत्र के लोगों की उम्मीद अनुसार खयाल नहीं रखा। इसके चलते यह इलाका पिछड़ा रहा है।
उन्होंने कहा कि इस पिछड़ेपन का दोष बीरेंद्र सिंह को मिलता है। लेकिन सभी यह जानते हैं कि बीरेंद्र सिंह ने ईमानदारी से राजनीति की है। यही वजह है कि वे 77 वर्ष की आयु के बावजूद वे कमेरे, दलित व किसान के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। बीरेंद्र सिंह सोमवार को कैथल में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल के सम्मान में आयोजित रैली में शिरकत करने से पहले कलायत बाईपास पर स्थित संगम होटल में साथी कार्यकर्ताओं से मुखातिब थे।
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'नाना सर छोटू राम के नाम पर कभी वोट नहीं मांगे'
बीरेंद्र सिंह ने कार्यकर्ताओं को हिदायत दी कि वे भाजपा, इनेलो और कांग्रेस की बजाए देश के राष्ट्रीय ध्वज के साथ रैली में शिरकत करें। उन्होंने कहा कि वे 50 वर्ष से अधिक समय से चुनावी राजनीति में हैं और 14 चुनाव लड़ चुके हैं। देश-प्रदेश की राजनीति में वर्तमान में इतने बड़े लंबे सफर के कम ही नेता हैं। बावजूद इसके उन्होंने कभी अपने नाना सर छोटू राम के नाम पर कभी वोट नहीं मांगे। जबकि कई ऐसे हैं जो अपने परिवार के नाम पर वोट मांगते हुए लोगों को गुमराह करते हैं।
'भीड़ जुटी तो दो अक्टूबर को गाड़ूंगा बांगर की धरती पर लठ'
बीरेंद्र सिंह ने कहा कि जींद रैली किसी पार्टी की बजाए उनके संघर्ष के साथियों की है। यदि रैली में ज्यादा तादाद में भीड़ जुड़ी तो इस दिन बांगर की धरती पर ऐसा लठ गाड़ूंगा कि सारे नाचते कूदते घर आएंगे। यदि लोग कम आए तो लठ नहीं गड़ सकता। क्योंकि जिस प्रकार खेल में खिलाड़ी को भीड़ से उत्साह मिलता है उसी तरह राजनीति में भीड़ के मायने हैं।