Chandigarh: SC और HC ने डिप्लोमा को माना वैध, HSSC ने करार दिया था अवैध; हाईकोर्ट ने जुर्माने के साथ जारी किए ये आदेश
पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने एचएसएससी को एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया और याचिकाकर्ताओं को मेरिट के अनुसार नियुक्ति देने का आदेश दिए हैं। दरअसल कुछ यूनिवर्सिटी से दो साल का डिप्लोमा करने वाले उम्मीदवारों को एचएसएससी ने अवैध करार दे दिया था। इस पर कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए एचएसएससी पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने डीम्ड विश्वविद्यालय, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (जेएनवी), उदयपुर से आर्ट एंड क्राफ्ट में दो साल का डिप्लोमा रखने वालों की उम्मीदवारी पर विचार नहीं करने के लिए हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एचएसएससी) पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
इसके साथ ही हाई कोर्ट ने एचएसएससी को उन सभी चयनित 816 आर्ट एंड क्राफ्ट शिक्षकों के पूर्व परिणाम को संशोधित करने का भी निर्देश दिया है, जिन्होंने जेआरएन उदयपुर से डिप्लोमा उत्तीर्ण किया था और यदि उनके द्वारा प्राप्त अंक उनकी संबंधित श्रेणियों में अंतिम चयनित उम्मीदवारों से अधिक हैं तो चयनित अभ्यर्थियों को उसी तिथि से नियुक्ति दी जायेगी।
हाई कोर्ट ने उन्हें वेतन को छोड़कर सभी परिणामी लाभ देने का भी आदेश दिया है, जो अन्य को सेवा में शामिल होने की तारीख से दिया जाएगा। हाई कोर्ट ने आयोग को इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर इन निर्देशों का पालन करने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने आयोग की कार्यशैली के कारण उस पर एक लाख रुपये जुर्माना भी लगाने का आदेश दिया यह राशी गरीब रोगी कल्याण कोष, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में जमा की जाएगी।
दर्जन भर याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने दिए ये आदेश
हाई कोर्ट के जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने 14 नवंबर, 2021 को घोषित परिणाम के अनुसार आर्ट एंड क्राफ्ट के पदों के लिए राजबीर सिंह व अन्य याचिकाकर्ताओं की उम्मीदवारी पर विचार करने के लिए एचएसएससी को निर्देश देने की मांग वाली दर्जन भर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये आदेश पारित किए हैं।पीठ ने कहा कि ऐसे संस्थानों से डिप्लोमा अमान्य होने के संबंध में आयोग को प्राप्त आपत्तियों के बारे में जो दावे किए गए हैं, वे अस्पष्ट हैं क्योंकि न तो इसका विवरण और न ही आपत्तियों की तारीख का खुलासा किया गया है। इस तरह की अनिश्चित आपत्तियां, अपने आप में याचिकाकर्ताओं को अयोग्य घोषित करने का आधार नहीं हो सकतीं, खासकर तब जब आयोग ने खुद फैसले के साथ-साथ परिपत्र के बावजूद उन्हें योग्य माना और उन्हें अंतिम तक चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी थी।
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