गुरु पूर्णिमा पर सियासी धुरंधरों के गुरुओं को शिष्यों पर है गर्व, जानें नेताओं के बारे में क्या हैं शिक्षक
गुरु पूर्णिमा पर हरियाणा के सियासी नेताओं केे बारे में उनके गुरुओं ने अपने विचार साझा किए। शिक्षकों को अपने इन पूर्व शिक्षों पर नाज है।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Sun, 05 Jul 2020 01:02 PM (IST)
चंडीगढ़, जेएनएन। राजनीति हो या खेल अथवा कोई और पेशा....हर क्षेत्र में कोई न कोई किसी का गुरु जरूर होता है। जब कोई शिष्य देश, समाज और अपनी फील्ड में बुलंदियां छूने लगे तो गुरू का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। कुछ शिष्य ऐसे होते हैं, जो जिंदगी के किसी भी मुकाम पर पहुंच जाएं, मगर अपने गुरु को नहीं भूलते, लेकिन ऐसे शिष्यों की भी कमी नहीं है, जो अपने गुरु को याद तक नहीं रखते। इसके विपरीत गुरु गुरु ही होता है। उसे अपने तमाम शिष्यों की अच्छाइयों, खामियों और खासियत के बारे में बारीकी से पता होता है। गुरु पूर्णिमा पर कुछ सियासी नेताओं के बारे में पूर्व शिक्षकों ने अपने विचार साझा किए हैं। उनको अपने इन पूर्व शिष्यों पर गर्व है।
दीपेंद्र में राजनीति और दुष्यंत में पढऩे की ललक, अजय व अभय शुरू से धुरंधरआज गुरु पूर्णिमा है। राजनीति के युवा चेहरों के रूप में स्थापित कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा, हरियाणा के डिप्टी सीएम एवं जजपा संयोजक दुष्यंत चौटाला, इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला और उनके बड़े भाई अजय सिंह चौटाला के शैक्षिक गुरुओं से हमने उनके बचपन के बारे में जानने की कोशिश की। आइये, जानते हैं, इन राजनेताओं के गुरु अपने शिष्यों को बचपन में कैसे देखते थे।
'पढ़ाई, क्रिकेट और राजनीति के बचपन से ही तलबगार थे दीपेंद्र हुड्डा'कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य एवं रोहतक से सांसद रह चुके दीपेंद्र सिंह हुड्डा की पांचवीं तक की पढ़ाई रोहतक के वंडर लैंड स्कूल में हुई। नौवीं और दसवीं उन्होंने मेव कालेज अजमेर (राजस्थान) से की। 11 वीं व 12वीं दिल्ली के डीपीएस आरकेपुरम में पढ़े। इसके बाद इंजीनियरिंग बिरला इंस्टीट्यूटल से की। इंफोसिस बेंगलोर में सर्विस करने के बाद यूए के एमबीए फाइनेंस में की तथा सांसद रहते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की। एक साल तक स्टार क्रिकेटर राजेंद्र गोयल से उन्होंने क्रिकेट की कोचिंग भी ली।
'' वह पढ़ाई, क्रिकेट और राजनीति के खूब तलबगार हैं। दीपेंद्र शुरू से ही पढ़ाई में खूब दिलचस्पी रखते थे। उन्हेंं बार-बार किसी भी चीज की गहराई में जाने की ललक रहती थी। वह किसी भी विषय के बारे में बहुत बारीकी से जानना चाहते थे। राजनीतिक घराने से होने के कारण उनकी राजनीति में भी रुचि थी। उनके सवाल और जवाब तथा पढऩे लिखने की ललक देखकर लगता था कि वह राजनीति के बड़े मुकाम पर पहुंचेंगे और वह बात आज सच साबित होती दिखाई दे रही है। उनके पिता चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अपने बेटे की पढ़ाई की खूब चिंता रहती थी। उनका मां आशा हुड्डा लगातार बच्चे की पढ़ाई के बारे में अपडेट लेती थी। दीपेंद्र ऐसे शिष्यों में हैं, जिनकी जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम हैं।
