कहानी और उपन्यास से भी कठिन विधा है लघुकथा। इसे छोटी विधा मानकर हम इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते। यह कहना है बेल ऐर (मारिशस) के विश्व-विख्यात साहित्यकार रामदेव धुरंधर का।
By JagranEdited By: Updated: Mon, 08 Nov 2021 11:00 PM (IST)
जागरण संवाददाता,नारनौल: कहानी और उपन्यास से भी कठिन विधा है लघुकथा। इसे छोटी विधा मानकर हम इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते। यह कहना है बेल ऐर (मारिशस) के विश्व-विख्यात साहित्यकार रामदेव धुरंधर का। मनुमुक्त मानव मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय लघुकथा-सम्मेलन में उन्होंने कहा कि लघुकथा छोटी होने के बावजूद गंभीर भावों की अभिव्यक्ति और बड़े उद्देश्यों की पूर्ति में सक्षम है। इससे पहले राष्ट्रपति के विशेष कार्याधिकारी डा. राकेश दुबे ने कहा कि आज के इस विशाल अंतरराष्ट्रीय लघुकथा-सम्मेलन में जहां एक ओर नए लघुकथाकार पहली बार लघुकथा-पाठ कर रहे हैं, वहीं प्रतिष्ठित लघुकथाकारों द्वारा अपनी सर्वश्रेष्ठ तथा विश्व-स्तरीय लघुकथाएं प्रस्तुत की जा रही हैं।
केंद्रीय हिदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सहायक निदेशक डा. दीपक पांडेय ने कहा कि लघुकथा अपने वामन पगों से विराट संसार को नापने की क्षमता रखती है। इस अवसर पर चीफट्रस्टी और वरिष्ठ लघुकथाकार डा. रामनिवास मानव ने विषय-प्रवर्तन करते हुए कहा कि हर देश और भाषा की अपनी संस्कृति होती है। अत: एक ही फार्मेट के आधार पर पूरे विश्व की लघुकथाओं का मूल्यांकन करना उचित नहीं है।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के जिला अध्यक्ष डा. जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत डा. पंकज गौड़ के कुशल संचालन में संपन्न हुए इस भव्य लघुकथा-सम्मेलन में 22 देशों के 28 लघुकथाकारों की सहभागिता रही। इस अवसर पर टोक्यो (जापान) की डा. रमा पूर्णिमा शर्मा ने अजनबी, सुवा (फीजी) की उत्तरा गुरुदयाल ने उम्मीद का दिया, सुवा (फिजी) के ही अमित अहवत ने गिरमिट-गाथा, आकलैंड (न्यूजीलैंड) के रोहितकुमार हैप्पी ने आदमी कहीं का, सिडनी (आस्ट्रेलिया) की डा. भावना कुंअर ने मुखौटे और प्रदीप कुंअर ने नि:शब्द, क्वालालंपुर (मलेशिया) के राजू छेत्री अपुरो ने हैसियत, काठमांडू (नेपाल) के श्रीओम श्रेष्ठ रोदन ने अलग रास्ता और डा. पुष्करराज भट्ट ने दिवाली की रौनक, चितवन (नेपाल) की रचना शर्मा ने दस रुपये का ब्याज, अबूधाबी सिटी (अबूधाबी) की ललिता मिश्रा ने आधुनिक कौन, दुबई सिटी (दुबई) के डा. नितिन उपाध्याय ने महुआ के फूल, दोहा (कतर) की डा. मानसी शर्मा ने साथी हाथ बढ़ाना, बेल ऐर (मारिशस) के रामदेव धुरंधर ने देवी का मंदिर, मोका (मारिशस) की ही कल्पना लालजी ने सपनों की उड़ान, अकरा (घाना) की मीनाक्षी सौरभ ने ज्ञान, सोफिया (बुल्गारिया) की डा.मोना कौशिक ने ठंडी धूप, ब्रुसेल्स (बेल्जियम) के कपिल कुमार ने रामलीला, कोलोन (जर्मनी) की डा. शिप्रा शिल्पी ने एक नया आकाश, स्टाकहोम (स्वीडन) के सुरेश पांडे ने कंबल, ओस्लो (नार्वे) के डा. सुरेशचंद्र शुक्ल ने विदेशी माल, फिलाडेल्फिया (अमेरिका) की डा. मीरा सिंह ने अधिकार, वर्जिनियां (अमेरिका) की मंजू श्रीवास्तव ने बेगैरत इंसान, टोरंटो (कनाडा) की प्रीति अग्रवाल अनुजा ने अधिकार, पोर्ट आफ स्पेन (त्रिनिडाड) के डा. शिवकुमार निगम ने इम्यूनिटी का राज तथा भारत से सिरसा की डा. शील कौशिक ने परख, नारनौल के डा. पंकज गौड़ ने यादें, डा. सत्यवीर मानव ने लौट आया नरेन और डा. रामनिवास मानव ने अनलौटे श्रीराम लघुकथा का पाठ किया, जिन्हें पर्याप्त सराहना मिली। कार्यक्रम के अंत में डा. शील कौशिक द्वारा सम्मेलन में पढ़ी गई लघुकथाओं की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत की गई। इनकी रही उल्लेखनीय उपस्थिति: लगभग साढ़े तीन घंटों तक चले इस ऐतिहासिक लघुकथा-सम्मेलन में त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू (नेपाल) में हिदी-विभाग की प्रोफेसर तथा अंतरराष्ट्रीय हिदी-पत्रिका हिमालिनी की संपादक डा. श्वेता दीप्ति, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, महेंद्रनगर (नेपाल) में अंग्रेजी-विभाग के अध्यक्ष डा. केएन बियोगी, केंद्रीय हिदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली की सहायक निदेशक डा. नूतन पांडेय, हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला के पूर्व निदेशक डा. पूर्णमल गौड़, बाल कल्याण विभाग, हरियाणा के नोडल ऑफिसर विपिन शर्मा, मनुमुक्त 'मानव' मेमोरियल ट्रस्ट की ट्रस्टी डॉ कांता भारती, कानपुर की डा. सरला अवस्थी, काठमांडू (नेपाल) की कुसुम ग्यावली, अबूधाबी सिटी (अबूधाबी) की बबली मिश्रा, नोएडा के अंश निगम, फतेहाबाद की डा. कृष्णा कंबोज, हिसार के डा. यशवीर दहिया, जयपुर की डा. जया शर्मा, अलीगढ़ के डा. संतोषकुमार शर्मा, रेवाड़ी के डा. आरके जांगड़ा, नारनौल के कृष्णकुमार शर्मा, पुष्पलता शर्मा, लोकेश भारद्वाज, गरिमा गौड़ और शर्मिला यादव के अतिरिक्त निर्मला सांगवान, इला कौशिक, डा जयशंकर शुक्ल, मयंक लवानिया, अजय कुमार, मधुरिमा खरे की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।
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