Haryana Politics: सैलजा पर कांग्रेस मेहरबान! प्रदेश की कमान सौंपने की तैयारी, रोकने को हुड्डा गुट ने लगा दी पूरी ताकत
हरियाणा कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के बाद से ही खींचतान जारी है। विधायक दल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए लॉबिंग तेज हो गई है। कुमारी सैलजा को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट इसका विरोध कर रहा है। आठ नवंबर से विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है उससे पहले इन पदों पर नियुक्ति की उम्मीद है।
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। विधानसभा चुनाव के बाद से हरियाणा कांग्रेस में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। विधायक दल के नेता के लिए लॉबिंग चल रही है तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी नई नियुक्ति की संभावना जोर पकड़ रही है।
कांग्रेस महासचिव एवं सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा को पार्टी हाईकमान द्वारा एक बार फिर प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपे जाने की उम्मीद है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सैलजा की नियुक्ति को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है।
हरियाणा विधानसभा में इस बार कांग्रेस के 37 विधायक चुनकर आए हैं, जिनमें से 33 विधायक हुड्डा समर्थक हैं। चार विधायकों को कुमारी सैलजा समर्थक माना जाता है।
इन चार विधायकों के बूते पर हालांकि सैलजा गुट को ना तो विधायक दल के नेता का पद मिल सकता है और ना ही प्रदेश अध्यक्ष पद पर उनकी दावेदारी बनती है, लेकिन विधानसभा चुनाव में जिस तरह से सैलजा ने नाराज होकर बड़ा खेल किया, उससे कांग्रेस हाईकमान सकते में हैं।
खींचतान से पार्टी के हाथ से छूट गई सत्ता
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के चाहे कितने भी कारण रहे हों, लेकिन हुड्डा व सैलजा की खींचतान की वजह से पार्टी के हाथ से सत्ता छूट गई है। रणनीतिकारों को पूरी उम्मीद थी कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनेगी, लेकिन पार्टी के राज्य स्तरीय नेताओं की आपसी खींचतान ने कांग्रेस को पांच साल पीछे धकेल दिया है।थिंक टैंक का मानना है कि यदि हुड्डा और सैलजा मिलकर चुनाव लड़ते तो राज्य में कांग्रेस की सरकार बनना तय था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हुड्डा खेमा अपने स्वयं के बूते पर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी हुई मानकर चल रहा था, जबकि सैलजा गुट को अपनी नाराजगी के माध्यम से ताकत दिखाने का मौका मिल गया, जिसका पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है।
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