- मैडम पी केसवानी, पूर्व शिक्षिका, वंडर लैंड स्कूल, रोहतक।
-------'जब मैंने दुष्यंत को दस नंबर दिए मगर उसने कहा मेरे तो नौ ही सवाल ठीक हैं'
'' दुष्यंत चौटाला की अधिकतर पढ़ाई हरियाणा से बाहर और विदेशों में हुई है, लेकिन प्राइमरी तक दुष्यंत चौटाला मेरे पास कोचिंग लेने आया करते थे। पढऩे में वह शुरू से होशियार थे। दुष्यंत जब छोटा था, तब भी अपनी बात बड़ी बेबाकी से रखता था और ज्यादातर समय पढऩे में बिताता था। एक बार मैंने टेस्ट में उन्हेंं दस में से दस नंबर दे दिए गए। नंबर देने के बाद दुष्यंत ने टेस्ट को पढ़ा और एक उत्तर को खुद ही गलत बता दिया। तब दुष्यंत बोला, दादा जी मेरे नौ सवाल ठीक हैं, नौ के ही नंबर दो वरना घर पर मम्मी डांटेगी। दुष्यंत हमेशा मुझे दादा गुरु कहते हैं। अब भी कुछ समय पहले मिलकर गए हैं। जब भी मैं उनसे पूछता था कि बड़े होकर क्या बनोगे तो उनका एक ही उत्तर होता था, बड़े दादा (चौधरी देवीलाल) कहते हैं कि बड़ा होकर मैं बड़ा नेता बनूंगा। उन्होंने कभी इसके अलावा दूसरा शब्द नहीं बोला। दुष्यंत कोचिंग के दौरान सवाल-जवाब बहुत करता था। तब भी कहता था कि दादा जी पहले अंग्रेजी पढ़ाओ। अंग्रेजी सीखने की उनमें बहुत ललक थी।
- मास्टर इंद्राज सिंह साहू, पूर्व हेड मास्टर, उम्र 91 वर्ष, सिरसा
-------रणजीत सिंह की शिकायत पर अजय और अभय के प्रति सख्त हो गए थे शास्त्री जी
पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला के बेटे अजय सिंह तथा अभय सिंह सिरसा जिले के चौटाला गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। अजय आठवीं में था तो अभय सातवीं में। सामान्य लड़कों की तरह दोनों स्कूल आते थे। अभय सिंह की खेलों में रुचि थी। दोनों की गैर हाजिरी मुझे कई बार अखरती थी। उनका मन पढ़ाई में कम और राजनीति में ज्यादा था। एक बार तो अजय सिंह की हाजिरी कम होने के कारण उन्हेंं परीक्षा से वंचित करने का निर्णय भी ले लिया गया था। बाद में अजय सिंह का दाखिला शंभु दयाल स्कूल सोनीपत में करा दिया गया। अभय सिंह को भी वहीं शिफ्ट किया गया।
'' दोनों भाइयों ने सोनीपत से ही आठवीं पास की। वर्ष 1975 की बात है। उन दिनों रणजीत सिंह बठिंडा में रहते थे। सप्ताह बाद वह गांव चौटाला लौटते थे। एक दिन उसके पास अजय और अभय सिंह की शिकायत लेकर आए कि दोनों गैर हाजिर क्यों रहते हैं। आप थोड़ी सख्ती कीजिए। मैं कक्षा इंचार्ज था। सख्त मिजाज था। दोनों मुझसे डरते थे। मेरे डांटने के बाद विद्यालय में वह उपस्थित रहने लगे थे, लेकिन मुझे कहीं न कहीं यह आभास जरूर था कि वह कुछ ऐसा करेंगे, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
- जयदेव शास्त्री, सेवानिवृत्त संस्कृत अध्यापक, चौटाला (सिरसा)।
(प्रस्तुति - अनुराग अग्रवाल, ओपी वशिष्ठ, सुधीर आर्य एवं डीडी गोयल)
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