न्याय नहीं मिला तो नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता ने की आत्महत्या, DC-SP हाईकोर्ट में तलब, देना होगा लापरवाही का लिखित जवाब
करनाल में एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता द्वारा आत्महत्या करने पर जिला प्रशासन की निष्क्रियता से पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट हैरान है। हाई कोर्ट ने करनाल के जिला प्रशासन और एस पी करनाल को कर्तव्य के पालन में लापरवाही बरतने का कारण बताने के निर्देश दिए हैं। करनाल की नाबालिक 12 साल की थी और कक्षा पांच की छात्रा थी।
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। करनाल में एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता द्वारा आत्महत्या (Minor Physical Harrasment Commited Suicide) करने पर जिला प्रशासन की निष्क्रियता से पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट हैरान है। हाई कोर्ट ने करनाल के जिला प्रशासन और एसपी करनाल को कर्तव्य के पालन में लापरवाही बरतने का कारण बताने के निर्देश दिए हैं। करनाल की नाबालिक 12 साल की थी और कक्षा पांच की छात्रा थी। उसने डेढ़ साल बाद तक अपने साथ दुष्कर्म और अप्राकृतिक कृत्य करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने के चलते आत्महत्या कर ली थी।
यौन शोषण की शिकार नाबालिग पीड़िता ने की आत्महत्या
हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए डीसी और एसपी करनाल को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करने का आदेश दिया। कोर्ट ने सख्त आदेश में यह भी कहा कि उक्त शपथ पत्र महिला बाल एवं कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव व डीजीपी हरियाणा के माध्यम से दाखिल किया जाए। हाई कोर्ट ने पाया कि दुर्भाग्य से यौन शोषण की शिकार नाबालिग पीड़िता ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। उसके पड़ोस में आरोपित गिरफ्तार नहीं हुए और किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के बावजूद उसे कोई सहायता प्रदान नहीं की गई।
बयान दर्ज कराने के बाद अकेले कर रही थी संघर्ष
अदालत ने पाया कि एफआईआर 21 सितंबर 2019 को दर्ज की गई थी और उसने पांच मार्च 2021 को आत्महत्या कर ली। इस पूरी अवधि के दौरान नाबालिग लड़की अपने बयान दर्ज होने के बाद भी खुद से संघर्ष करती रही। हाई कोर्ट ने देखा कि 11 दिसंबर 2019 को धारा 164 सीआरपीसी के तहत बयान दर्ज करवाने के बाद वह अकेले संघर्ष कर रही होगी और अंततः उसने आत्महत्या कर ली। इस पूरी अवधि के दौरान प्रथम दृष्टया पुलिस अधिकारियों व बाल कल्याण अधिकारियों सहित राज्य अधिकारियों की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
बाल कल्याण अधिकारियों की भूमिका पर उठाए सवाल
इस मामले में बाल कल्याण अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसी समितियों की उन बच्चों के प्रति गंभीर जिम्मेदारियां हैं, जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है और ऐसे बच्चों के संबंध में एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता है। हाई कोर्ट की जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन ने मुख्य आरोपितों में से एक लवली उर्फ लवकेश द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किए हैं।
आरोपित पीड़ित परिवार के पड़ोस में रहता है
हाई कोर्ट ने देखा कि पुलिस अधिकारियों की ओर से निष्क्रियता इस तथ्य से और भी उजागर होती है कि नाबालिग पीड़िता के पिता ने पुलिस को लिखित शिकायत देकर सूचित किया कि उनकी बेटी ने अपने यौन शोषण के कारण आत्महत्या करने की कोशिश की थी, यहां तक कि आरोपितों ने अप्राकृतिक कृत्य करने की भी कोशिश की और उसके बाद अंततः पीड़िता का अंत हो गया। याचिकाकर्ता व सह अभियुक्तों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। आरोपित पीड़ित परिवार के पड़ोस में रहता है, यहां तक कि निष्पक्ष जांच कराने के बजाय कैंसिलेशन रिपोर्ट भी तैयार हो चुकी है और उस मामले में भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत का स्पष्ट संकेत
अभियुक्तों सहित उसके परिवार के सदस्यों के साथ पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत का स्पष्ट संकेत है। एफआईआर के अनुसार नाबालिग पीड़िता को याचिकाकर्ता के सह आरोपितों से लगातार खतरा था। न तो सह अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया और न ही इस बात का कोई संकेत है कि यौन शोषण की शिकार नाबालिग को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई प्रयास किए गए थे।