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'किंग मेकर वाली जजपा इस बार कितनी मजूबत', दुष्यंत चौटाला बोले- ताला भी हमारा, चाबी भी हमारी, किसी को छल्ला..., पढ़ें पूरा इंटरव्यू

Dushyant Chautala Interview अब जजपा और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसे जाट और दलित का गठजोड़ के तौर पर देखा जा रहा है। भाजपा के साथ सत्ता के सफर से लेकर विधानसभा चुनाव के रण में उठाए जा रहे मुद्दों पर दैनिक जागरण के राज्य ब्यूरो प्रमुख अनुराग अग्रवाल ने दुष्यंत चौटाला से विस्तृत बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश...

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Thu, 26 Sep 2024 04:05 PM (IST)
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पूर्व डिप्टी सीएम एवं जननायक जनता पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष दुष्यंत चौटाला का इक्सक्लूसिव इंटरव्यू।
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। प्रदेश में सभी सीटों पर त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय मुकाबला बना हुआ है। अभी तक यही माहौल है। हर सीट फंसी हुई है। यह कहना गलत है कि कांग्रेस और भाजपा में ही आमने-सामने की टक्कर है। प्रदेश की राजनीति में करीब छह साल पहले सक्रिय हुई जननायक जनता पार्टी (जजपा) अब इस मुकाम पर है कि उसकी चर्चा किए बिना राजनीतिक चर्चा अधूरी है।

अनुशासनहीनता के आरोप में साल 2018 में इनेलो से निष्कासित दो भाइयों-दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला ने जीरो से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। छोटे से राजनीतिक सफर में कई चुनाव लड़े और जीते। दुष्यंत चौटाला की जजपा पूरे साढ़े चार साल तक भाजपा के साथ सत्ता में रही। साल 2019 के विस चुनाव के दौरान दुष्यंत चौटाला ने उस समय कांग्रेस व भाजपा के बागियों को दिल खोलकर टिकट दिये थे। 10 विधायक चुनकर आये।

दुष्यंत चौटाला को झेलने पड़े कई उतार-चढ़ाव

दुष्यंत ने उस समय यह कहते हुए कांग्रेस के साथ जाने से मना कर दिया था कि उनके दादा ओमप्रकाश चौटाला व पिता डा. अजय सिंह चौटाला को बिना किसी गलती के जेल पहुंचाने वाली कांग्रेस है। इसलिए उन्हें कांग्रेस के बजाय भाजपा के साथ जाना मंजूर है। भाजपा ने दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम बना दिया।

दुष्यंत चौटाला को कई उतार-चढ़ाव भी झेलने पड़े। खिलाड़ियों और किसानों के आंदोलन हुए। दुष्यंत चौटाला पर आंदोलनकारियों के समर्थन में डिप्टी सीएम का पद छोड़ने का दबाव बना, लेकिन उन्होंने यह दुहाई देते हुए कि बिना राज के लोगों के काम नहीं हो सकते, सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखी। पढ़िए दुष्यंत चौटाला का खास इंटरव्यू...

सवाल- साल 2019 के विधानसभा चुनाव में 10 सीटें जीतकर आपकी जननायक जनता पार्टी किंगमेकर की भूमिका में थी। इस बार के चुनाव से पहले ही सात विधायक छोड़कर चले गये। चुनाव में अपनी पार्टी को कहां खड़ा पाते हैं?

जवाब– पिछले चुनाव में हमारी चाबी से ही सत्ता का ताला खुला था। इस बार ताला भी हमारा होगा और चाबी भी हमारी होगी। यदि किसी दूसरे दल को इस ताला-चाबी का छल्ला बनना है तो वह आ सकता है। रही विधायकों के साथ छोड़कर जाने की बात तो यह हर दल में होता है।

अवसरवादी लोगों की कहीं कमी नहीं होती। वह आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन प्रदेश की जनता ऐसे लोगों की पहचान कर लेती है।

सवाल- जजपा और आसपा के गठबंधन को जाट-दलित का गठजोड़ कहा जा रहा है। इस गठबंधन को इस बार राज्य में कितनी विधानसभा सीटों पर जीत की उम्मीद है?

