Exclusive Interview: जस्टिस लिब्राहन बोले- मुझे पहले दिन से पता था अयोध्या में राममंदिर बनकर रहेगा
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने की जांच करने वाले लिब्राहन आयोग के चेयरमैन जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्राहनने कहा उन्हें पता था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Thu, 30 Jul 2020 06:52 PM (IST)
चंडीगढ़, जेएनएन। भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने की जांच करने वाले एक सदस्यीय लिब्राहन आयोग के चेयरमैन जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्राहन मानते हैं कि उनका जांच आयोग 'राजनीतिक समस्याओं' को शांत करने के लिए' गठित हुआ था। आज जब मंदिर का निर्माण शुरू होनेवाला है तो उनका कहना कहना है, उन्हें पता था कि एक दिन अयोध्या में राम मंदिर बनकर रहेगा। अयाेध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर 28 साल में जस्टिस लिब्राहन ने संभवत: पहली बार मीडिया को कोई इंटरव्यू दिया है। उनसे खास बातचीत की दैनिक जागरण के हरियाणा स्टेट ब्यूरो प्रमुख अनुराग अग्रवाल ने।
तीन माह के लिए गठित जस्टिस लिब्राहन आयोग को तत्कालीन कांग्रेस सरकार को अपनी 1400 पन्नों की जांच रिपोर्ट सौंपने में 17 साल का लंबा समय लग गया। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा और उसके 10 दिन बाद यानी 16 दिसंबर 1992 को जस्टिस लिब्राहन के नेतृत्व में जांच आयोग बनाया गया। सैकड़ों नेताओं व लोगों की गवाहियों के बाद जस्टिस लिब्राहन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह व गृह मंत्री पी चिदंबरम को 30 जून 2009 को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें उन्होंने माना कि एक प्लानिंग के तहत विवादित ढांचा गिराया गया था। जस्टिस लिब्राहन अब 82 साल के हो चुके हैं।
चंडीगढ़ के सेक्टर नौ स्थित अपनी कोठी में रहते हैं। इस जांच आयोग की रिपोर्ट के करीब 11 साल बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में 5 अगस्त को श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करने वाले हैं। ऐसे में दैनिक जागरण ने जस्टिस लिब्राहन से तमाम मुद्दों पर विस्तृत बातचीत की। पेश हैं इसके प्रमुख अंश-
- अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के मामले की आपने 17 साल जांच की। वहां मंदिर था या मस्जिद, आप किस नतीजे पर पहुंचे?
- आयोग का गठन यह जानने के लिए नहीं किया गया था कि अयोध्या में राम मंदिर था या बाबरी मस्जिद। आयोग को सिर्फ यह जांच करनी थी कि विवादित ढांचा किसने गिराया और किसके कहने पर गिराया। उसकी रिपोर्ट मैंने सरकार को दे दी थी।
- आपके आयोग का क्या निष्कर्ष रहा। अयोध्या में विवादित ढांचा किसने और किसके कहने पर गिराया?
- इस श्रेणी में सैकड़ों नाम लिए जा सकते हैं, लेकिन प्रमुख लोगों में आडवाणी, जोशी, वाजपेयी, कल्याण सिंह, विनय कटियार, उमा भारती, ऋतंभरा और कलराज मिश्र प्रमुख हैं। इनमें से कई लोग बाद में गवर्नर भी बने। - अब 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए पूजन करने जा रहे हैं। आप कैसा महसूस कर रहे हैं?- बहुत अच्छी बात है। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनुपालन कर रही है। जो भी हो रहा है, अच्छा हो रहा है। मुझे तो पहले दिन से पता था कि अयोध्या में एक न एक दिन राम मंदिर का निर्माण होगा। मुझे विवादित ढांचा गिराए जाने की जांच 1992 में मिली, लेकिन मुझे इस बात का आभास 1981 से था कि राम मंदिर बनकर रहेगा। मुझे छोड़िये, आप खुद ही बताइये कि किसको शक था कि अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा।
- विवादित ढांचा गिराए जाने के मामले की जांच के दौरान किसी तरह के दबाव भी आए होंगे?- जरूर आए थे, लेकिन मैं किसी तरह के दबाव में नहीं आया। मुझ पर सिर्फ भगवान की दबाव दे सकता था। वह उसने नहीं दिया। अगर मैं राजनीतिक दबाव में आ जाता तो आज सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पद से रिटायर हुआ होता।
- क्या देश यह जान सकता है कि आप पर किस तरह का दबाव था और दबाव देने वाले कौन लोग थे?- दबाव तो यही था कि हमारे हक में फैसला करो, लेकिन मैंने अपनी रिपोर्ट में पूरी सच्चाई बयां की। दबाव देने वाले का नाम लेना उचित नहीं है। अब वह इस दुनिया में नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि यदि हक में फैसला नहीं आया तो हम सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बनने देंगे।- लिब्राहन साहब, जब आप आयोग के चेयरमैन के नाते सुनवाई कर रहे थे, तब मन में किस तरह के विचार आते थे?
