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हरियाणा विधानसभा भंग, कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में नायब सैनी संभालेंगे मोर्चा

हरियाणा की 14वीं विधानसभा भंग हो गई। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने सरकार की सिफारिश मान ली है। राज्यपाल ने नई सरकार बनने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर नायब सिंह सैनी को कार्यभार संभालने का आदेश दिया है। संवैधानिक संकट के चलते विधानसभा भंग करने का यह पहला मामला है। बता दें कि प्रदेश में 5 अक्टूबर को चुनाव और 8 अक्टूबर नतीजे आएंगे।

By Nitish Kumar Kushwaha Edited By: Nitish Kumar Kushwaha Updated: Thu, 12 Sep 2024 09:18 PM (IST)
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राज्यपाल ने हरियाणा विधानसभा भंग करने की सिफारिश को स्वीकार कर लिया।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने 14वीं विधानसभा भंग कर दी है। प्रदेश सरकार की विधानसभा भंग करने की सिफारिश को स्वीकार करते हुए राज्यपाल ने नायब सैनी को नई सरकार बनने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने को कहा है।

प्रदेश में पांच अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होना है, जिसके नतीजे आठ अक्टूबर को आएंगे और दशहरा यानी 12 अक्टूबर तक नई सरकार का गठन हो जाएगा। राज्य सरकार ने छह माह के भीतर विधानसभा का सत्र नहीं बुला पाने के संवैधानिक संकट को टालने के लिए विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने से 52 दिन पहले विधानसभा भंग कराई है।

इस तरह के संवैधानिक संकट के बाद विधानसभा भंग करने का यह पहला मामला है। देश आजाद होने के बाद कभी ऐसी स्थिति नहीं आई। यहां तक कि कोरोना काल में भी हरियाणा में ऐसे संकट को टालने के लिए एक दिन का सेशन बुलाया गया था। इससे पहले भी हरियाणा विधानसभा तीन बार भंग हुई, लेकिन तब समय से पहले चुनाव करवाने के लिए ऐसा किया गया था।

राजभवन की ओर से गुरुवार को विधानसभा भंग करने की अधिसूचना जारी कर दी गई। मुख्यमंत्री नायब सैनी की अध्यक्षता में बुधवार शाम को मंत्रिमंडल की बैठक में विधानसभा भंग करने का निर्णय लेने के बाद राज्यपाल को इस संबंध में पत्र भेजा गया। हालांकि, मौजूदा 14वीं विधानसभा का कार्यकाल तीन नवंबर तक था, लेकिन संवैधानिक बाध्यता के चलते सरकार को पहले ही विधानसभा भंग करानी पड़ी।

हरियाणा में आखिरी विधानसभा सत्र 13 मार्च को हुआ था और संविधान के हिसाब से छह महीने के अंदर सत्र बुलाना जरूरी है। यह समय गुरुवार को पूरा हो रहा था, जबकि विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में सरकार के पास विधानसभा सत्र बुलाने की बजाय विधानसभा भंग करने का ही विकल्प बचा था।

विधानसभा भंग करने की अधिसूचना में राज्यपाल ने लिखा है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 174 के खंड (2) के उप-खंड (बी) द्वारा मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए मैं तत्काल प्रभाव से हरियाणा विधानसभा भंग करता हूं।

इसलिए पैदा हुआ सरकार के सामने संवैधानिक संकट

संवैधानिक मामलों के जानकार एडवोकेट हेमंत कुमार का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के तहत किसी भी राज्य की विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का समय नहीं होना चाहिए। हरियाणा के लिहाज से देखें तो यहां 13 मार्च 2024 को एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें सीएम नायब सैनी ने बहुमत साबित किया। इसके बाद छह महीने के भीतर यानी 12 सितंबर तक हर हाल में दूसरा सेशन बुलाना अनिवार्य था। सरकार ऐसा नहीं कर सकी।

आचार संहिता जल्दी लगना भी बड़ा कारण

संवैधानिक बाध्यता के बावजूद सरकार सेशन इसलिए नहीं बुला सकी, क्योंकि अचानक 15वीं विधानसभा के गठन के लिए चुनाव आचार संहिता लागू हो गई। सरकार इसे समय से भांप नहीं पाई थी। 17 अगस्त की जिस कैबिनेट में सरकार को सेशन के लिए फैसला लेना था, उससे एक दिन पहले ही 16 अगस्त को चुनाव आचार संहिता लग गई, जिसके बाद चुनावी गतिविधियां बढ़ गई और सरकार ने सेशन नहीं बुलाया।

90 सदस्यों की विधानसभा में 81 विधायक थे। 41 के बहुमत का आंकड़ा अकेले भाजपा के ही पास था, लेकिन भाजपा ने इस बार 14 विधायकों के टिकट काट दिए। ऐसे में सरकार कोई प्रस्ताव लाती तो क्रास वोटिंग के चलते प्रस्ताव गिर सकता था।

प्राकृतिक आपदा में ही नीतिगत फैसले लेने में सक्षम होगी सरकार

विधानसभा भंग होने के बाद अब विधायकों का कार्यकाल समाप्त हो गया है। वे पूर्व विधायक कहलाने लग गए हैं। उनकी सभी सुविधाएं खत्म हो गई हैं। नायब सिंह सैनी व उनके मंत्री कार्यवाहक के तौर पर कार्य करते रहेंगे, लेकिन वे कोई नीतिगत फैसले नहीं ले सकेंगे। हालांकि, कोई महामारी, प्राकृतिक आपदा या असुरक्षा जैसा मामला आता है तो फैसला लेने में सक्षम रहेंगे।

हरियाणा में पहले भी तीन बार भंग हो चुकी विधानसभा

-संवैधानिक मामलों के जानकार एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि फरवरी 1972 में कांग्रेस सरकार में बंसीलाल ने एक साल पहले विधानसभा भंग कराई थी। दिसंबर 1999 में इनेलो सरकार में ओमप्रकाश चौटाला ने 16 माह पहले विधानसभा भंग कराई। तीसरी बार अगस्त 2009 में कांग्रेस सरकार में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विधानसभा भंग कर समय से पहले चुनाव कराए। तीनों बार चुनाव समय से पहले कराने के लिए ऐसा हुआ था।

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