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तो इस वजह से हरियाणा में जीती बाजी हार गई कांग्रेस! टिकटों का गलत बंटवारा भी एक बड़ा कारण

हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Election Result) में कांग्रेस की हार के पीछे टिकटों के गलत आवंटन को एक बड़ा कारण माना जा रहा है। कांग्रेस के आतंरिक सर्वे में अच्छे नंबर पाने वाले कई योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार कर दिया गया जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। कई सीटों पर बागी नेताओं की वजह से भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा।

By Anurag Aggarwa Edited By: Rajiv Mishra Updated: Tue, 15 Oct 2024 07:22 AM (IST)
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हरियाणा में टिकट आवंटन के अपने फार्मूले पर कायम नहीं रही कांग्रेस (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में टिकटों का गलत आवंटन भी कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण रहा है। जातिवादी राजनीति और नेताओं की आपसी गुटबाजी के अतिरिक्त अब कांग्रेस में टिकटों के गलत आवंटन को लेकर भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

कांग्रेस ने ऐसे नेताओं के टिकट काट दिए, जिनको सर्वे में पूरे नंबर मिले हुए थे, लेकिन वे टिकट आवंटित करने वाले नेताओं के निजी पैमाने पर खरा नहीं उतर पा रहे थे। कांग्रेस ने चुनाव से पहले दावा किया था कि सिर्फ जीतने वाले चेहरों पर दांव लगाया जाएगा और दो बार से अधिक चुनाव हारने वालों को टिकट नहीं मिलेंगे, लेकिन जब टिकटों के आवंटन की बारी आई तो रणनीतिकारों का यह पैमाना ध्वस्त हो गया।

बागी उम्मीदवारों मे डुबो दी नैय्या

कांग्रेस के रणनीतिकारों ने आधा दर्जन सीटों पर अपनी पार्टी के बागी उम्मीदवारों को भी बैठाने की जरूरत नहीं समझी। उनकी सोच रही कि कांग्रेस 55 से 65 सीटों पर चुनाव जीत रही है। ऐसे में यदि बागियों की वजह से एक-दो सीट हार भी गए तो सरकार बनाने की संभावनाओं पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा।

कांग्रेस के रणनीतिकारों की यही सोच उसके सरकार बनाने के इरादों पर भारी पड़ी है और पार्टी के अधिकतर ऐसे उम्मीदवार चुनाव हार गए, जिन्हें पैराशूट उम्मीदवार के रूप में चुनावी रण में उतारा गया था और वास्तविक जिताऊ उम्मीदवारों की दावेदारी को अनदेखा कर दिया गया था। कांग्रेस के बागियों को बैठाने की कोई कोशिश भी पार्टी के रणनीतिकारों ने नहीं की।

जिताऊ उम्मीदवारों के काटे टिकट

कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में तिगांव में पूर्व विधायक ललित नागर का टिकट काट दिया गया, जबकि वह जिताऊ स्थिति में थे। बल्लभगढ़ में पूर्व मुख्य संसदीय सचिव शारदा राठौर के स्थान पर कांग्रेस मुख्यालय की पसंद की उम्मीदवार को चुनावी रण में उतार दिया गया।

गोहाना में पूर्व विधायक जगबीर मलिक के प्रति भारी आक्रोश था, लेकिन उन्हें चुनावी रण में उतारा गया। खरखौदा में पूर्व विधायक जयवीर वाल्मीकि को लेकर लोगों में काफी गुस्सा था, लेकिन फिर भी उन्हें टिकट दिया गया। घरौंडा में तीन बार चुनाव हार चुके वीरेंद्र सिंह राठौर को टिकट दिया गया, जो कि चौथी बार चुनाव हार गए।

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चित्रा सरवारा की बगावत भी पड़ी भारी

कांग्रेस हाईकमान के सिफारशी प्रदीप नरवाल को बवानीखेड़ा में चुनावी रण में उतारा गया, जबकि उनका कोई जनाधार और पहचान नहीं थी। पटौदी में सुधीर चौधरी के स्थान पर पर्ल चौधरी को टिकट दे दिया गया। अंबाला छावनी में चित्रा सरवारा कांग्रेस की बागी उम्मीदवार थी, जिन्हें बैठाने की कोई कोशिश नहीं की गई, जिस कारण न तो चित्रा स्वयं जीती और न ही पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार परी को जीतने दिया।

तिगांव से बागी लड़े ललित नागर को मनाने के लिए भी कोई नेता उनके पास नहीं पहुंचा। यही स्थिति शारदा राठौर के मामले में रही। बहादुरगढ़ में कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र जून का विरोध था, लेकिन फिर भी उन्हें टिकट दिया गया। पानीपत ग्रामीण में सचिन कुंडू का जबरदस्त विरोध था, लेकिन कांग्रेस ने उन्हीं पर दांव खेला।

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