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Haryana Election 2024: सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी क्षेत्रीय दल कायम नहीं रख सके वजूद, इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गईं ये पार्टियां

Haryana Election 2024 सबसे पहले राव बीरेंद्र सिंह के बेटे राव इंद्रजीत वर्ष 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और तभी से केंद्र सरकार में राज्यमंत्री हैं। अब वे अपनी बेटी आरती राव को राजनीति में स्थापित करने के लिए अटेली से टिकट मांग रहे। भजन लाल के राजनीतिक वारिस कुलदीप बिश्नोई पुत्रवधू रेणुका बिश्नोई और पौत्र भव्य बिश्नोई भाजपा की राजनीति कर रहे हैं।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Sun, 01 Sep 2024 02:15 PM (IST)
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Haryana Election 2024: हरियाणा में क्षेत्रीय दल कायम नहीं रख सके अपना वजूद।

सुधीर तंवर, चंडीगढ़। हरियाणा में सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बावजूद क्षेत्रीय दल वजूद कायम नहीं रख पाए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी (विहपा), चौधरी भजन लाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) और बंसी लाल की हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी हैं।

पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल द्वारा बनाए इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन नहीं सुधरा तो क्षेत्रीय दल की मान्यता खत्म होने के साथ ही चश्मे का चुनाव चिह्न भी छिन जाएगा।

इनेलो से निकली जननायक जनता पार्टी (जजपा) अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है, जिसके दस विधायकों में से सात पार्टी से किनारा कर चुके हैं। कभी सत्ता की धुरी रहे चार पूर्व मुख्यमंत्रियों के वारिसों ने पहले कांग्रेस का हाथ पकड़ा और फिर बदली राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा का दामन थामने में देर नहीं लगाई।

राव बीरेंद्र सिंह के बेटे 2014 में भाजपा में हुए शामिल

इनमें सबसे पहले राव बीरेंद्र सिंह के बेटे राव इंद्रजीत वर्ष 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और तभी से केंद्र सरकार में राज्यमंत्री हैं। अब वे अपनी बेटी आरती राव को राजनीति में स्थापित करने के लिए अटेली से टिकट मांग रहे। इसी तरह प्रदेश के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे भजन लाल के राजनीतिक वारिस कुलदीप बिश्नोई, पुत्रवधू रेणुका बिश्नोई और पौत्र भव्य बिश्नोई भाजपा की राजनीति कर रहे हैं।

वर्तमान में आदमपुर से विधायक भव्य बिश्नोई फिर यहां से टिकट के दावेदार हैं। चौधरी बंसी लाल के परिवार की बात करें तो पूर्व सांसद श्रुति चौधरी को तोशाम से भाजपा का टिकट तय है। देवी लाल के परिवार से बिजली मंत्री रणजीत सिंह चौटाला और आदित्य देवीलाल भाजपा की राजनीति कर रहे हैं।

11 साल चली विशाल हरियाणा पार्टी

प्रदेश के पहले क्षेत्रीय राजनीतिक दल विशाल हरियाणा पार्टी की स्थापना राव बीरेंद्र सिंह ने 1968 में की थी। पहले ही विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 39 हलकों में चुनाव लड़ा और कुल 14.86 प्रतिशत वोट लेते हुए 12 विधानसभा सीटें जीतीं। आपातकाल के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आग्रह पर राव ने 23 सितंबर 1978 को पार्टी का कांग्रेस (आइ) में विलय कर दिया।

इनेलो तीन सीटें नहीं जीता तो मान्यता होगी खत्म

पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल ने 1987 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नाम से क्षेत्रीय दल बनाया था। प्रदेश को पांच बार मुख्यमंत्री देने वाला इनेलो आज संकट में है। 2014 के लोस चुनाव में दो सीटों हिसार व सिरसा पर शानदार जीत दर्ज करने वाला इनेलो पिछले आम चुनावों में सिर्फ 1.74 प्रतिशत वोट ले पाया।

आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी न्यूनतम तीन विधानसभा सीटें नहीं जीत पाई तो क्षेत्रीय दल की मान्यता खत्म हो जाएगी।

हविपा का कांग्रेस में विलय

1991 में बंसी लाल को कांग्रेस से निकाल दिया गया। 1996 में बंसी लाल ने हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना कर दी। तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनाव में 33 सीटें जीतकर भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाई।

शराबबंदी पर मतभेदों के चलते 1999 में गठबंधन टूटा और सरकार गिर गई। बंसी लाल का स्वास्थ्य खराब रहने लगा तो आठ साल बाद 2004 में हविपा का कांग्रेस में विलय कर दिया।

कुलदीप बिश्नोई नहीं संभाल पाए हजकां

2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को शानदार जीत दिलाने वाले भजन लाल की जगह पार्टी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बना दिया था। इससे दुखी होकर भजन लाल ने वर्ष 2007 में कांग्रेस से अलग होकर हजकां का गठन कर दिया।

2009 के विधानसभा चुनाव में हजकां ने छह सीटें जीती, लेकिन कुलदीप बिश्नोई विधायकों को संभाल नहीं पाए और चार विधायक पाला बदलते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री हुड्डा के साथ कांग्रेस में चले गए। 28 अप्रैल 2016 को फिर से हजकां का कांग्रेस में विलय हो गया।

संकट में जजपा

पारिवारिक और राजनीतिक मतभेदों के चलते देवी लाल के प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला ने 2018 में जजपा बनाई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में दस विधायकों के साथ गठबंधन सरकार में भागीदार रही जजपा विगत लोकसभा चुनाव में मात्र 0.87 प्रतिशत वोट हासिल कर सकी। वर्तमान में दस विधायकों में सात पार्टी छोड़ चुके हैं। ऐसे में जजपा के लिए विकट स्थिति आन पड़ी है।

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