दल-बदलने पर भी नहीं होती कार्रवाई, संविधान में विधानसभा स्पीकर और उपाध्यक्ष के लिए क्या है खास नियम
Haryana News विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पर दलबदल विरोधी कानून लागू नहीं होता क्योंकि संवैधानिक व्यवस्था में वे मूल पार्टी की सदस्यता छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। इसका मुख्य उद्देश्य सदन में उनकी निष्पक्षता सुनिश्चित करना है। भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची के इसका प्रवधान है। हरियाणा में अशोक अरोड़ा एकमात्र विधानसभा अध्यक्ष थे जिन्होंने सत्तारूढ़ दल से त्यागपत्र दिया था।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पर दलबदल विरोधी कानून लागू नहीं होता। संवैधानिक व्यवस्था में विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष मूल पार्टी की सदस्यता छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं, ताकि सदन में वे खुद को तटस्थ रख सकें।
इसके बावजूद हरियाणा में अशोक अरोड़ा इकलौते विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं, जिन्होंने सत्तारूढ़ इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था। उनके अलावा किसी भी विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने मूल पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देने की हिम्मत नहीं दिखाई।
इन पर लागू नहीं होता दलबदल विरोधी कानून
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के जानकार हेमंत कुमार बताते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष अगर मूल पार्टी छोड़ते हैं तो उन्हें विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है।भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची ( जिसे आम भाषा में दल बदल विरोधी कानून कहा जाता है) के पांचवें पैरा में इसका स्पष्ट उल्लेख है। स्पीकर या डिप्टी स्पीकर के पद से स्वयं हटने या हटाए जाने के बाद वह विधायक पुनः अपनी मूल राजनीतिक पार्टी में सम्मिलित होने के लिए भी स्वतंत्र है और ऐसा करने पर भी उस पर दलबदल विरोधी कानून लागू नहीं होता।
अशोक अरोड़ा ने पेश किया था ऐतिहासिक उदाहरण
25 वर्ष पूर्व जुलाई 1999 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी बंसी लाल की सरकार का तख्ता पलटने के बाद जब चौधरी ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इनेलो की सरकार बनी तो थानेसर (कुरुक्षेत्र) से विधायक अशोक अरोड़ा (वर्तमान में कांग्रेस विधायक) को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया।विधानसभा अध्यक्ष बनते ही अरोड़ा ने इनेलो की सदस्यता छोड़कर हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में एक ऐतिहासिक एवं प्रशंसनीय उदाहरण पेश किया था, जिसे न तो उनसे पहले किसी ने किया था और न ही उनके बाद कोई विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष ऐसा करने की हिम्मत जुटा पाया।
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