कैथल का सर्राफा बाजार: 200 साल पहले फैली शक्कर व सूत के लड्डूओं की महक, आज बिखेर रहा सोने की चमक
कैथल का सर्राफा बाजार 200 साल पुराना है और यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी हजारों परिवारों के भरण-पोषण का माध्यम बनता आ रहा है। इसकी शुरुआत कपड़े और हलवाई की दुकान से हुई थी बाद में चांदी की दुकान भी खुली। सर्राफा बाजार में आज 55 दुकानें हैं जिनमें सोने और चांदी का कारोबार होता है। त्योहारों के सीजन में यहां 55 से 60 करोड़ का व्यापार हो जाता है।
पीढ़ियों से काम कर रहे कारीगर
सर्राफा बाजार का मुख्य आकर्षण यहां का सोने और चांदी का व्यापार है। इस बाजार में कैथल और आसपास के इलाकों के लोग आभूषण खरीदने आते हैं। यहां के आभूषण अपनी उत्कृष्ट कारीगरी और शुद्धता के लिए प्रसिद्ध हैं।यह है इतिहास
सर्राफा बाजार केवल व्यापार का केंद्र नहीं है, बल्कि इसके हर कोने में कैथल के इतिहास की गूंज सुनाई देती है। यहां से थोड़ा आगे एक प्राचीन हनुमान मंदिर है। यहां की गलियों और इमारतों में प्राचीन शैली की झलक देखने को मिलती है, जो इस बाजार को एक विशेष पहचान देती है।पुराने जमाने की तंग गलियां और दुकानों के सामने बनीं छतरियां आज भी लोगों को उस समय की याद दिलाती हैं, जब यह बाजार व्यापार के मुख्य केंद्रों में से एक था। बाजार में कुछ इमारतें ऐसी हैं, जो मुगल और ब्रिटिश काल की वास्तुकला को प्रदर्शित करती हैं और यह दर्शाती हैं कि यह स्थान कितना ऐतिहासिक महत्व रखता है।बाजार की अद्वितीयता
कैथल का सर्राफा बाजार आधुनिकता और परंपरा का संगम है। नए तकनीकी विकास के साथ अब यहां डिजाइनर आभूषणों और आधुनिक मशीनों का भी प्रयोग होने लगा है, बावजूद इसके यहां की दुकानों का रूप और आभूषणों की प्रस्तुति वैसी ही पारंपरिक रहती है, जैसी वर्षों पहले थी।समस्याएं और चुनौतियां
बाजार की खूबसूरती और विशेषता के बावजूद, कुछ चुनौतियां भी हैं। तंग गलियों और पार्किंग की कमी के कारण यहां आने वाले ग्राहकों को कभी-कभी असुविधा का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा आधुनिक माल और बड़ी आभूषण शृंखलाओं के आगमन से छोटे व्यापारी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं। यह भी पढ़ें- Special Trains: दीवाली पर घर जाने की नो टेंशन, रेलवे इन रूटों पर चलाएगा स्पेशल ट्रेनें; गारंटी से मिलेगा कन्फर्म टिकटसर्राफा बाजार विविधताओं से भरा है। आपसी भाईचारा यहां की पहचान है। यहां मराठी, बंगाली, सुनार और सर्राफ काम करते हैं। एक समय था जब तक सोने की गलाई और शुद्ध करने का काम मराठी लोग किया करते थे। अब मशीनें आ गई हैं तो हाथ का काम थोड़ा कम हुआ है। यह बाजार सिर्फ एक सड़क के दोनों ओर की दुकानें ही नहीं है, बल्कि 150 से ज्यादा कारोबारियों का एक परिवार है।
-अभिमन्यु वर्मा
वहीं हरदीप पाडला कहते हैं कि सर्राफा बाजार प्राचीन बाजार है। यहां आकर पुराने शहर का अहसास होता है। इससे थोड़ा आगे जाने पर लाल पौ आता है, जो कि शहर के सबसे पुराने हिस्से में से एक है। यहां बाजार में पार्किंग की मुख्य समस्या है।यह भी पढ़ें- बॉस हो तो ऐसा... दीवाली पर कर्मचारियों की कर दी बल्ले-बल्ले, मिठाई की तरह गिफ्ट में दी कारेंसर्राफा बाजार में दूरदराज से लोग चांदी व सोने की खरीदारी के लिए जाते हैं। यह बड़ा बाजार है। भले ही यहां अब दुकानें और शोरूम नए बन गए हैं, लेकिन यहां से जब पैदल गुजरते हैं तो पुरानी इमारतें देख कर बाजार की पौराणिकता नजर आती है।
-वरुण जैन