हरियाणा पुलिस में क्रांतिकारी बदलाव, DGP ओपी सिंह की अनूठी पहल से थाने बनेंगे 'सहयोग केंद्र'
हरियाणा के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने पुलिस सुधार की दिशा में एक अनूठी पहल की है। उन्होंने अधिकारियों को जनता से बेहतर संवाद स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है। थानों को सहयोग केंद्र बनाने, साहित्य उपलब्ध कराने और छात्रों को शामिल करने जैसे सुझाव दिए गए हैं। शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करने और जनता के साथ संवेदनशीलता से पेश आने पर जोर दिया गया है।
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हरियाणा के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह की पुलिस सुधार की शानदार मुहिम (फोटो: जागरण)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह हर रोज अपने विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को जनता की सेवा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पुलिस महानिदेशक शत्रुजीत कपूर के अवकाश पर जाने के बाद प्रदेश सरकार ने ओपी सिंह को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक की जिम्मेदारी सौंपी है।
ओपी सिंह ने जब से यह जिम्मेदारी संभाली, तभी से वे पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए एक पत्र जारी कर उन्हें जरूरी दिशा निर्देश दे रहे हैं। बुधवार को उन्होंने जो परिपत्र जारी किया, वह बहुत ही खास है। इस परिपत्र में ओपी सिंह ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि अपनी टेबल (मेज) का आकार छोटा करो और कुर्सी से तौलिया हटाओ।
टेबल का आकार छोटा करने से आशय है कि जनता के साथ नजदीकियां बढ़ाओ। थानों व पुलिस कार्यालयों में अपनी समस्याएं लेकर आने वाले लोगों में भरोसा पैदा करो, ताकि वे बिना किसी डर, बिना किसी संकोच और बिना किसी हिचक के अपनी बात पुलिस को बता दें, जिसके आधार पर उन्हें न्याय मिलना सुनिश्चित हो सके।
कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक ने प्रदेश के सभी आइजी, पुलिस आयुक्तों, एसपी, डीएसपी और थाना प्रभारियों को जो चिट्ठी लिखी है, वह सिर्फ एक आदेश नहीं बल्कि ‘संवेदना का पाठ’ है। उन्होंने बड़े ही संवेदनशील तरीके से कहा, “समझिए, सरकारी दफ्तर जनता के पैसे से बने हैं, इसलिए जनता से व्यवहार ऐसा हो, जैसे किसी परिवार के सदस्य से करते हैं।”
ओपी सिंह ने कहा कि पुलिस की जनसंपर्क शैली सिर्फ कानून का मामला नहीं है, बल्कि एक सूक्ष्म कला (फाइन आर्ट) है, जिसमें दफ्तर का माहौल, पुलिसकर्मी का व्यवहार और उनकी सोच, सब कुछ शामिल है। ओपी सिंह साहित्य प्रेमी अधिकारी हैं, जिन्होंने अभी तक चार पुस्तकें लिखी हैं।सिंह ने अधिकारियों से कहा कि सबसे पहले अपने दफ्तर से औपचारिकता और अहंकार के प्रतीक हटाओ।
टेबल का आकार छोटा करो, कुर्सी पर सफेद तौलिया मत डालो और अपनी कुर्सी को आगंतुक की कुर्सी जैसा ही रखो। ऐसे छोटे बदलाव ही जनता के मन में पुलिस के प्रति सम्मान और अपनापन पैदा करेंगे। पुलिस दफ्तरों को ‘पावर सेंटर’ नहीं बल्कि ‘सहयोग केंद्र’ बनाओ।
पुलिस महानिदेशक ने अपने सुझाव में कहा कि हर थाने या दफ्तर के बड़े कमरे को आगंतुक कक्ष (विजिटर्स रूम) बनाया जाए। वहां मुंशी प्रेमचंद, दिनकर और रेणु जैसे साहित्यकारों की किताबें रखी जाएं। साथ ही, एक संवेदनशील पुलिसकर्मी तैनात हो, जो आने वालों से नम्रता से बात करे, उनकी परेशानी सुने और उन्हें सहज महसूस कराए। लोग थाने में आकर घबराकर नहीं, भरोसे के साथ आएं, अगर ऐसा हो पाता है तो यही पुलिस की असली जीत है।
डीएवी पुलिस पब्लिक स्कूल के छात्र बनेंगे सहयोगी
एक और अभिनव सुझाव देते हुए ओपी सिंह ने कहा कि डीएवी पुलिस पब्लिक स्कूल के इच्छुक छात्रों को सेवक (स्टीवर्ड) प्रशिक्षण दिया जाए। ये छात्र गेट पर आगंतुकों को रिसीव करें, उन्हें आगंतुक कक्ष तक पहुंचाएं और जरूरत पड़ने पर मार्गदर्शन दें।
इससे जहां जनता को सहयोग मिलेगा, वहीं छात्रों को भी व्यवहार-कौशल और संवेदनशीलता की ट्रेनिंग मिलेगी। उन्होंने कहा कि थाने में मेट्रो स्टेशन जैसा अनुभव हो, जहां गेट से लेकर गंतव्य तक सब कुछ साफ-सुथरा और व्यवस्थित हो।
जब कोई व्यक्ति अपनी समस्या लेकर आता है, तो पुलिस अधिकारी उसको ध्यानपूर्वक सुनें। थाने के कान्फ्रेंस हाल में पुलिस अधिकारी लोगों से मिलें। जिनकी बारी हो, उनकी बात सुनने के लिए पास की कुर्सी पर बिठाएं। जब लोग अपनी बात रख रहे हों तो मोबाइल फोन दूर रखें।
डीजीपी ने सलाह दी कि एक सप्ताह के अंदर तीन में से कम से कम एक कार्रवाई जरूर कर दें। पहला, अगर मुकदमा बनता है तो दर्ज कर दें। दूसरा, शिकायत सिविल नेचर का हो तो थाने के कंप्यूटर से ही सीएम विंडो में दर्ज करा दें। हो सके तो संबंधित अधिकारी को फोन भी कर दें।
तीन, अगर शिकायत झूठी हो रोजऩामचे में रपट दर्ज कर उसकी एक कापी चेतावनी के तौर पर शिकायतकर्ता को दे दें। शिकायतकर्ता अगर झूठी शिकायत करने का आदी हो तो मुक़दमा दर्ज कर कार्रवाई करें। हर हाल में बहसबाजी से बचें।
ओपी सिंह ने कहा कि जो पुलिसकर्मी ऐसा न करे, उनकी पेशी लें, कारण जानें। प्रेरित-प्रशिक्षित करें। अगर ढिलाई दिखे तो चेतावनी दें। अगर पब्लिक डीलिंग की अक्ल ही नहीं है तो उसे थाने-चौकी से दूर कर कोई और काम दें।
बढ़ई को हलवाई का काम देने में कोई बुद्धिमानी नहीं है। याद रखें कि पुलिस एक बल है और सेवा भी। आप एक तार हैं, जिसमें बिजली का करेंट दौड़ रहा है। लोगों को आपसे कनेक्शन चाहिए, रोशनी चाहिये। झटका बेशक दें, लेकिन ये उसे दें जो लोगों का खून चूसते हैं।

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