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हरियाणा चुनाव: सत्ता पाने के लिए BJP-कांग्रेस की क्या है बड़ी ताकत? पढ़िए दोनों पार्टियों को किससे है बड़ा खतरा

हरियाणा चुनाव 2024 हरियाणा की कुर्सी प्राप्त करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों दावा कर रहे हैं। लेकिन दोनों पार्टियों को बागियों से काफी खतरा है। भाजपा जहां राज्य में तीसरी बार सरकार बनाने का दावा कर रही है वहीं कांग्रेस को 10 साल के इंतजार के बाद सरकार बनने का भरोसा है। पीएम मोदी और राहुल गांधी की रैली के बाद माहौल गरम हो गया है।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Thu, 03 Oct 2024 07:41 AM (IST)
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हरियाणा चुनाव: सत्ता पाने के लिए BJP-कांग्रेस की क्या है बड़ी ताकत?

अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। प्रदेश में पांच अक्टूबर को मतदान और आठ अक्टूबर को मतगणना के बाद पता चल जाएगा कि राज्य में किस दल की सरकार बन रही है। प्रदेश के चुनावी समर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की एक के बाद एक हुई रैलियों से राजनीतिक माहौल गर्म है।

भाजपा जहां राज्य में तीसरी बार सरकार बनाने का दावा कर रही है, वहीं कांग्रेस को 10 साल के इंतजार के बाद सरकार बनने का भरोसा है। भाजपा व कांग्रेस दोनों को सबसे अधिक खतरा अपनी पार्टियों के बागियों से है। पीएम मोदी और राहुल गांधी की रैलियों के बाद कांग्रेस व भाजपा दोनों का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है।

खुद की तराजू में तौल रहे लोग

पिछले चुनाव में भाजपा के विरुद्ध चुनावी रण में उतरी जननायक जनता पार्टी (जजपा) को लोग उसकी खुद की तराजू में तौल रहे हैं। कांग्रेस ने यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया कि जिस भाजपा के विरुद्ध जजपा ने पिछले चुनाव में वोट प्राप्त किये थे, उसी के साथ जजपा ने सरकार बनाई।

अब जजपा व सांसद चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन है। प्रदेश में इनेलो, बसपा और हरियाणा लोकहित पार्टी का गठजोड़ है।

भाजपा-कांग्रेस ने अपने सारे नेता और संसाधन झोंक दिए

इस गठबंधन को राज्य में कोई चमत्कार होने की उम्मीद है। दलित व जाट राजनीति को यह गठबंधन हवा दे रहा है। भाजपा और कांग्रेस ने अपने सारे नेता और संसाधन झोंक दिए हैं। कांग्रेस का चुनाव प्रचार पहले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रोहतक के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के भरोसे था।

राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के चुनाव प्रचार में उतरने के बाद कुमारी सैलजा समेत कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने पूरी सक्रियता से कार्यक्रम किए हैं। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने प्रचार संभाला था।

बीजेपी नहीं बना पाई मुद्दा

पीएम मोदी से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत करीब दो दर्जन बड़े नेता चुनावी रण में सक्रिय रहे हैं। भाजपा के प्रचार का दारोमदार भूपेंद्र हुड्डा के विरोध के अतिरिक्त जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों पर ज्यादा रहा है। सैलजा के शुरुआती प्रचार से दूर रहने का भी भाजपा ने लाभ उठाने की कोशिश की, लेकिन बाद में उनके प्रचार में जुट जाने की वजह से भाजपा अब इसे मुद्दा नहीं बना पाई।

कांग्रेस-भाजपा ने इन मुद्दों पर एक दूसरे को घेरा

भाजपा के छोटे-बड़े सभी नेताओं ने एक सुर में कांग्रेस के 2005 से 2014 के शासनकाल की कमियों पर अपने प्रचार को केंद्रित रखा है। कांग्रेस का चुनाव प्रचार भाजपा के 10 साल में कोई ब़ड़ी उपलब्धि नहीं होने पर केंद्रित रहा है। भाजपा ने पोर्टलों व बिना पर्ची-खर्ची की नौकरियों को अपनी उपलब्धि बताया है।

कांग्रेस ने बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, अपराध और किसानों की दुर्दशा पर घेराबंदी की, जबकि भाजपा ने कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार व प्रापर्टी डीलिंग के आरोप लगाए हैं।

कांग्रेस अपनी सात गारंटियों को मान रही बड़ी ताकत

  • छह हजार रुपये पेंशन, किसानों को एमएसपी की गारंटी
  • कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम
  • दो लाख सरकारी भर्तियां
  • पांच सौ रुपये में गैस सिलेंडर
  • तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त
  • महिलाओं को दो हजार रुपये प्रतिमाह
  • गरीबों को 100-100 गज के प्लाटों के साथ रसोई व शौचालय समेत दो कमरों के मकान हेतु साढ़े तीन लाख रुपये।

भाजपा को इन वादों की बदौलत जीत का भरोसा

  • महिलाओं को 2100 रुपये प्रतिमाह
  • 500 रुपये में सिलेंडर जारी रहेगा।
  • पांच लाख लोगों को आवास और कालेज जाने वाली छात्राओं को स्कूटी।
  • दो लाख लोगों को पक्की नौकरी व अग्निवीरों को नौकरी की गारंटी।
  • 24 फसलों की एमएसपी पर खरीद।
  • 10 लाख तक मुफ्त इलाज।
  • महंगाई के साथ बुजुर्गों, दिव्यांगों व विधवाओं की पेंशन में बढ़ोतरी।

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