लेह लद्दाख के न्योमा में सैनिक वाहन के खाई में गिरकर बलिदान हुए बहीन का लाल 25 वर्षीय मनमोहन सिंह अपने घर का इकलौता चिराग था। तीन दिन पहले ही उन्होंने घर पर अपनी पत्नी चंचल व माता माला देवी से घर की कुशलक्षेम के बारे में फोन पर जानकारी ली थी। उस वक्त उन्होंने एक माह बाद दोबारा छुट्टी पर आने की बात स्वजन को बताई थी।
By Ankur AgnihotriEdited By: Shyamji TiwariUpdated: Sun, 20 Aug 2023 06:24 PM (IST)
हथीन (पलवल), जागरण संवाददाता। लेह लद्दाख के न्योमा में सैनिक वाहन के खाई में गिरकर बलिदान हुए बहीन का लाल 25 वर्षीय मनमोहन सिंह अपने घर का इकलौता चिराग था। तीन बड़ी बहनें संतोष, राधा व मोनिका की पहले ही शादी हो चुकी है। माता माला देवी गृहणी है। पिता बाबू लाल शर्मा होड़ल में घड़ी बनाकर अपने परिवार का गुजारा करते हैं।
शुरू से सेना में भर्ती होने का था शौक
चार भाई बहनों में
मनमोहन सिंह सबसे छोटा था। घर का अकेला चिराग होने के नाते सभी स्वजन उसे प्यार से मोनू पुकारते थे। मनमोहन को शुरूआत से ही सेना में भर्ती का शौक था। इसलिए गांव के विद्यालय से बारहवीं कक्षा पास करके उन्होंने सेना में भर्ती होने के प्रयास शुरू कर दिए।
बेटे के गम में डूबे बाबू राम कहते हैं कि उनकी सेना की ललक यह रही कि सितंबर 2016 में उनका चयन सेना की आर्टलरी (तोपखाना विंग) में हो गई। उस वक्त पूरा परिवार मोनू के सेना में चयन से काफी खुश थे। सेना में चयन के बाद नासिक सेना सेंटर पर उन्होंने अपनी सेना की प्रशिक्षण पूरा किया। नासिक में प्रशिक्षण के बाद उसका तबादला राजस्थान से अलवर कर दिया।
छह माह पहले लद्दाख में हुई थी तैनाती
वहां तीन वर्ष बाद मनमोहन को पंजाब के फरीदकोट में भेजा गया। छह माह पहले पंजाब के फरीदकोट से उनकी यूनिट को लेह लद्दाख रवाना किया गया। छह माह से वे अपनी सेवाएं दे रहें थे। इस दौरान बाबू राम अपनी तीनों बेटियों संतोष, राधा व मोनिका के हाथ पीले कर चुके थे। तीनों बहनों की शादी होने के बाद 2021 में मनमोहन के स्वजन ने उसकी शादी नीमका गांव की बीए पास युवती चंचल से करा दी।
शादी के एक वर्ष बाद मनमोहन को एक बेटा ने जन्म दिया। घर के माहौल में काफी खुशी थी। स्वजन के अनुसार, करीब दो माह पहले मनमोहन एक माह की छुट्टी बिता कर गया है। तीन दिन पहले ही उन्होंने घर पर अपनी पत्नी चंचल व माता माला देवी से घर की कुशलक्षेम के बारे में फोन पर जानकारी ली थी। उस वक्त उन्होंने एक माह बाद दोबारा छुट्टी पर आने की बात स्वजन को बताई थी, लेकिन फोन के तीसरे ही दिन रविवार की सुबह मनमोहन के सड़क हादसे में मौत की खबर ने स्वजन की जमीन हिलाकर रख दी।
पीछे छोड़ गए एक वर्ष के बेटा
स्वजन को उसके एक वर्ष के बेटे तथा
जवान बहु चंचल के भविष्य को लेकर गहरी चिंता में डाल दिया। हालांकि, आस-पास व रिश्तेदारी के लोग दुखी परिवार का खूब ढांढस बंधाने में लगे हैं, लेकिन जिसका जवान बेटा व जवान पति समय से पहले इस तरह चला जाए, यह दुख तो वहीं परिवार समझ सकता है।
मेरा बेटा बहुत ही लायक था। अचानक उसके बलिदान ने पूरे परिवार को हिलाकर रखकर दिया। इकलौता चिराग चले जाने से उन्हें बेहद दुख है। लेकिन वह सेना में ड्यूटी के दौरान बलिदान हुआ इसका उन्हें गर्व भी है- बाबू लाल शर्मा, बलिदानी मनमोहन के पिता
हम चाचा ताऊ के एक दर्जन भाई हैं। सभी को सेना में जाने का शौक था। लेकिन मोनू खुश किस्मत था उनका चयन हो गया। लेकिन अब इस तरह बीच में छोड़ कर चले जाने का उन्हें गम भी ज्यादा है। मोनू की पत्नी पढ़ी लिखी है, सरकार सरकारी नौकरी दे दे तो इस परिवार की जिंदगी संवर जाएगी।
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सुभाष शर्मा , बलिदानी का ताऊ का लड़का
मोनू पढ़ने में बेहद होशियार था। देश के लिए बलिदान होने पर गर्व है। लेकिन जिस तरह से यह हादसा हुआ। उसे लेकर काफी दुख भी है। भगवान उनके परिवार को दुख सहने की क्षमता दे। -सुरेंद्र शर्मा, बलिदानी का चचेरा भाई
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