केजरीवाल और अखिलेश का साथ मिलता तो बढ़ती हुड्डा की ताकत, हरियाणा में इंडी गठबंधन से कैसे बदल जाते सियासी समीकरण
हरियाणा चुनाव में कांग्रेस ने कई गलतियां कीं जिससे वह सत्ता से दूर हो गई। आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन न करना सबसे बड़ी गलती थी। इन दोनों दलों के साथ गठबंधन करने से कांग्रेस की जीत सुनिश्चित हो सकती थी। राहुल गांधी आईएनडीआईए गठबंधन के साथ चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार को लगा कि इसकी जरूरत नहीं है।
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस ने एक नहीं, बल्कि कई ऐसी गलतियां की हैं, जिनकी वजह से वह सत्ता के करीब होते हुए भी सत्ता से दूर हो गई।
लोकसभा चुनाव में आईएनडीआईए गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी से मिलकर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था और पांच सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन विधानसभा चुनाव में अपनी जीत को लेकर अति आत्मविश्वास से ग्रसित कांग्रेस न तो आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल का साथ ले पाई और न ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की गठबंधन में चुनाव लड़ने की पेशकश को स्वीकार कर सकी।
राहुल गांधी चाहते थे इंडी गठबंधन का साथ
प्रदेश में करीब एक दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस की हार का अंतर बहुत कम रहा है। इन सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को कांग्रेस के पराजित उम्मीदवारों की हार के अंतर से अधिक वोट मिले हैं। कांग्रेस इस चुनाव में यदि अपनी जिद छोड़कर अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल को साथ लेकर चलती, तो प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर कुछ अलग ही होती।यह भी पढ़ें- 'जज्बे को सदियों तक याद रखा जाएगा', हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव पर क्या बोले CEC राजीव कुमार?
कांग्रेस के रणनीतिकार लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार यह दावा करते रहे कि हरियाणा में उन्हें किसी दल के साथ गठबंधन करने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी चाहते थे कि राज्य में कांग्रेस आईएनडीआईए के सहयोगी दलों समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी को साथ लेकर चुनावी रण में उतरे, लेकिन हरियाणा के रणनीतिकार राहुल गांधी को यह समझाने में कामयाब रहे कि यहां कांग्रेस को आप और सपा की जरूरत नहीं है।
कांग्रेस के रणनीतिकार लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार यह दावा करते रहे कि हरियाणा में उन्हें किसी दल के साथ गठबंधन करने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी चाहते थे कि राज्य में कांग्रेस आईएनडीआईए के सहयोगी दलों समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी को साथ लेकर चुनावी रण में उतरे, लेकिन हरियाणा के रणनीतिकार राहुल गांधी को यह समझाने में कामयाब रहे कि यहां कांग्रेस को आप और सपा की जरूरत नहीं है।
आप ने भी की ये गलती
चुनाव से पहले गठबंधन ना कर जो गलती कांग्रेस ने की है, उसी तरह की कुछ गलती आम आदमी पार्टी के राज्य स्तरीय नेताओं ने भी की है। राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं को आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के लिए तैयार कर लिया था। इस कड़ी में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया व आप के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा के बीच मुलाकात के कई दौर भी चले, लेकिन सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई।
इससे पहले कि दोनों दलों के बीच कोई अंतिम फैसला होता, आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुशील गुप्ता ने 20 प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी, जिससे कांग्रेस को यह कहने का मौका मिल गया कि गठबंधन होने से पहले ही आम आदमी पार्टी ने उसे तोड़ने की पहल कर दी है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।सपा को सीटे देने को नहीं तैयार हुआ कांग्रेस
समाजवादी पार्टी हरियाणा में दो से तीन सीटें कांग्रेस से मांग रही थी। अहीरवाल यादव बाहुल्य इलाका है, जहां अखिलेश यादव दो से तीन जनसभाएं कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल को बदल सकते थे, लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार समाजवादी पार्टी को यह सीटें देने को तैयार नहीं हुए। यहां तक कि गुरुग्राम जिले की सोहना विधानसभा सीट से पार्टी ने अपने मजबूत दावेदार जितेंद्र भारद्वाज का टिकट काटकर रोहताश खटाना को टिकट दे दिया। अब दिल्ली व उत्तर प्रदेश के चुनाव में इसी तरह के तेवर आप व सपा द्वारा कांग्रेस के प्रति अपनाए जा रहे हैं, लेकिन इन दोनों दलों के रणनीतिकारों को यह समझ में आ रहा है कि गठबंधन में चुनाव नहीं लड़ने का नुकसान क्या हो सकता है, यह प्रयोग उन्होंने हरियाणा में देख लिया है।एक प्रतिशत से भी कम मतों में हो गया सारा खेल
हरियाणा में कांग्रेस को 39.09 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी को 1.79 प्रतिशत वोट मिले हैं। भाजपा 39.94 प्रतिशत वोट लेकर अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में सफल रही। भाजपा व कांग्रेस में मुकाबला आमने-सामने का होने पर 0.85 प्रतिशत मतों में ही सारा खेल हो गया। कांग्रेस को 37 यानी बहुमत से नौ सीटें कम मिली हैं, जबकि भाजपा को 48 यानी बहुमत से दो सीटें अधिक मिली हैं। प्रदेश में सात जिले ऐसे हैं, जहां 10 से 12 सीटों पर यादवों का प्रभाव है। विधानसभा की सात सीटें ऐसी हैं, जिन पर इनेलो, बीएसपी और आप की वजह से कांग्रेस की हार हुई है। राज्य में करीब एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस, आप और सपा का गठबंधन होता तो चुनाव की दिशा कुछ और होती।इन सीटों से समझिए गठबंधन का महत्व
- जींद जिले की उचान कलां सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह 32 वोटों से हारे हैं। यहां पर आप को 2495 वोट मिले हैं।
- दादरी सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार की 1900 वोटों से हार हुई है। आम आदमी पार्टी को यहां 1400 वोट मिले हैं। इस सीट पर यादव भी हैं।
- असंध में कांग्रेस के शमशेर गोगी 2306 वोटों से हारे हैं। यहां आप उम्मीदवार को 4290 वोट मिले हैं।
- महेंद्रगढ़ में कांग्रेस के राव दान सिंह 2600 वोटों से चुनाव हारे हैं। यहां आम आदमी पार्टी को 1750 वोट मिले हैं। यह सीट यादव बाहुल्य है।