Farmers Protest के बीच हरियाणा-पंजाब की नई सियासत, जल विवाद पर खास रणनीति
किसान आंदाेलन के बीच हरियाणा और पंजाब के बीच नई सियासत शुरू हो गई है। पंजाब के किसानों के कृषि कानूनों के विराेध के बीच एसवाईएल का मुद्दा भी गरमा रहा है। एसवाईएल नहरं के पानी को लेकर हरियाणा ने खास रणनीति तैयार की है।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Fri, 18 Dec 2020 11:26 AM (IST)
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। Farmers Protest: तीन कृषि कानूनों के हक और विरोध की लड़ाई अब नया अलग मोड़ लेती दिख रही है। पंजाब एवं हरियाणा के बीच अब फिर पानी की सियासत तेज होने लगी है। हरियाणा ने इसके लिए खास रणनीति बनाई है। दूसरी ओर, दिल्ली व हरियाणा की सीमा पर डटे लोगों के बीच न केवल इस लड़ाई का असर दिखाई देने लगा, बल्कि जिस तरह से पंजाब के लोगों पर हरियाणा के किसानों की उपेक्षा, अमर्यादित व्यवहार और उनके प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने के आरोप भी सामने आने शुरू हो गए हैं।
इससे दोनों राज्यों के बीच बरसों से चल रहे अंतरराज्यीय मसलों की आग फिर भड़क गई है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि हरियाणा के लोग पंजाब के इन आंदोलनकारियों की सेवा-पानी में लगे हैं और बदले में उन्हें उनका तिरस्कार मिल रहा है। भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के प्रधान गुरनाम सिंह चढ़ूनी के टीकरी बार्डर पर व्यवहार से यह मामला उजागर हुआ है। चढ़ूनी ने इस पर अपने तेवर से बड़े संकेत भी दे दिए।
हरियाणा मांगे अपना हक: तीन कृषि कानूनों के समर्थन व विरोध की लड़ाई ले रही नया मोड़
दरअसल, हरियाणा व दिल्ली के बार्डर पर जमा आंदोलनकारियों की यह लड़ाई सिर्फ तीन कृषि कानूनों में संशोधन तक सीमित नहीं रह गई है। इस लड़ाई में पूरी तरह से राजनीतिक दखल बढ़ चुका है। जानकारों का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा, जब दिल्ली बार्डर पर मौजूद हरियाणा के लोगों को पंजाब से आए राजनीतिक आंदोलनकारियों के अमर्यादित और उपेक्षित व्यवहार का शिकार होना पड़ रहा।
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हरियाणा के नेताओं कहना है कि राज्य का गठन होने के बाद से पंजाब लगातार यहां के लोगों के हितों पर कुठाराघात करता चला आ रहा है। करीब आधा दर्जन मसले ऐसे हैं, जिन्हें लेकर अक्सर पंजाब ने हेकड़ी दिखाई और हरियाणा के हितों को किसी भी हद तक जाकर पूरा नहीं होने दिया।हरियाणा का आरोप- एसवाईएल, रावी-ब्यास के पानी और हाईकोर्ट को लेकर पंजाब का रुख नकारात्मक
हरियाणा के नेताओं का कहना है कि पंजाब कहने को तो हरियाणा का बड़ा भाई है, लेकिन अंतरराज्यीय मसलों के समाधान को लेकर उसने आज तक हरियाणा के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह नहीं होने दिया। सबसे पहले एसवाईएल नहर के निर्माण की बात की करें तो पंजाब के रवैये का खुलासा हो जाता है।दरअसल पंजाब में किसी भी दल की सरकारें रहीं, उन्होंने हरियाणा को एसवाईएल नहर का पानी देने में कभी रुचि नहीं दिखाई। अब सुप्रीम कोर्ट हरियाणा के हक में फैसला दे चुकी है, लेकिन पंजाब अपने पास पानी नहीं होने का बहाना बनाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक की अवहेलना करने से बाज नहीं आ रहा है। हरियाणा के यदि उसके हिस्से का एसवाईएल का पानी मिल जाए तो यहां के किसान मालामाल हो सकते हैं।
