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Haryana News: 'परमल धान के निर्यात पर रोक और बासमती से निर्यात ड्यूटी हटाए', हुड्डा ने नायब सरकार से की अपील

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार से परमल धान के निर्यात से रोक हटाने और बासमती पर निर्यात शुल्क कम करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि निर्यात पर रोक और उच्च निर्यात शुल्क के कारण किसानों और व्यापारियों को नुकसान हो रहा है। हुड्डा ने किसानों राइस मिलर्स और आढ़तियों के प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं को सुना।

By Sudhir Tanwar Edited By: Sushil Kumar Updated: Sat, 31 Aug 2024 10:37 PM (IST)
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Haryana News: भूपेंद्र हुड्डा ने परमल धान के निर्यात पर रोक और बासमती से निर्यात ड्यूटी हटाने की मांग की।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि सरकार परमल धान के निर्यात से रोक हटाए। इसके अलावा बासमती पर निर्यात ड्यूटी भी हटाई जाए। हुड्डा ने कहा कि बासमती पर सरकार ने भारी भरकम 20 प्रतिशत निर्यात ड्यूटी थोप दी है।

इसके चलते न किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दामों का लाभ मिल पा रहा है और न ही व्यापारियों को। इसलिए किसानों को राहत के लिए सरकार को तुरंत ठोस कदम उठाने चाहिए। किसानों, राइस मिलर्स और आढ़तियों के प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात में हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस सरकार में किसानों को इसीलिए धान के ऊंचे रेट मिलते थे क्योंकि उस समय निर्यात पर रोक नहीं होती थी।

'देश की अर्थव्यवस्था को भी फायदा मिलता'

अंतरराष्ट्रीय मार्केट में ऊंचे दामों के चलते अक्सर स्थानीय बाजारों में भी धान की कीमत एमएसपी से भी ऊपर जाती थी और किसानों को खासी आमदनी होती थी। निर्यात के चलते किसानों, कारोबारियों को तो लाभ होता ही था, साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को भी इसका फायदा मिलता था।

हुड्डा ने कहा कि भाजपा सरकार हर बार धान की आवक से पहले उसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा देती है। पिछले साल भी जुलाई में केंद्र सरकार ने पहले टुकड़ा चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया और उसके बाद परमल चावल के निर्यात पर रोक लगा दी। धान की आवक से ठीक पहले अगस्त में सरकार ने बासमती का न्यूनतम निर्यात मूल्य 950 डालर प्रति टन तय करके उस पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क थोप दिया।

'सरकार के गोदामों में जगह ही नहीं'

इसके चलते देश का धान गोदामों में पड़ा रह गया। एक साल बाद भी स्थिति यह है कि चावल के गोदाम भरे पड़े हैं। नया चावल रखने के लिए उनमें जगह ही नहीं है। राइस मिलर्स सरकार को चावल देने को तैयार हैं, लेकिन सरकार के गोदामों में जगह ही नहीं है। 25 प्रतिशत बकाया चावल अभी भी मिलों में पड़ा हुआ है।

व्यापारियों ने आरोप लगाया कि सरकार फिजिकल वेरिफिकेशन के नाम पर भी उन्हें बेवजह परेशान कर रही है। मिलर्स को एक प्रतिशत ड्रायज के रूप में जो रियायत मिलती थी, उसे भी आधा कर दिया गया है। उसके कस्टम मिलिंग चार्ज को भी 15 से घटाकर 10 रुपये कर दिया गया है।

बोरियों पर जो टैग लगते हैं, उसके पैसे भी व्यापारियों को नहीं मिलते। ऊपर से बीजेपी सरकार ने पोर्टल का ऐसा जंजाल बना रखा है कि उससे हर कोई परेशान है। जरूरत के वक्त हमेशा पोर्टल बंद हो जाता है।

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