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बीजेपी और कांग्रेस को मुश्किल में डाल रहा इनेलो-बसपा का गठजोड़, जजपा-आसपा के समीकरणों पर भी निगाह

Haryana Election हरियाणा के चुनावी रण में भाजपा और कांग्रेस को तीसरे गठबंधन के तौर पर इनेलो-बसपा से चुनौती मिल रही है। इनेलो और बसपा के गठबंधन को दलित और जाट गठजोड़ के रूप में देखा जा रहा है। हरियाणा में 90 सीटों में 47 सीट ऐसी हैं जहां कांग्रेस व भाजपा के लिए इनेलो-बसपा का गठजोड़ मुश्किल में डाल रहा है।

By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sun, 29 Sep 2024 08:08 AM (IST)
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जाट-दलित गठजोड़ के रूप में इनेलो व बसपा पर निगाह
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा के चुनावी रण में सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को जाट व दलित गठजोड़ के रुप में तीसरे गठबंधन से चुनौती मिलने लगी है। यह तीसरा गठबंधन प्रदेश में पांच बार राज करने वाले इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और हर चुनाव में कोई ना कोई विधायक जिताकर लाने वाली बहुजन समाज पार्टी के हाथ मिलाने से तैयार हुआ है।

अभी तक इस गठबंधन को हलके में लिया जा रहा था, लेकिन बसपा अध्यक्ष मायावती व इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के एक साथ मंच साझा करने के बाद राज्य में जाट व दलित गठजोड़ के रूप में भाजपा व कांग्रेस के लिए नये मोर्चे के साइड इफेक्ट आने के आसार बन गये हैं।

जजपा और आसपा गठबंधन भी मजबूत

जाट व दलित का यह गठजोड़ सिर्फ इनेलो व बसपा के बीच का मामला नहीं है, बल्कि भाजपा के साथ साढ़े चार साल तक सत्ता में रही जननायक जनता पार्टी व उत्तर प्रदेश के नगीना से सांसद चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी भी इस मोर्चे को मजबूती देने का काम कर रही है।

पहले भी हो चुकी है बसपा-इनेलो का गठबंधन

प्रदेश में इनेलो-बसपा गठबंधन के सूत्रधार अभय सिंह चौटाला हैं, जो बसपा अध्यक्ष मायावती को अपनी बहन मानते हैं। अब से पहले भी दो बार इनेलो-बसपा का राज्य में गठबंधन हो चुका है।

इस बार के गठबंधन की खास बात यह है कि मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अभय सिंह चौटाला के साथ हरियाणा के चुनावी रण में पहली बार लॉन्च किया है, ताकि आकाश उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी की भूमिका में परिपक्वता की ओर बढ़ सके।

चुनाव में जाति और चेहरा ज्यादा प्रभावी

प्रदेश में अभय सिंह चौटाला और आकाश आनंद अब तक दो दर्जन से अधिक जनसभाएं कर चुके हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती, इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला और पार्टी के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला मिलकर राज्य में अब तक जींद के उचाना और पलवल में दो बड़ी रैलियां कर चुके हैं, जिनका सिललिसा आगे बढ़ने वाला है। विधानसभा का यह चुनाव उम्मीदवारों की जाति और चेहरों पर लड़ा जा रहा है। मुद्दे इतने प्रभावी नहीं हैं, जितना जाति और चेहरा प्रभावी बन रहा है।

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भाजपा गैर जाट तो कांग्रेस दलित वोटों के सहारे

भाजपा जहां गैर जाट वोटों को सहेजने की कोशिश कर रही है, वहीं कांग्रेस जाट के साथ दलित वोटों के सहारे मैदान में है। दोनों दलों की इस कोशिश को उनके प्रचार-प्रसार और टिकट वितरण में भी देखा गया है। कांग्रेस ने सबसे अधिक 35 जाटों को टिकट दिए हैं, जबकि भाजपा ने ओबीसी पर भरोसा जताते हुए 24 टिकट दिए हैं।

हरियाणा में ओबीसी की आबादी करीब 35 फीसदी है। यह राज्य में मतदाताओं का सबसे बड़ा वर्ग है। ओबीसी के बाद दूसरे नंबर की आबादी जाट जाति की है। हरियाणा में जाट आबादी करीब 27 प्रतिशत है। तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक दलित वर्ग का है, जिनकी आबादी 20 से 22 प्रतिशत है।

अनुसूचित जाति के लिए 17 सीटें रिजर्व

राज्य में अनुसूचित जाति की 17 सीटें रिजर्व है। भाजपा जिस ओबीसी और दलित समुदाय के हितों की बात कर रही है, उसकी आबादी राज्य में 55 फीसदी से अधिक है। जाटों व दलितों की आबादी को मिलाकर देखा जाये तो यह 47 से 49 प्रतिशत बन रहे हैं। यही वह वर्ग है, जिस पर इनेलो व बसपा गठबंधन की निगाह टिकी हुई है।

राज्य में 30 सीटें ऐसी हैं, जहां जाट जाति निर्णायक मानी जाती है, जबकि 17 विधानसभा सीटें रिजर्व हो गई हैं तो ऐसे में 90 विधानसभा सीटों में 47 सीट ऐसी हैं, जहां कांग्रेस व भाजपा के लिए इनेलो-बसपा का गठजोड़ मुश्किल में डाल रहा है।

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