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SYL Canal Dispute को खत्म करने के लिए सीएम मनोहर पंजाब के मुख्यमंत्री से बैठक करने को तैयार, पत्र लिखकर जताई ये उम्मीद

हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने पंजाब सरकार को पत्र भेजा है। इस पत्र में एसवाईएल के मुद्दे पर पंजाब सीएम भगवंत मान को साथ में बैठक करने की बात कही है। बता दें कि इससे पहले दोनों के बीच आखिरी बार 14 अक्टूबर 2022 को द्विपक्षीय बैठक हुई थी। हालांकि हरियाणा सरकार की एसवाईएल नहर पर हुई सभी बैठकें पंजाब सरकार के नकारात्मक रवैये के कारण बेनतीजा रही हैं।

By Jagran NewsEdited By: Gurpreet CheemaUpdated: Mon, 16 Oct 2023 06:46 PM (IST)
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सीएम मनोहर लाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री को SYL नहर के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए पत्र लिखा है

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल सतलुज-यमुना लिंक नहर (Sutlej Yamuna link canal dispute) मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हक में आने के बाद एक बार फिर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ बैठक करने को तैयार हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करते हुए हरियाणा के हक में एसवाईएल का निर्माण कराने के निर्देश दिए हैं, लेकिन पंजाब सरकार और पंजाब के विपक्षी राजनीतिक दल हरियाणा को उसका हक देने के लिए तैयार नहीं हैं। इससे पहले कि केंद्र सरकार इस पूरे मामले में हस्तक्षेप करे, हरियाणा सरकार ने स्वयं पहल कर पंजाब को मनाने व सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सकारात्मक रूप से आगे बढ़ने के लिए पंजाब को तैयार करने की पहल की है।

सीएम मनोहर लाल ने कहा कि हरियाणा का प्रत्येक नागरिक 1996 के मूल वाद संख्या 6 के डिक्री के अनुसार, पंजाब के हिस्से में एसवाईएल नहर के निर्माण के शीघ्र पूरा होने की उत्सुकता से इंतजार कर रहा है। इसके अलावा, वे अपने लोगों और दक्षिणी हरियाणा में हमारी सूखी भूमि के इस लंबे समय से प्रतीक्षित सपने को साकार करने के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार हैं। उन्होंने उम्मीद जताई है कि पंजाब सरकार निश्चित रूप से इस मामले को हल करने में अपना सहयोग देगी।

पंजाब में एसवाईएल का काम कब पूरा होगा?

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है। SC के फैसलों को लागू करने की बजाए पंजाब ने वर्ष 2004 में समझौते निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर इनके क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का प्रयास किया।

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पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के अंतर्गत 1976 में भारत सरकार के आदेश के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के पानी में से 3.5 एमएएफ जल का आबंटन किया गया था। एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है।

पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है। पंजाब के इस रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एमएफ पानी नहीं ले पा रहा है।

एसवाईएल का पानी न मिलने से हरियाणा को क्या-क्या नुकसान?

हरियाणा सरकार के अनुसार, इस पानी के न मिलने से दक्षिणी-हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल के न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं, जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता है।

पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के न बनने से हरियाणा को उसके हिस्से का पानी नहीं मिल रहा जिसकी वजह से 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन करता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपये बनता है।

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