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तीन साल पहले बने हरियाणा प्रशासनिक ट्रिब्यूनल का नहीं मिला लाभ, खुद कानूनी पेचीदगियों में उलझा

हरियाणा में प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए गठित ट्रिब्यूनल कानूनी पेचीदगियों में उलझा हुआ है। इसके कारण ट्रिब्यूनल में सदस्यों की नियुक्तियां नहीं हो पाई है। इसके कारण मामले हाई कोर्ट में पहुंच रहे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Sun, 24 Jul 2022 06:25 PM (IST)
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खुद कानूनी पेचीदगियों में उलझा हरियाणा प्रशासनिक ट्रिब्यूनल। सांकेतिक फोटो

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए गठित प्रशासनिक ट्रिब्यूनल खुद कानूनी पेचीदगियों में उलझ गया है। तीन साल पहले हरियाणा प्रशासनिक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया था, लेकिन अधिसूचना जारी होने के तुरंत बाद इस पर हाई कोर्ट ने स्टे कर दिया था।

इन तीन सालों में हिमाचल प्रदेश, ओडिसा व आंध्र प्रदेश के प्रशासनिक ट्रिब्यूनल भी खत्म हो चुके हैं, जबकि हरियाणा के अधिकारियों व कर्मचारियों को अपने राज्य में गठित ट्रिब्यूनल को कोई फायदा नहीं हुआ। इसके अभाव में राज्य सरकार के अधिकारियों व कर्मचारियों से जुड़े करीब 350 केस पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में पहुंचे हैं, जिन पर या तो फैसला हो चुका अथवा सुनवाई जारी है।

हरियाणा प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की चेयरपर्सन के रूप में हाई कोर्ट की पूर्व रिटायर्ड न्यायाधीश जस्टिस स्नेह पराशर ने काम संभाल लिया था, लेकिन ट्रिब्यूनल के गठन की अधिसूचना के स्टे होने की वजह से उसमें न तो किसी न्यायिक और प्रशासनिक सदस्य की नियुक्ति हो पाई और न ही ट्रिब्यूनल के संचालन की प्रक्रिया संबंधी नियमावली बन सकी है।

इस वजह से तीन साल पहले बना ट्रिब्यूनल क्रियाशील नहीं हो पाया है। प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के दायरे में राज्य सरकार के विभागों में कार्यरत कर्मचारी और अधिकारी ही आते हैं। उनकी भर्ती प्रक्रिया, नियुक्ति एवं उनकी सेवा से संबंधित सभी प्रकार के कानूनी मामलों की अधीनस्थ अदालतों एवं हाई कोर्ट की बजाय ट्रिब्यूनल में ही सुनवाई होनी थी, जो कि नहीं हो पा रही है।

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार के अनुसार राज्य सरकार चाहे तो अधिसूचना जारी कर बोर्ड, निगम, विभिन्न प्राधिकरण, स्थानीय स्वशासन की शहरी एवं ग्रामीण संस्थाओं और सरकारी सोसायटी में कार्यरत कर्मचारियों को भी ट्रिब्यूनल के दायरे में लाया जा सकता है, लेकिन जिला अदालतों एवं राज्य विधानसभा के अधिकारी एवं कर्मचारी इसके दायरे में नहीं लाए जा सकते, क्योंकि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल कानून 1985 में उल्लेख है कि यह उन सभी पर लागू नहीं होगा।

ट्रिब्यूनल की चेयरपर्सन का वेतन 2.25 लाख रुपये मासिक

हेमंत कुमार के अनुसार चेयरपर्सन का नियुक्ति पत्र सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है, जिसे हरियाणा सरकार, मुख्य सचिव की वेबसाइट पर या केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है। 24 जुलाई 2019 को दिए गए एक आरटीआइ के जवाब में ट्रिब्यूनल की चेयरपर्सन का वेतनमान दो लाख 25 हजार रुपये (फिक्सड) बताया गया है।

चेयरपर्सन की नियुक्ति उनके पदभार ग्रहण करने के पांच वर्षों तक या उनकी आयु 68 वर्ष की होने तक या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, मान्य होती है। 25 जुलाई 2019 को रिटायर्ड जस्टिस पराशर ने ट्रिब्यूनल की चेयरपर्सन के तौर पर कार्यभार संभाल लिया था। उनकी जन्मतिथि 21 जुलाई 1955 है। ट्रिब्यूनल में चेयरपर्सन का कार्यभार ग्रहण करते समय उनकी आयु 64 वर्ष थी। यानी अगले वर्ष अर्थात 20 जुलाई 2023 तक या उनकी 68 वर्ष की आयु होने तक वह ट्रिब्यूनल की चेयरपर्सन रह सकेंगी।