- मैं आपके सवाल का आशय समझ गया। मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि न तो मैं हिंदू हूं, न मुस्लिम, न ईसाई और न सिख। जब मैं आयोग के चेयरमैन के तौर पर काम कर रहा था, उस समय मैं सिर्फ जस्टिस था। उसी भूमिका में मैंने अपनी रिपोर्ट तैयार की है। - विवादित ढांचा गिराए जाने के दौरान आपके सामने तमाम नेता पेश हुए। आप किसे सबसे अच्छा नेता मानते हैं?- लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, दोनों ऐसे नेता हैं, जिनमें हर तरह की समझ है। उनका भाषायी ज्ञान अच्छा है। उन्हें परिस्थितियों को अपने अनुकूल करना आता है। उनकी एक विचारधारा है। दोनों ही एक परिपक्व राजनीतिक सोच के आदमी हैं। वाजपेयी अक्सर शांत रहते थे। वह इशारों में सारा काम करवा देते थे और खुद चुप बैठ जाते थे। उमा भारती और ऋतंभरा दोनों एक से बढ़कर एक हैं।
- जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा, उस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। तब कांग्रेस की क्या भूमिका रही?- देखिये, यह तो जग जाहिर हो चुका कि विवादित ढांचा उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ने गिरवाया, लेकिन ऐसा नहीं था कि वहां क्या हो रहा है, यह कांग्रेस को नहीं पता था। कांग्रेस उस समय चुप रहने की भूमिका में थी। उसने जो हो रहा है, होने दिया। कांग्रेस ने अपने विधान-संविधान की दुहाई देते हुए उसके मुताबिक अपना रास्ता पकड़ा हुआ था। आप ही बताओ कि कौन सा कांग्रेसी ऐसा है, जो यह कह रहा कि अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनना चाहिए।
- जांच के लिए आयोग सिर्फ तीन माह के लिए बना था, लेकिन इसे अपनी रिपोर्ट देने में 17 साल का लंबा समय लग गया। कोई खास वजह?- जब मुझे जांच सौंपी गई थी, उस समय मैं मद्रास हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस था। मुझे दोहरे मोर्चे पर काम करना पड़ा। जब भी सुनवाई होती थी, कोई न कोई कोर्ट इस प्रक्रिया पर स्टे दे देती थी। हम मजबूर थे। 48 बार आयोग का कार्यकाल बढ़ा। इसलिए जांच में देरी हुई है। राजनीतिक दलों की राजनीतिक ज़रूरतों की वजह से जांच रिपोर्ट के पेश होने में देरी हुई।
- विवादित ढांचा विध्वंस के बाद जब सुनवाई चल रही थी, तब क्या किसी मुस्लिम धर्मगुरु अथवा उलेमा या नेता पैरवी के लिए आए थे?- मैं खुद हैरान हूं। मेरे आयोग के सामने कोई मुस्लिम नेता या उलेमा अथवा धर्मगुरु पेश नहीं हुआ। अब आप पूछोगे कि क्या आपने उन्हें बुलाया था? इसमें मेरा जवाब यही है कि मैं क्यों बुलाने लगा। यदि किसी को पैरवी करनी थी तो वह खुद पेश होता।
- आपने पूरे मामले की जांच की। रिपोर्ट भी सरकार को सौंप दी। अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। मंदिर बनने जा रहा है। क्या अब उन्हें आयोग का हिस्सा होने पर अफ़सोस होता है।- मुझे लगता है कि मैंने जो किया, अच्छा किया और मुझे कभी इस आयोग को लेकर अफ़सोस नहीं हुआ। जिन लोगों को मैंने विवादित ढांचा गिराने का दोषी माना, वह अपराधी की श्रेणी में आते थे या नहीं, यह तय करना सुप्रीम कोर्ट का काम था। सबूतों को सुरक्षित रखना इस जांच के दौरान सबसे मुश्किल काम था। इस जांच के बहुत से तथ्य सार्वजनिक नहीं हुए हैं और अब उनका सार्वजनिक होना ज़रूरी भी नहीं है।- आखिरी सवाल, आजकल आपका समय कैसे बीत रहा है?- मुझे किसी चीज का शौक नहीं है। न मैं टीवी देखता हूं और न ही पिक्चर देखने, संगीत सुनने या डांस करने का शौक है। न ही मैं योगा करता हूं और न ही सैर करता हूं। पहले थोड़ा बहुत घूम लेता था, लेकिन अब तो वह भी बंद है। पहले रात तक किताबें पढ़ता था, लेकिन अब वह भी कम हो गई हैं। अब मैं मौका मिलने पर कानून की किताबें पढ़ता हूं। रात को दो बजे सोता हूं। चिंतन करता रहता हूं। सुबह छह बजे उठ जाता हूं। हंसते हुए, कभी-कभी मौका मिलता है तो अपनी बीबी के साथ झगड़ लेता हूं।यह भी पढ़ें: गुरमीत राम रहीम ने रोहतक जेल से फिर मां और समर्थकों को लिखी चिट्ठी, जानें क्या दी नसीहत
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