जवाब– हर चीज को जातीय नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। दो माह पहले तक मुझे और मेरी पार्टी को जाटों की पार्टी के रूप में कहा जा रहा था। अब चंद्रशेखर आजाद आ गये हैं तो जाटों के साथ दलितों का गठजोड़ कह दिया गया है। आप ऐसा भी सोच सकते हैं कि मैं भी युवा हूं और चंद्रशेखर आजाद भी युवा हैं।

दो युवा मिलकर सकारात्मक और विकासात्मक राजनीति की दिशा देने के लिए चुनावी रण में हैं। राज्य में युवाओं की संख्या 50 से 60 प्रतिशत है। हम दोनों इनका प्रतिनिधित्व कर उनके हितों की आवाज बनेंगे। हमारी पिछली बार से डबल यानी 20 से 25 सीटें आ सकती हैं। इसी आधार पर कह रहा हूं कि ताला भी हमारा होगा और चाबी भी हमारी होगी।

सवाल- भाजपा तीसरी बार और कांग्रेस 10 साल बाद सत्ता में आने को लेकर आशान्वित हैं। दोनों दल आमने-सामने की टक्कर मानकर चल रहे हैं। बाकी किसी दल को मुकाबले में नहीं मानते। आप क्या कहेंगे?

जवाब– यह उनकी गलतफहमी है। कोई भी विधानसभा सीट ऐसी नहीं है, जहां मुकाबला त्रिकोणीय अथवा चतुष्कोणीय ना हो। हर सीट फंसी हुई है। इसलिए यह कहना गलत है कि कांग्रेस और भाजपा में ही आमने-सामने की टक्कर है। अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में हमने राज्य को विकास की ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

सड़कों और हाईवे का निर्माण किया। पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण दिया। किसानों को उनकी फसल के पूरे पैसे और समय से पैसे दिलवाए। अब 24 घंटे में फसल बिक जाती है और 48 घंटे में किसान के खाते में पैसा आ जाता है।

सवाल- तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन के दौरान किसान संगठन और आपके समर्थक यह चाहते थे कि आपको भाजपा का साथ छोड़कर उनके साथ धरने पर बैठना चाहिये, आप सत्ता में शामिल रहे। इसका कितना असर रहेगा?

जवाब– यह उस समय लोगों की भावनाएं थीं। मुझसे समझने में चूक हुई। पूरा जनमानस भाजपा के विरुद्ध था। इस बात का मुझे अहसास और अफसोस दोनों है। यदि मैं उस समय भाजपा का साथ छोड़कर किसानों के बीच आकर बैठ जाता तो आज विरोधी हमलावर नहीं होते।

मुझसे भी गलती हुई है। ताऊ देवीलाल कहा करते थे कि बिना राज के लोगों के काम कराने बहुत मुश्किल होते हैं। यदि मैं उस समय लोगों की भावनाओं को गहराई से समझ लेता तो मेरे ऊपर आज अंगुली नहीं उठती। राजनीति में अब मैं 36 साल का हूं। जब 72 साल का हो जाऊंगा तो और परिपक्वता आएगी।

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सवाल- पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कहते हैं कि क्षेत्रीय दलों का अब कोई वजूद नहीं रह गया। उनकी भूमिका वोट काटू दलों के रूप में है, जिन्हें लोग नकार चुके हैं। क्या कहेंगे?

जवाब– अभी तो विधानसभा चुनाव शुरू हुआ है। अभी से ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। प्रदेश की जनता ऐसे नेताओं का गुरूर तोड़ेगी। उन्हें क्षेत्रीय दलों की भूमिका से अवगत कराएगी। बहुत से उदाहरण सामने हैं, जहां क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं।

प्रदेश के हितों को जितना गहराई से क्षेत्रीय दल समझकर उनका समाधान करा सकते हैं, वह राष्ट्रीय दल नहीं कर सकते। कोई भी राष्ट्रीय पार्टी क्षेत्रीय दलों की गंभीरता और मौजूदगी को नकार नहीं सकती।

सवाल- जजपा और आसपा गठबंधन को आप 20 से 25 सीट मिलने का दावा कर रहे हैं। आंकड़े के हिसाब से कांग्रेस और भाजपा को कितनी-कितनी सीटें देना चाहेंगे।

जवाब– सीटें तो प्रदेश की जनता देगी, लेकिन मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा। त्रिशंकु विधानसभा बनेगी और इसमें हमारी अहम भूमिका रहने वाली है। एक बात और बता दूं, चुनाव में जातीय समीकरणों से ज्यादा लोकल चेहरे और लोकल मुद्दे हावी होते दिखाई दे रहे हैं। यह चुनाव लोकल इश्यू पर लड़ा जा रहा है।

सवाल- कांग्रेस व आपके विरोधी अक्सर यह आवाज उठाते हैं कि साल 2019 में भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़ते हुए वोट मांगे थे, लेकिन आपने उसी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। क्या प्रतिक्रिया है?

