फरीदाबाद निगम में तैनात चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को HC ने दिया नियमित करने का आदेश, कहा- 'सरकार ने क्यों नहीं किया प्रयास'
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने नगर निगम फरीदाबाद (Municipal Corporation Faridabad) में सेवारत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने का आदेश पारित करते हुए कहा कि कर्मचारियों ने सेवा में अपना जीवन काल दिया है ईमानदारी से नियमित करने का प्रयास क्यों नहीं किया गया है। सरकार समाजवादी कल्याणकारी राज्य के रूप में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती है।
By Dayanand SharmaEdited By: Deepak SaxenaUpdated: Fri, 01 Dec 2023 07:22 PM (IST)
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने माना है कि एक बार जब किसी कर्मचारी को उचित लंबी अवधि तक सेवा में बने रहने की अनुमति दी जाती है और राज्य स्वीकृत पदों को बनाने या बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है, तो यह निश्चित रूप से अनुच्छेद 21 (सही जीवन और व्यक्तिगत) का उल्लंघन होगा। हाई कोर्ट ने कहा है कि समाजवादी कल्याणकारी राज्य के रूप में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से सरकार बच नहीं सकती।
हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को पिछले लगभग 30 वर्षों से नगर निगम फरीदाबाद में सेवारत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने का निर्देश देते हुए यह आदेश पारित किए हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि यह ध्यान में रखना होगा कि सार्वजनिक रोजगार संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत परिकल्पित समानता के अधिकार का एक पहलू है।
हालांकि, राज्य एक आदर्श नियोक्ता है, इसलिए पद सृजित करने और लोगों की भर्ती करने का उसका अधिकार संविधान के अनुच्छेद 309 से जुड़े प्रविधान के तहत बनाए गए कानूनों या वैधानिक नियमों से आता है, लेकिन यह राज्य पर अनिवार्य है कि भर्ती नियम अपने सभी नागरिकों को समान अवसर देने और रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विचार करने का अधिकार देने की दृष्टि से बनाए गए हैं।
सरकार से हाई कोर्ट ने मांगे ये जवाब
हाई कोर्ट के जस्टिस संदीप मौदगिल ने राम रतन और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार करते हुए ये आदेश पारित किए हैं। जस्टिस मौदगिल ने कहा कि इसका उत्तर अकेले राज्य को ही देना होगा कि उसे एक समाजवादी कल्याणकारी राज्य के रूप में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से छुटकारा पाने की सुरक्षा नहीं है। याचिकाकर्ताओं जिन्होंने अपने विभिन्न विभागों के माध्यम से राज्य के लोगों को सुरक्षित करने के लिए अपना काफी जीवन काल दिया है, किस बात ने राज्य को इस तरह के रोजगार जारी रखने के लिए मजबूर किया।कर्मचारियों को नियमित करने का क्यों नहीं किया गया प्रयास: HC
यह अनुमान लगाने के लिए अपने आप में पर्याप्त है कि जिन पदों पर याचिकाकर्ता अस्थायी रूप से काम कर रहे थे, उन पदों पर नियमित नियुक्ति करने के लिए राज्य की ओर से कोई ईमानदार प्रयास नहीं किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने अपनी सेवा को नियमित करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बताया गया कि वे पिछले करीब 30 साल से एमसी के साथ काम कर रहे हैं।
राज्य के अधिकारियों ने अपेक्षित योग्यता पूरी नहीं करने के आधार पर उनकी सेवाओं को नियमित करने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। हाई कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं को निगम द्वारा वर्ष 1993 में दैनिक वेतन भोगी के रूप में नियुक्त किया गया था और इस प्रकार निगम ने बिना किसी सहायता के उनकी सेवाओं का लाभ उठाया। राज्य को सभी लाभों के साथ याचिकाकर्ताओं को नियमित करने का निर्देश देते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी कहा है कि वह याचिकाकर्ताओं को देय तिथि से लेकर भुगतान की तिथि तक बकाया राशि पर छह प्रतिशत प्रति वर्ष का भुगतान कर मुआवजा दे।
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