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नहीं भूलते दहशत के वो दिन, हरियाणा में लोगों को पकड़-पकड़कर की गई थीं नसबंदियां

हरियाणा में 1975 में लगाए गए आपातकाल की दहशत को आज भी इसे झेले चुके लोग भूल नहीं पाए हैं। लोगों को जबरन पकड़ कर उनकी सामूहिक नसबंदी कर दी जाती थी।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Thu, 25 Jun 2020 05:45 PM (IST)
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नहीं भूलते दहशत के वो दिन, हरियाणा में लोगों को पकड़-पकड़कर की गई थीं नसबंदियां
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। एक नवंबर 1966 को अस्तित्व में आए हरियाणा को अपने जन्म के नौ साल के छोटे से अंतराल के बाद ही आपातकाल की प्रताडऩा का शिकार होना पड़ गया था। यह दौर वह था, जब पूरे देश के मुकाबले हरियाणा के लोगों को सबसे अधिक नसबंदी का शिकार होना पड़ा। रोहतक और अंबाला जेल लोगों से खचाखच भर चुकी थीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के निर्देश पर हरियाणा को जितने लोगों की नसबंदी का टारगेट दिया गया था, उससे चार गुणा अधिक नसबंदियां की गई।

नया राज्य बनने के नौ साल बाद ही हरियाणा को झेलनी पड़ी आपातकाल की पीड़ा

इसके पीछे सोच हालांकि परिवार नियोजन की व्यवस्था बहाल करने की बताई गई थी, लेकिन नसबंदी के नाम पर लोगों का जमकर उत्पीडऩ हुआ और इसका विरोध करने वालों पर खूब अत्याचार किये गए। नसबंदी से बचने के लिए लोग उस समय छिपते फिरते थे और घरों से बाहर शौच के लिए जाने से भी डरने लगे थे।

हरियाणा की मनोहर लाल सरकार ने पहली बार आगे आते हुए आपातकाल का दंश सामने लाती 'शुभ्र ज्योत्सना' नामक पुस्तक तैयार कराई है, जिसमें 27 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के आपातकाल के अंधेरे के खिलाफ संघर्ष गाथा का बखूबी जिक्र है। इस किताब में आपातकाल का शिकार हुए लोगों की आपबीती को बड़ी ही साफगोई वाले अंदाज में सामने लाया गया है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में आपातकाल एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है। उस समय देश में खौफ की काली चादर और आतंक का साम्राज्य था। अपवादों को छोड़कर न्यायपालिका भी सहम गई थी। आतंक के इस साये से हरियाणा भी अछूता नहीं रहा।

बंसीलाल और संजय गांधी की जोड़ी ने हरियाणा में टारगेट से चार गुणा अधिक कराई नसबंदियां

8 जनवरी 1975 को पहली बार देश में आंतरिक आपातकाल लगाने का सुझाव आया था। यह सुझाव पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबी सिद्धार्थ शंकर रे ने दिया था। उस समय हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल थे।

नसबंदी के डर से लोग शौच के लिए भी जाने से डरने लगे थे, छिपकर जाते थे बाहर

उस समय इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांणी के करीबी लोगों में चौधरी बंसीलाल विशेष तौर पर शामिल हुआ करते थे। जब आपातकाल लगाने का प्रस्ताव इंदिरा गांधी के सामने आया था, तब बंसीलाल ने यहा तक कह डाला था कि बहनजी, आप विरोधियों को मेरे सुपुर्द कर दो। मैं इन सबको ठीक कर दूंगा। आप बहुत भली और विनम्र हैं। मैंने अपनी कार्यशैली से अपने प्रदेश में ऐसे लोगों को ठीक कर दिया है।

रोहतक और अंबाला जेल में बंद लोगों पर हुए सबसे ज्यादा अत्याचार

चौधरी बंसीलाल उन दिनों पहले से ही इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के विश्वासपात्र लोगों में शामिल थे। उस समय संजय गांधी की उम्र सिर्फ 28 साल की थी। शुभ्र ज्योत्सा के मुताबिक न केवल हरियाणा बल्कि पूरे देश का प्रशासनिक अमला उन दिनों संजय गांधी से डरता था। उनके सलाहकारों में चौधरी बंसीलाल, यशपाल कपूर, आरके धवन, योगी धीरेंद्र ब्रह्मचारी और ओम मेहता शामिल थे। इमरजेंसी के दौरान 20 जून को जब दिल्ली में बोट क्लब पर एक बड़ी रैली की गई थी, तब उसे सफल बनाने में चौ. बंसीलाल का सबसे ज्यादा योगदान रहा था।

संजय गांधी की कार फैक्टरी के लिए बंसीलाल ने गुरुग्राम में दी थी 290 एकड़ जमीन

संजय गांधी को छोटी कारें काफी पसंद थी। दिल्ली से सटे गुरुग्राम में संजय गांधी की कार फैक्टरी के लिए उस समय चौ. बंसीलाल ने 290 एकड़ जमीन अधिगृहीत की थी। मारुति को बेहद सस्ती दरों पर यह जमीन दी गई थी। सरकारी ऋण की व्यवस्था भी तब सरकार ने की। आपातकाल के दौरैान जब लोगो की गिरफ्तारी के लिए सूचियां बनी तो सबसे ज्यादा गाज जनसंघ और आरएसएस के लोगों पर गिरी। फिर समाजवादियों, विरोध कर रहे कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं और दूसरे लोगों को निशाने पर लिया गया।

हरियाणा में लक्ष्य से चार गुणा अधिक लोगों की हुई थी नसबंदी

'शुभ्र ज्योत्साना' से पता चलता है कि संजय गांधी ने परिवार नियोजन खासकर नसबंदी के लिए सभी मुख्यमंत्रियों को कड़े निर्देश दे रखे थे। हरियाणा इस आदेश का अनुपालन करने में शिखर पर था। यहां लक्ष्य से चार गुणा अधिक नसबंदियां हुईं। मध्य प्रदेश में साढ़े तीन गुणा वृद्धि हुई। दिल्ली में लक्ष्य 29 हजार लोगों की नसबंदी का था, लेकिन इसके विपरीत एक लाख 30 हजार लोगों की नसबंदी कर दी गई।

इसी लक्ष्य प्राप्ति के दौरान हरियाणा में 164 अविवाहित लोगों की भी नसबंदी कर दी गई थी। प्रशासनिक अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश था कि जिस ब्लॉक में नसबंदी के कम केस हों, वहां के अफसर-कर्मचारियों का वेतन रोक लिया जाए। वेतन अदायगी के लिए पांच-पांच नसंबदी केस लाना अनिवार्य था। कई मामलों में सरकारी कर्मचारी नसबंदी के लिए लोगों को अपने वेतन का कुछ हिस्सा भी देने लगे थे, ताकि उनके टारगेट पूरे हो सकें। स्कूलों में परिवार के तीसरे या चौथे बच्चे का प्रवेश तब तक वॢजत कर दिया गया था, जब तक परिवार के मुखिया की नसबंदी की रिपोर्ट न आ जाए।

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