Move to Jagran APP

Kargil Vijay Diwas 2023: दादा से सीखा देश प्रेम, मां भारती की रक्षा में कर दिया प्राणों का बलिदान

Kargil Vijay Diwas 2023 देश के बटवारे के समय मेवात से कई परिवार पाकिस्तान चले गए लेकिन गांव गुढ़ी निहालगढ़ के रहने वाले अहमद अली का परिवार गांव छोड़कर नहीं गया था। अहमद अली के दादा ने यह कहते हुए जाने से मना कर दिया था कि जीना यहीं तो मरना यहीं पर है। हिंदुस्तान को छोड़कर नहीं जाएंगे।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Wed, 26 Jul 2023 01:11 PM (IST)
Hero Image
Kargil Vijay Diwas 2023: दादा से सीखा देश प्रेम, मां भारती की रक्षा में कर दिया प्राणों का बलिदान
नूंह [सत्येंद्र सिंह]। Kargil Vijay Diwas 2023 : देश के बटवारे के समय मेवात से कई परिवार पाकिस्तान चले गए लेकिन गांव गुढ़ी निहालगढ़ के रहने वाले अहमद अली का परिवार गांव छोड़कर नहीं गया था। अहमद अली के दादा ने यह कहते हुए जाने से मना कर दिया था कि जीना यहीं तो मरना यहीं पर है। हिंदुस्तान को छोड़कर नहीं जाएंगे।

अपने दादा की बातें अहमदअली ने बचपन से ही सुनी। जिससे प्रेरित होकर उन्होंने देशसेवा के लिए सेना में जाने का फैसला लिया और वह सफर भी हुए।1999 में आपरेशन विजय के दौरान उन्होंने देश की सीमा की रक्षा करते हुए दो जुलाई को प्राणों का बलिदान कर दिया। उस वक्त अहमद अली 22 ग्रेनेडियर में नायक पद पर नियुक्त थे।

बटालिक चौकी के ऊपरी भाग पर आतंकियों के भेस में पाकिस्तानी सेना के जवान घुसपैठ कर चुके थे।अहमद और उनके साथी सैनिकों ने कैप्टन ने आगे बढ़ दुश्मनों को मारने के लिए निर्देश दिए तो सभी सीना तान आगे बढ़ने लगे। चोटी पर बैठे पाकिस्तानी सैनिक सुरक्षित जगह पर होने के चलते देश के रणबांकुरों पर लगाताद गोली दाग रहे थे।

पैर में गोली लगने के बाद भी पीछे नहीं हटे अहमद

अहमद अली और अन्य सैनिक गोलियों से बचाते हुए आगे बढ़ रहे थे। कई पाकिस्तानी सैनिक को ढेर कर टुकड़ी ऊपर चढ़ने में सफल हुई।तभी छिपे बैठे तीन पाकिस्तानी सैनिकों ने एकाएक गोली फिर चलाई। एक गोली पैर में लगने के बाद भी अहमद पीछे नहीं हटे और दो पाकिस्तानी को अपनी राइफल से ढेर कर दिया। तभी दो गोली उनके सीने पर लगी और मेवात का लाल मां भारती की रक्षा करते करते गिर पड़ा।

टुकड़ी के अन्य सैनिकों ने तीसरे आतंकी को मारा और अहमद को लेकर बेस कैंप में पहुंचे तब तक अहमद अली जान गवां बैठे थे।अहमद के सात बच्चे हैं। उनकी बड़ी बेटी उस वक्त 11 साल की थी। एक बेटी तो मात्र बीस दिन की ही थी।मां भारती के जवान ने अपनी बच्ची का चेहरा भी नहीं देखा था।

गांव में अहमद अली का शौर्य स्थल बनाया गया। वहां से गुजरते वक्त गांव के हर व्यक्ति अपने बलिदानी को श्रद्धांजलि देने के लिए सिर झुका लेता है। हमें अपने पति के बलिदान पर गर्व है। उनके नहीं रहने पर तकलीफ तो हुई पर यह बात जब याद करती हूं की पति ने दुश्मनों को मारते वक्त सीने में गोली खाई तो एक संबल मिल जाता है। हाजरा बेगम, बलिदानी अहमद अली की पत्नी

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।