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Haryana: जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन पर जवाब देने के लिए चुनाव आयोग को राहत, HC ने 17 जनवरी तक का दिया समय

Haryana News हरियाणा में जनप्रतिनिधि एक्‍ट में संशोधन पर चुनाव आयोग को जवाब देने का समय मिल गया है। हाई कोर्ट ने 17 जनवरी तक जवाब देने के आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट ने यह जवाब गणेश खेमका की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मांगा है। अगली सुनवाई पर इस बारे में चुनाव आयोग को उनका पक्ष रखना होगा।

By Jagran NewsEdited By: Himani SharmaUpdated: Sat, 02 Sep 2023 03:33 PM (IST)
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जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन पर चुनाव आयोग को राहत, HC ने 17 जनवरी तक जवाब देने का दिया आदेश

चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो: 2013 में जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन के खिलाफ एक याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग ने जवाब देने के लिए कुछ समय देने का हाई कोर्ट से आग्रह किया। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रवि शंकर झा व जस्टिस विकास बहल पर आधारित बेंच ने आयोग को समय देते हुए 17 जनवरी तक जवाब दायर करने का आदेश दिया है।

दोषी करार व्यक्ति वोट तो नहीं डाल सकता लेकिन लड़ सकता है चुनाव

हाई कोर्ट ने यह जवाब गणेश खेमका की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मांगा है। याचिका दाखिल करते हुए खेमका ने कहा था कि किसी भी अपराध के दोषी और सजा पाने वाले सभी लोगों को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दिया जाना चाहिए। याची ने कहा कि सरकार ने 2013 में जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन कर ऐसा प्रविधान कर दिया कि दोषी करार व्यक्ति वोट तो नहीं डाल सकता लेकिन चुनाव लड़ जरूर सकता है।

संविधान में निहित समानता के अधिकार का उल्लंघन

याची ने हाई कोर्ट से अपील की कि दोषी करार दिए गए और सजा पाने वाले किसी भी व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए। ऐसा न करना संविधान में निहित समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस पर आधारित खंडपीठ ने चुनाव आयोग व केंद्र सरकार से पूछा है कि कैसे अपराध करने वालों को वोट डालने का अधिकार नहीं है लेकिन चुनाव लड़ने का है।

साथ ही एक्ट में संशोधन करने को जिन आधारों पर चुनौती दी गई है। उस पर जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं। अगली सुनवाई पर इस बारे में चुनाव आयोग को उनका पक्ष रखना होगा।

गणेश खेमका ने एक और याचिका की दायर

गणेश खेमका ने एक अन्य याचिका दायर कर भी कहा कि मौजूदा समय में दो वर्ष से कम के कारावास की सजा वालों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाती है,जबकि इससे ज्यादा सजा वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने के अयोग्य माना जाता है। याचिका के मुताबिक मौजूदा नियम समानता के अधिकार के खिलाफ है, क्योंकि अपराध तो अपराध होता है। चाहे यह छोटा हो या बड़ा।

अगर किसी व्यक्ति को दो साल की सजा हुई है और किसी को दो साल से ज्यादा की सजा हुई है तो दोनों के मामलों में असमानता क्यों। सजा तो दोनों को हुई है। फिर दो साल से कम वाले को चुनाव लड़ने की छूट देना और दो साल से ज्यादा सजा होने वाले को चुनाव न लड़ने देने की इजाजत देना कितना उचित है। इस पर भी हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है।