Palwal: पाकिस्तान से आए लोगों ने की थी रामलीला, उर्दू में लिखते थे चौपाई; ऐसे हुई थी शुरुआत
भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले पश्चिमी पंजाब सीमा प्रांत (अब पाकिस्तान) में होने वाली काव्यात्मक शैली में रामलीला का अंदाज बंटवारे के समय पाकिस्तान से पलवल आए लोग इस कला को जिंदा रखे हुए हैं। इसमें उर्दू के संवादों को हिंदी में अनुवाद किया गया है।
By Ankur AgnihotriEdited By: Nitin YadavUpdated: Thu, 12 Oct 2023 06:24 PM (IST)
अशोक कुमार यादव, पलवल। भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले पश्चिमी पंजाब सीमा प्रांत (अब पाकिस्तान) में होने वाली काव्यात्मक शैली में रामलीला का अंदाज बंटवारे के समय पाकिस्तान से पलवल आए लोग इस कला को जिंदा रखे हुए हैं। इसमें उर्दू के संवादों को हिंदी में अनुवाद किया गया है।
उर्दू में लिखे थे रामलीला की चौपाई
1947 में देश के विभाजन के समय सब कुछ पाकिस्तान में छोड़कर आए शरणार्थी भारत में भी आकर अपना रामलीला मंचन को मोह नहीं छाेड़ पाए जो लोग पाकिस्तान में रामलीला का मंचन करते थे। उन्हाेंने 1950 में रामलीला मंचन करने का फैसला किया।
उस दौरान रामलीला के संवाद और चौपाई उर्दू में लिखे हुए थे, लेकिन यहां आने के बाद कलाकारों ने कड़े परिश्रम के साथ इन्हें हिंदी में लिखा। प्रति वर्ष रामलीला का मंचन शुरू कर दिया।
बंटवारे के बाद शुरू हुई थी रामलीला
बता दें कि 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ था, तब हजारों हिंदू वहां से उजड़ कर पलवल के शरणार्थी कैंप में आकर ठहरे थे। कुछ समय बाद इसी स्थान को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नाम पर जवाहर नगर कैंप के रूप में पहचान बनी।
इस प्राचीन रामलीला में 18 साल तक अंगद की भूमिका निभाने वाले 83 वर्षीय मुखी बंसीलाल मुंजाल बताते हैं कि वे 1957 पलवल शहर से जवाहर नगर कैंप में आकर बसे थे। उस समय वे 15 साल के थे। 1964 में पहली बार उन्होंने कैंप में होने वाली रामलीला में हिस्सा लिया और स्टेज पर वानर व राक्षस का छोटा-मोटा रोल निभाया।
इसके बाद 1974 में पहली बार उन्हें मुख्य पात्र अंगद का किरदार निभाने का मौका मिला, इसके बाद कई बार अंगद, मल्लाह (केवट), खर-दूषण, सुखेन वैध, राजा जनक के दरबार में भाट का व अन्य किरदारों में अभिनय कर चुके है।
यह भी पढ़ें: Palwal: शिक्षकों की पिटाई का इतना खौफ कि आत्मघाती कदम उठाने से भी नहीं चूका छात्र, दूसरी मंजिल से कूदा और... उन्होंने ने बताया कि कैंप में इतिहासकार यशवंत सिंह द्वारा उर्दू में लिखित रामायण के आधार पर 1950 से रामलीला का मंचन शुरू हुआ। पहली बार रामलीला डायरेक्टर लखीराम के निर्देशन में हुई, जिसमें पहली बार राम की भूमिका मनोहर लाल छाबड़ा, रावण जेसाराम तथा सीता का अभिनय सुभाष मुखीजा ने किया था। संगीत रेमलदास मस्ताना को आज भी याद किया जाता है। अब इनमें से ज्यादातर कलाकारों का अब निधन हो चुका है।
उन्होंने बताया कि फरीदाबाद में होने वाली श्रद्धा रामलीला कमेटी भी पलवल जवाहर नगर कैंप के कलाकारों की ही हैं, यहां से जो फरीदाबाद जाकर बस गए उन्होंने वहां रामलीला का मंचन शुरू कर दिया वे स्वयं भी फरीदाबाद श्रद्धा रामलीला में अभिनय कर चुके है।
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