Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Haryana News: आरक्षण की समीक्षा पर हरियाणा सरकार नहीं दे पाई कोई जवाब, अब हाई कोर्ट ने दिया अंतिम अवसर

हरियाणा सरकार ने आरक्षण की समीक्षा पर जवाब दायर नहीं किया। अब हाई कोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार को जवाब देने का अंतिम अवसर दिया है। हाई कोर्ट की जस्टिस रितु बाहरी व जस्टिस निधि गुप्ता की खंडपीठ के सामने जैसे ही मामले की सुनवाई शुरू हुई सरकार की तरफ से जवाब दायर करने के लिए फिर से समय देने की मांग की गई।

By Dayanand Sharma Edited By: Himani Sharma Updated: Sat, 03 Feb 2024 03:23 PM (IST)
Hero Image
आरक्षण की समीक्षा पर हरियाणा सरकार नहीं दे पाई कोई जवाब

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हाई कोर्ट द्वारा कई बार जारी आदेश के बाद हरियाणा सरकार ने आरक्षण की समीक्षा पर जवाब दायर नहीं किया। अब हाई कोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार को जवाब देने का अंतिम अवसर दिया है।

हाई कोर्ट की जस्टिस रितु बाहरी व जस्टिस निधि गुप्ता की खंडपीठ के सामने जैसे ही मामले की सुनवाई शुरू हुई सरकार की तरफ से जवाब दायर करने के लिए फिर से समय देने की मांग की गई। इस पर बेंच ने मामले की सुनवाई 18 जुलाई तक स्थगित करते हुए साफ तौर पर कह दिया है कि सरकार को जवाब देने के लिए यह केवल अंतिम मौका दिया जा रहा है।

आरक्षण की हर 10 साल में होनी चाहिए समीक्षा

चंडीगढ़ आधारित स्नेहांचल चैरिटेबल ट्रस्ट ने याचिका दाखिल करते हुए हाई कोर्ट को बताया था कि नेशनल कमीशन फार बैकवर्ड क्लास (एनसीबीसी) की गाइडलाइन के अनुसार तथा इंदिरा साहनी और राम सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की समीक्षा के बारे में कहा है कि आरक्षण की हर 10 साल में समीक्षा होनी चाहिए। बावजूद इसके आज तक समीक्षा नहीं हुई है।

वोट बैंक के लिए आरक्षण पाने वाली जातियों की संख्या में बढ़ोतरी को कर दी जाती है परंतु किसी जाति को इससे बाहर नहीं किया जाता है। याची ने कहा कि आरक्षण लागू करते हुए हर 10 वर्ष में इसे रिव्यू करने का परविधान रखा गया था परंतु यह कार्य किसी ने भी नहीं किया।

यह भी पढ़ें: हरियाणा सहकारिता विभाग में 100 करोड़ का घोटाला, सरकारी पैसों से खरीदे प्लॉट और फ्लैट; 14 आरोपी गिरफ्तार

20 वर्षों में पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण की हो समीक्षा

याची ने कहा कि हरियाणा में आरक्षण के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट को 1995 में अपनाया गया और इस रिपोर्ट के आधार पर शेड्यूल ए और बी तैयार किया गया था। इस रिपोर्ट में भी यह कहा गया था कि 20 वर्षों में पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण की समीक्षा की जाए। याची ने कहा कि इस आयोग की रिपोर्ट को 15 साल बाद 1995 में अपनाया गया था और ऐसे में 2000 में इसकी समीक्षा होनी चाहिए थी। परंतु 2017 तक 37 साल बीत गए हैं लेकिन किसी भी स्तर पर समीक्षा का प्रयास नहीं किया गया।

यह भी पढ़ें: Budget 2024: पिछले दो सालों से विजन डॉक्यूमेंट 2047 पर काम कर रहे सीएम मनोहर लाल, भारत को बनाना है विकसित राष्ट्र

याची ने कहा कि एनसीबीसी और सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण व्यवस्था के लिए आंकड़े एकत्रित करने और समीक्षा करने के लिए पूरा प्रक्रिया को स्पष्ट किया है, लेकिन राजनीतिक दलों ने हित साधने के लिए इसे अपनाया ही नहीं। याची ने कहा कि 1951 से लेकर अभी तक केवल जातियों को शामिल ही किया गया है। हाई कोर्ट ने इसपर याची से पूछा था कि इस बारे में क्या किया जा सकता है। याची ने कहा कि नए सिरे से आंकड़े एकत्रित करते हुए यह देखा जाना चाहिए किस जाति को आरक्षण की जरूरत है और किसे नहीं। यह प्रक्रिया हर दस साल में अपनाई जानी चाहिए।