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Stubble Burning Cases: पिछले साल की अपेक्षा इस बार कम जली पराली, फिर भी दमघोंटू बना वातावरण

हरियाणा में इस साल पराली जलाने के मामलों में 38 प्रतिशत की कमी आई है लेकिन इसके बावजूद प्रदूषण का स्तर कम नहीं हुआ है। राज्य में अब तक धान के अवशेष जलाने के 838 मामले सामने आ चुके हैं। सरकार किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक कर रही है और फसल अवशेष प्रबंधन के लिए वित्तीय सहायता भी दे रही है।

By Anurag Aggarwa Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sun, 03 Nov 2024 10:47 AM (IST)
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हरियाणा में पिछली बार से कम जली पराली (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में 90 प्रतिशत धान की कटाई हो चुकी है और गेहूं बुआई की तैयारियां चालू हो गई। गेहूं की बुआई के लिए खेत तैयार करने को किसान धान के अवशेषों को आग के हवाले कर रहे हैं। प्रशासनिक सख्ती के चलते धान के अवशेष जलाने की घटनाओं में हालांकि कमी जरूरी आई है, लेकिन अभी तक पूर्णत अंकुश नहीं लग पाया है।

2023 के मुकाबले 38 प्रतिशत फानों में आग लगाने की घटनाओं में इस बार कमी दर्ज की गई है। शनिवार को प्रदेश मे 19 जगहों पर धान के अवशेष जलाने के मामले सामने आए हैं। इसके बाद भी वातावरण दमघोंटू बना हुआ है।

धान के अवशेष जलाने के 838 मामले

प्रदेश में अभी तक धान के अवशेष (फाने) जलाने के 838 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें कैथल जिले में सबसे ज्यादा 158 स्थानों पर फसल अवशेष जलाए गए हैं, जबकि कुरुक्षेत्र जिले में 129 स्थानों पर फाने जले हैं। छह जिलों भिवानी, गुरुग्राम, चरखी दादारी, महेंद्रगढ़, नूंह और रेवाड़ी में फाने जलाने की कोई घटना सामने नहीं आई है।

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद मुख्य सचिव ने प्रशासनिक अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए थे कि नोडल अधिकारियों को निलंबित करने के साथ किसानों पर जुर्माना लगाया जाए।

इसके बाद प्रशासनिक अधिकारी हरकत में आए और नोडल अधिकारियों के खिलाफ निलंबन व कारण बताओ नोटिस देने की कार्रवाई तेज की। धान के अवशेषों को आग के हवाले करने वाले किसानों की रेड एंट्री की गई। रेड एंट्री वाले किसानों को दो साल तक फसल बेचने पर रोक का प्रविधान सरकार ने किया है।

अवशेषों को मिट्टी में मिलाएं किसान

इसके साथ ही सरकार की ओर से किसानों का आह्वान किया गया कि वे धान की कटाई के बाद फसल अवशेषों में आग ना लगाएं। आग लगाने से वायु प्रदूषण फैलता है और मिट्टी के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। किसान अवशेषों को मशीनों की सहायता से मिट्टी में मिलाएं।

धान अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी तथा वातावरण को स्वच्छ रखने में सहायता मिलेगी। साल 2022 में राज्य में फाने जलाने के 2249 मामले सामने आए थे।

जबकि पिछले साल 2023 में 1344 मामले ही सामने आए। सरकार के जागरूकता प्रयासों व सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के चलते पराली अवशेष जलाने के मामलों में काफी कमी आई है। साल 2024 में अब तक इनकी संख्या 838 है।

पिछले 10 दिनों में फाने जलाने का ग्राफ

दिनांक  मामले
24 अक्टूबर

06

25 अक्टूबर

03

26 अक्टूबर

11

27 अक्टूबर

13

28 अक्टूबर

13

29 अक्टूबर

13

30 अक्टूबर

03

31 अक्टूबर

42

01 नवंबर

35

02 नवंबर

19

सार्थक साबित हुआ फसल अवशेष प्रबंधन

सरकार का फसल अवशेष प्रबंधन भी सार्थक साबित हुआ। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के निर्देशानुसार सरकार ने राज्य-विशिष्ट योजना लागू की है, जिसके तहत एक ओर जहां किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए वित्तीय सहायता दी जा रही है।

वहीं दूसरी ओर पंचायतों को जीरो बर्निंग लक्ष्य दिए जा रहे हैं, ताकि पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश लग सके। सरकार द्वारा ग्राम स्तर पर किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक किया जा रहा है।

सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप 90 हजार किसानों ने धान क्षेत्र के प्रबंधन के लिए पंजीकरण कराया है। पंजीकरण की अंतिम तिथि 30 नवंबर तक बढ़ा दी गई है।

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हरियाणा का कृषि विभाग अलर्ट मोड में

धान के अवशेषों में आगजनी की घटना को रोकने को लेकर कृषि विभाग पूरी तरह अलर्ट है। गांवों में सरपंच व पंचों की मदद से ग्राम सचिव, पटवारी और नबंरदार के जरिये रेड जोन पंचायतों का डाटा एकत्रित किया जा रहा है।

इसके साथ ही विभाग की ओर से किसानों को फसल अवशेष नहीं जलाने के बारे में जागरूक करने हेतु अभियान भी चलाया जा रहा है। फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत किसानों को कृषि यंत्र जैसे सुपर सीडर, जीरो टिलेज मशीन, स्ट्रा चापर, हैप्पी सीडर, रिवर्सिबल प्लो अनुदान पर प्रदान किए जाते हैं।

जिनकी मदद से किसान पराली को मिट्टी में मिलाकर भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकते हैं या पराली की गांठे बनाकर अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं।

सांस के रोगियों की बढ़ी परेशानी

प्रदेश में धान के अवशेष और आतिशबाजी से आबोहवा दमघोंटू हो रही है। खासकर जीटी बेल्ट पर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बिगड़ रहा है और आसमान में स्मॉग की चादर बन रही है, जो सांस के रोगियों के साथ छोटे बच्चों के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है।

इसके साथ ही एनसीआर का वातावरण भी खराब श्रेणी में पहुंच गया है। हालांकि इसका सबसे बड़ा कारण पिछले दो दिनों से लगातार जारी आतिशबाजी है, क्योंकि इस बार प्रदेश में दीपावली का त्योहार दो दिन मनाया गया, जिसके चलते रातभर आसमान में खूब पटाखे फूटे।

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