Haryana: आरक्षण समीक्षा पर हरियाणा सरकार और NCBC ने जवाब के लिए HC से मांगा समय, 28 नवंबर तक स्थगित सुनवाई
Haryana News आरक्षण समीक्षा पर हरियाणा सरकार और एनसीबीसी ने जवाब के लिए हाई कोर्ट से समय मांगा है। सुनवाई के दौरान दोनों ने कोर्ट से इस मामले में जवाब देने के लिए समय की मांग की जिस पर कोर्ट ने सुनवाई 28 नवम्बर तक स्थगित कर दी। आरक्षण की हर 10 साल में समीक्षा होनी चाहिए। बावजूद इसके आज तक समीक्षा नहीं हुई है।
चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो: संविधान बनने के बाद से राजनीति के लिए आरक्षण का इस्तेमाल और मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर दिए गए आरक्षण की समीक्षा नहीं करने को चुनौती देने वाली याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार तथा अनुसूचित जाति आयोग से जवाब मांगा है। सुनवाई के दौरान दोनों ने कोर्ट से इस मामले में जवाब देने के लिए समय की मांग की, जिस पर कोर्ट ने सुनवाई 28 नवम्बर तक स्थगित कर दी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की समीक्षा के बारे में कहा गया
स्नेहांचल चैरिटेबल ट्रस्ट ने याचिका दाखिल करते हुए हाईकोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीबीसी) की गाइड लाइन के अनुसार तथा इंदिरा साहनी व राम सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की समीक्षा के बारे में कहा गया है। आरक्षण की हर 10 साल में समीक्षा होनी चाहिए। बावजूद इसके आज तक समीक्षा नहीं हुई है।
आरक्षण लागू करते हुए हर 10 वर्ष में इसे रिव्यू करने का रखा गया था प्रविधान
वोट बैंक के लिए आरक्षण पाने वाली जातियों की संख्या में बढ़ोतरी तो कर दी जाती है, परंतु किसी जाति को इससे बाहर नहीं किया जाता है। याची ने कहा कि आरक्षण लागू करते हुए हर 10 वर्ष में इसे रिव्यू करने का प्रविधान रखा गया था, परंतु यह कार्य किसी ने भी नहीं किया। याची ने कहा कि हरियाणा में आरक्षण के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट को 1995 में अपनाया गया और इस रिपोर्ट के आधार पर शेड्यूल ए और बी तैयार किया गया था।
पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण की समीक्षा की जाए
इस रिपोर्ट में भी यह कहा गया था कि 20 वर्षों में पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण की समीक्षा की जाए। याची ने कहा कि इस आयोग की रिपोर्ट को 15 साल बाद 1995 में अपनाया गया था और ऐसे में 2000 में इसकी समीक्षा होनी चाहिए थी। परंतु 2017 तक 37 साल बीत गए हैं लेकिन किसी भी स्तर पर समीक्षा का प्रयास नहीं किया गया।
याची ने कहा कि एनसीबीसी और सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण व्यवस्था के लिए आंकड़े एकत्रित करने और समीक्षा करने के लिए पूरा प्रक्रिया को स्पष्ट किया है, लेकिन राजनीतिक दलों ने हित साधने के लिए इसे अपनाया ही नहीं।