जवाब– पिछली बार चुनाव में उतरते हुए यह नहीं सोचा था कि किसके साथ जाना है और किसको साथ लेना है। प्रदेश में स्थिर सरकार बने, जननायक जनता पार्टी के वादे पूरे हों, इन वादों को पूरा करने के लिए जिसने हमें भरोसा दिलाया, हम उसके साथ गये।

विपक्ष में बैठकर तो जनता से किये वादे पूरे नहीं किये जा सकते थे। अगर कोई यह सोचे कि हम विपक्ष में बैठने के लिए विधायक चुनकर आएं तो यह तो कोई बात नहीं हुई। सबकी इच्छा होती है कि वह सरकार बनाए और सरकार में शामिल होकर अपने प्रदेश की जनता से किये वादे पूरा करे।

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सवाल- भाजपा के साथ आपने लंबे समय तक काम किया। पूर्व में भी ओमप्रकाश चौटाला का परिवार भाजपा के साथ रहा है। भाजपा की क्या स्थिति आपको नजर आती है?

जवाब– मुझे भाजपा के अच्छे नंबर आते दिखाई नहीं दे रहे हैं। मैं तो यह कहता हूं कि कौन मेरे पीछे आयेगा, यह देखने वाली बात है। आज बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतिश कुमार 42 विधायकों के साथ आरजेडी में भी सरकार चला गये और अब भी चला रहे हैं। नीतीश कुमार हरियाणा से राजनीति सीख बिहार गये थे।

सवाल- भाजपा और कांग्रेस के साथ आपके विरोधी आपकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा रहे हैं। कैसे देखते हैं?

जवाब– मेरी क्रेडिबिल्टी (विश्वसनीयता) पर सवाल उठाने वालों की विश्वसनीयता खुद ही संदिग्ध है। मैंने भाजपा के साथ विश्वासघात नहीं किया। अपने चुनावी वादे पूरे किये। मैं कुलदीप बिश्नोई नहीं बन सकता, जो कांग्रेस छोड़कर फिर अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर ले और बाद में अपने बेटे के टिकट के लिए भाजपा के दरवाजे पर मत्था रगड़े।

मैं बीरेंद्र सिंह नहीं बन सकता, जो पहले कांग्रेस से गये और फिर कांग्रेस के टिकट पर अपने बेटे को चुनाव लड़वा रहे हैं।

सवाल- राजनीति में अक्सर इस बात के कयास लगाए जाते हैं कि चौटाला परिवार फिर से एक हो सकता है। इस चर्चा में आपको किसी तरह की संभावना नजर आती है।

जवाब– जजपा और इनेलो अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, फिर संभावना का सवाल कैसे पैदा हो सकता है। मेरे पिता जी ने अक्सर कहा कि यदि बड़े चौटाला साहब चाहेंगे तो हमारा परिवार एक हो सकता है। हमने पार्टी नहीं छोड़ी थी, बल्कि हमें जबरदस्ती निष्कासित किया गया था। हम कहां जाते। हमने अपना झंडा और अपने डंडे से नई राजनीति आरंभ की। मैं अभय चौटाला को गंभीर पालिटिशियन नहीं मानता।

खास बातें

  1. जजपा और आसपा का गठबंधन जाट-दलित नहीं, बल्कि दो युवाओं का गठबंधन
  2. इस बार हमारी 20 से 25 सीटें आएंगी, राज्य में त्रिशंकु विधानसभा बनेगी
  3. कोई भी सीट ऐसी नहीं, जहां मुकाबला तिकोना अथवा चतुष्कोणीय ना हो
  4. कोई भी राष्ट्रीय पार्टी राज्य के क्षेत्रीय दलों की गंभीरता और मौजूदगी को नकार नहीं सकती
  5. अगर कोई यह सोचे कि हम विपक्ष में बैठने के लिए विधायक चुनकर आएं तो यह सही नहीं
  6. मेरी विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाले अपनी विश्वसनीयता की चिंता करें
  7. इस बार चुनाव में जातीय समीकरणों से अधिक स्थानीय चेहरे और स्थानीय मुद्दे हावी होते दिखाई दे रहे हैं। यह चुनाव इन्हीं स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जा रहा है।
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