दूसरा मसला राबी-व्यास के पानी को हरियाणा लाने का है। इस नदी का पानी पंजाब के रास्ते पाकिस्तान जा रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने राबी-व्यास के पानी के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से हस्तक्षेप करने का कई बार अनुरोध किया, लेकिन हरियाणा के इस अनुरोध पर खास गौर नहीं किया गया। हरियाणा अपनी अलग राजधानी और अलग हाईकोर्ट को लेकर भी लंबे अरसे से मांग करता चला आ रहा है, लेकिन पंजाब की हठधर्मिता के चलते इन दोनों मसलों का समाधान नहीं हो पाया है।
हरियाणा का पक्ष- विधानसभा के कमरों पर कब्जा, अलग राजधानी और प्रशासनिक ढांचे में भी जबरदस्तीचंडीगढ़ फिलहाल हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों की राजधानी है। यह केंद्रशासित राज्य भी है। अलग राजधानी का मुद्दा पंजाब एव हरियाणा हाईकोर्ट में भी चला, लेकिन कोई भी राज्य यह दस्तावेज पेश नहीं कर पाया कि वास्तव में चंडीगढ़ पर किसका हक है। अलग राजधानी बनाने के लिए केंद्र की ओर से मात्र 10 करोड़ रुपये की पेशकश की गई थी, जिससे उसका विकास संभव नहीं है। चंडीगढ़ के अपने तर्क हैं। उसका कहना है कि जब यह केंद्रशासित राज्य बन चुका तो हरियाणा और पंजाब को अपनी अलग-अलग नई राजधानी बनानी चाहिए। लिहाजा इस मसले का समाधान आज तक नहीं हो पाया है।
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हरियाणा के नेताओं का कहना है कि राज्य के बंटवारे के समय चंडीगढ़ की 60 फीसदी संपत्ति पर पंजाब और 40 फीसदी संपत्ति पर हरियाणा को कब्जा दिया गया। इसके बावजूद हरियाणा विधानसभा के करीब 20 फीसदी हिस्से पर पंजाब ने कब्जा कर लिया। विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता कई बार विधानसभा भवन में राज्य के हक के कमरे वापस लेने के लिए पत्र व्यवहार कर चुके हैं, मगर पंजाब ने जिद पकड़ते हुए साफ तौर पर कह दिया कि वह हरियाणा को उसके दावे वाले विधानसभा के कमरे देने को तैयार नहीं है। दलील दी गई कि पंजाब के पास पहले ही विधानसभा के कमरों की कमी बनी हुई है। अब यह मामला केंद्र सरकार के पास पहुंच चुका है। यही स्थिति अलग हाईकोर्ट की है।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पर दोनों राज्यों के साथ ही चंडीगढ़ की भी दावेदारी है। हाईकोर्ट में 60 फीसदी जज पंजाब कोटे से और 40 फीसदी जज हरियाणा के कोटे से हैं। पंजाब चाहे तो इसी भवन को विस्तार देकर अलग-अलग हाईकोर्ट बनाई जा सकती हैं, मगर इसमें भी बाधाएं डाली जा रही हैं। इतना ही नहीं, चंडीगढ़ प्रशासन में हरियाणा के अफसरों की हिस्सेदारी को लेकर भी पंजाब ने हमेशा अपनी चलाई। चंडीगढ़ यूटी प्रशासन में हरियाणा के अफसरों की भागीदारी न के बराबर है, जबकि यहां पंजाब कैडर के अफसरों की भरमार बनी हुई है। दोनों राज्य जब स्तवंत्र हैं तो इस हिस्सेदारी को पचास-पचास फीसदी किए जाने पर पंजाब को कड़ा ऐतराज है।
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