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Haryana Politics: गठबंधन के बाद अक्सर बिदकता रहा मायावती का हाथी, इनेलो और बसपा के बीच तीसरी बार होगा गठबंधन

हरियाणा में इसी साल विधानसभा का चुनाव होना है। चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियों ने जोर- शोर से अपनी तैयारी शुरू कर दी है। इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी और इनेलो ने गठबंधन करने जा रही है। बसपा का इससे पहले पांच बार राजनीतिक गठजोड़ हो चुके हैं लेकिन हर बार निराशा बसपा को निराशा ही हाथ लगी।

By Anurag Aggarwa Edited By: Rajiv Mishra Updated: Mon, 08 Jul 2024 01:52 PM (IST)
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11 जुलाई को होगी बसपा और इनेलो के गठबंधन की घोषणा
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा में बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन की राजनीति ज्यादा रास नहीं आती। साल 1998 के लोकसभा चुनाव में इनेलो के साथ हुए गठबंधन को छोड़कर राज्य में जितने भी गठबंधन हुए, वह कभी सिरे नहीं चढ़ पाए।

बसपा सुप्रीमो मायावती का हाथी समय-समय पर बिदकता रहा, जिसका फायदा न तो बसपा को मिल पाया और न ही उसके साथ गठबंधन करने वाले राजनीतिक दल को कोई लाभ मिला। ऐसा इसलिए हुआ कि बसपा सुप्रीमो ने हरियाणा को राजनीतिक रूप से कभी अपने एजेंडे में प्राथमिकता पर रखा ही नहीं। मायावती गठबंधन करती रही और भूलती रही।

पांचवी बार गठबंधन करेगी बसपा

बहुजन समाज पार्टी इस बार राज्य में पांचवीं बार गठबंधन करने जा रही है। प्रदेश में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने प्रस्तावित हैं। ऐसे गठबंधन हर बार चुनाव के आसपास होते हैं।

इस बार बसपा और इनेलो के गठबंधन की घोषणा 11 जुलाई को चंडीगढ़ में होगी, जिसमें दोनों दलों के नेता संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मिलकर चुनाव लड़ने की रूपरेखा तैयार करेंगे।

इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला ने शनिवार को नई दिल्ली में बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ मुलाकात कर उन्हें हरियाणा में चुनावी गठजो़ड़ के लिए तैयार कर लिया है। साल 2018 में भी इनेलो और बसपा का गठबंधन हुआ था।

तब इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला ने बसपा अध्यक्ष मायावती की कलाई पर राखी बांधकर गठबंधन की मजबूती का संकल्प लिया था, लेकिन कुछ समय बाद गठबंधन टूट गया और अब करीब छह साल बाद दोनों भाई-बहन के राजनीतिक रिश्ते फिर से परवान चढ़ते दिखाई दे रहे हैं।

जाट और दलित वोटों पर बसपा व इनेलो की निगाह

हरियाणा में जाटों की संख्या करीब 22 प्रतिशत और दलितों की संख्या 21 प्रतिशथ के आसपास है। इन दोनों वोट बैंक पर बसपा व इनेलो की निगाह है। हालांकि दलित व जाट किसी एक दल से बंधे नहीं हैं।

सभी राजनीतिक दल उन पर अपना हक जताते हैं, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में इनेलो को 1.74 प्रतिशत तथा बसपा को 1.28 प्रतिशत वोट मिले हैं।

स्वतंत्र रूप से इन दोनों दलों का अब राज्य में कोई जनाधार नहीं रह गया है। इसलिए विधानसभा चुनाव में इनेलो व बसपा मिलकर भाजपा तथा कांग्रेस के विरुद्ध तीसरा मोर्चा खड़ा करने की संभावनाओं पर आगे बढ़ रहे हैं।

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इससे पहले इन दलों से हो चुका है गठबंधन

हरियाणा में 1998 में जब बसपा व इनेलो के बीच गठजोड़ हुआ था, तब अंबाला लोकसभा सीट से बसपा के अमन नागरा चुनाव जीते थे। तब के बाद विधानसभा चुनाव में कभी-कभी बसपा के इक्का-दुक्का उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं, मगर वे सभी हमेशा सत्ता पक्ष के पाले में बैठे दिखाई दिए।

इन जीते हुए उम्मीदवारों ने कभी बसपा के हाथी को राज्य में पोषित नहीं होने दिया। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा व हजकां (कुलदीप बिश्नोई) के बीच गठबंधन हुआ था, मगर तब बसपा नेताओं के फोन नहीं उठाने वाले कुलदीप बिश्नोई को गठबंधन की टूट के रूप में इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ा था।

मई 2018 के बाद इनेलो से हुआ गठबंधन भी ज्यादा दिन नहीं चला। फिर साल 2019 में बसपा के साथ भाजपा के पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी ने गठबंधन किया, जो चुनाव के बाद टूट गया। अब देखने वाली बात यह होगी कि बसपा व इनेलो का यह गठबंधन राज्य में किस तरह का राजनीतिक गुल खिलाता है।

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