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Punjab And Haryana HC: 'जमानत रद्द करने की याचिका पर सरकार को लगाया जुर्माना', हाईकोर्ट ने अधिकारियों को संवेदनशील बनाने का दिया निर्देश

जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने एक व्यक्ति को बंधक बनाने के आरोप में दर्ज मामले में पिछले साल जुलाई में रोहतक के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा एक आरोपित को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करने की हरियाणा राज्य की याचिका को खारिज करते हुए 10000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। सहयोगियों के बीच बातचीत के संबंध में डेटा मौजूद नहीं था।

By Jagran News Edited By: Paras PandeyUpdated: Sat, 13 Jan 2024 02:00 AM (IST)
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बेंच ने कहा कि वर्तमान याचिका कमजोर तथ्यो पर दायर की गई थी।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवम हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार से कहा कि वह तर्क और न्याय के उद्देश्य मानक को पूरा किए बिना यांत्रिक तरीके से हाई कोर्ट के समक्ष अपील दायर करने से रोकने के लिए अपने अधिकारियों की संवेदनशीलता सुनिश्चित करे।

जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने एक व्यक्ति को बंधक बनाने के आरोप में दर्ज मामले में पिछले साल जुलाई में रोहतक के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा एक आरोपित को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करने की हरियाणा राज्य की याचिका को खारिज करते हुए 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। रोहतक जिले के कलानौर पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 387 और 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया था।

पीठ ने कहा कि जमानत खारिज की सरकार की अपील इस आधार पर की गई थी कि प्रतिवादी-अभियुक्त और उसके सहयोगियों के बीच बातचीत के संबंध में डेटा मौजूद नहीं था।

फोरेंसिक लैब से तारीख निकालने में समय लगेगा। इस बीच, आरोपी इसी तरह के अन्य अपराध कर सकता है क्योंकि वह पहले पलवल जिले के एक पुलिस स्टेशन में आईपीसी और शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक अन्य मामले में शामिल था।

याचिकाकर्ता के वकील को सुनने और रिकॉर्ड को देखने के बाद, बेंच ने कहा कि वर्तमान याचिका कमजोर तथ्यो पर दायर की गई थी। जिस अपराध के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी, उसमें सात साल तक की सजा का परविधान था।

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि सात साल तक की कैद की सजा वाले अपराधों के लिए आरोपित को हिरासत में लिए बिना जमानत अर्जी पर फैसला किया जा सकता है। आदेश में आवेदन पर निर्णय होने तक अंतरिम जमानत देने को बढ़ावा दिया गया।

पीठ ने कहा कि सरकारी वकील ने स्पष्ट रूप से बिना दिमाग लगाए यांत्रिक तरीके से जमानत रद्द करने के लिए वर्तमान याचिका दायर करने की सिफारिश की है। इस तरह के सनकी और मनमौजी दृष्टिकोण का अवमूल्यन किया जाना आवश्यक था।

जमानत रद्द करने के लिए ठोस और भारी परिस्थिति का होना एक अनिवार्य शर्त है, जो मौजूदा मामले में पूरी तरह से गायब है।

इस लापरवाह और सरसरी दृष्टिकोण के साथ राज्य ने जमानत रद्द करने का रुख किया है, इसकी सराहना नहीं की जा सकती क्योंकि इसका आरोपित की स्वतंत्रता पर सीधा और गंभीर प्रभाव पड़ता है। बेंच ने आदेश की कॉपी हरियाणा के अभियोग निदेशक को भेजने का भी निर्देश दिया।

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