पुरातात्विक अवशेष पर छिड़ी बस, साक्ष्यों की मान्यता पर संस्कृत विद्वान और इतिहासकार आमने-सामने
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खोदाई में मिले वैदिक संस्कृति के प्रमाणों काे श्रेय नहीं देने पर कुलपति प्रो.रमेश चंद्र भारद्वाज ने सवाल उठाए। जवाब में इतिहासकार प्रो.वीके जैन बोले- संस्कृत के ही साक्ष्यों को प्रामाणिक मानकर चले तो परिणाम नहीं आएंगे।
By Pankaj KumarEdited By: Anurag ShuklaUpdated: Sun, 09 Oct 2022 04:55 PM (IST)
कैथल, [पंकज आत्रेय]। पुरातात्विक साइटों की खोदाई में मिले अवशेषों को वैदिक संस्कृति से नहीं जोड़ने पर संस्कृत के पैरोकारों ने इतिहासकारों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, राखीगढ़ी सहित जहां भी खोदाई में अवशेष मिले हैं, इतिहासकारों और पुरातत्ववेताओं ने कभी उनकी वैदिक संस्कृति का जिक्र नहीं किया। उनके प्रमाणों को कभी सत्यापित नहीं किया। दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृति को इतिहासकार नकारते आ रहे हैं।
इस सम्मेलन में छिड़ी चर्चामहर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय में रविवार को शुरू हुए तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में यह नई बहस शुरु हुई। बता दें कि सम्मेलन का विषय पुरातात्विक एवं साहित्यिक साक्ष्यों के आलोक में भारतीय इतिहास का पुनरावलोकन है।
इतिहासकारों को लिया आड़े हाथोंविश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.रमेश चंद्र भारद्वाज ने देश के इतिहासकारों को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा, आज राष्ट्रवाद की बात हो रही है, लेकिन कोई भी विचार, राष्ट्रवाद और चिंतन तब तक सुदृढ़ नहीं होगा जब तक कि देश के विद्वान उसे प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत नहीं करते। इतिहास सामाजिक विज्ञान है। वह प्रामाणिकता पर बात करता है। जब कोई विषय विज्ञान होता है तो उसकी जिम्मेदारी बन जाती है कि नए साक्ष्यों का संग्रह किया जाए। बहुत से राष्ट्रवादी संगठन इस विषय पर काम कर रहे हैं। करोड़ों के बजट भी आ चुके हैं, लेकिन पिछले सात साल में वैदिक संस्कृति की प्रामाणिकता के सात पेज भी नहीं आए। कुलपति प्रो. भारद्वाज ने वर्तमान के कई इतिहासकारों के नाम लेकर उन्हें आड़े हाथों लिया। कहा कि हिसार के राखीगढ़ी में हमारी प्राचीन संस्कृति के कई वैदिक प्रमाण मिले हैं, लेकिन उनका भी कहीं जिक्र नहीं किया गया। हवन कुंडों की संस्कृति को भी खारिज कर दिया गया।
साहित्य भी इतिहास का प्रमाण महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार के पूर्व कुलपति और राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर डा. संजीव कुमार शर्मा ने साहित्य की पैरवी करते हुए इसे भी इतिहास का सशक्त साक्ष्य बताया। कहा कि हम कभी साहित्य और काव्य को इतिहास, राजनीतिक विज्ञान और समाज विज्ञान के विषय के रूप में नहीं देखते। महर्षि वाल्मीकि और कालीदास के काव्य से हमें इतिहास का पता चलता है।
संस्कृत-साहित्य पर निर्भर नहीं रह सकतेदिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के सेवानिवृत प्रोफेसर डा. वीके जैन ने कुलपति प्रो.रमेश चंद्र भारद्वाज के सभी एतराजों पर सिलसिलेवार जवाब दिया। उन्होंने कहा, पुरातत्व के क्षेत्र में प्रामाणिकता के लिए संस्कृत और साहित्य पर निर्भर नहीं रह सकते। अगर ऐसा करने लगे तो सही परिणाम देना संभव नहीं होगा। अब नए टूल आ गए हैं। कार्बन डेटिंग है। इतिहास को लिखने के लिए संस्कृत और साहित्य नहीं देख सकते। आपकी संस्कृत में जो लिखा है वही सही है, ऐसा नहीं है। क्रास चेक करना पड़ेगा। हमें वास्तविक स्रोत चाहिए। कल्पनाओं से इतिहास नहीं लिख सकते।
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