Haryana News: 12 साल से पेंशन के लिए दर-दर भटकती रही गरीब विधवा, अब विभाग को HC की फटकार; लगाया एक लाख का जुर्माना
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक विधवा को 12 साल से अधिक समय तक पेंशन देने से मना करने पर दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम और हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। हाईकोर्ट ने कहा कि पेंशन और पारिवारिक पेंशन सहित पेंशन संबंधी लाभ राज्य द्वारा किया जाने वाला दान नहीं है और इसे प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है।
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक विधवा को 12 वर्षों से अधिक समय तक पेंशन देने से मना करने के लिए दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (डीएचबीवीएन) और हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड (एचवीपीएनएल) पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि पेंशन और पारिवारिक पेंशन सहित पेंशन संबंधी लाभ राज्य द्वारा किया जाने वाला दान नहीं है और इसे प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है। जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा कि एक गरीब विधवा को अनुचित कारणों से 12 वर्षों तक पारिवारिक पेंशन के लाभ से वंचित रखा गया और उसे केवल इसलिए इधर-उधर भटकना पड़ा क्योंकि विभाग के संगठन का विभाजन हो गया था।
हाईकोर्ट ने की ये टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारियों ने एक विधवा को पारिवारिक पेंशन प्रदान न करके अपने कर्तव्यों का परित्याग कर दिया है, जिसकी वह बिना किसी विवाद के कानून के तहत हकदार थी। भिवानी निवासी सुजाता मेहता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणियां की।
सुजाता ने कहा कि वह विधवा है उसने अधिकारियों द्वारा 20 मई 2008 से 31 जुलाई 2020 तक पारिवारिक पेंशन व बकाया पर ब्याज न देने की कार्रवाई पर निर्देश देने की मांग की गई थी। उसके पति तत्कालीन हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड ( एचएसईबी ) में रीडर-कम-सर्किल अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे और वे 30 जून 1999 को उक्त बोर्ड से सेवानिवृत्त हुए थे और उसके पति का 2008 में निधन हो गया था।
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सुजाता ने कहा उसने 2010 में डीएचबीवी के समक्ष पारिवारिक पेंशन के लिए आवेदन दायर किया था, लेकिन उन्हें बताया गया कि चूंकि उनके पति 1999 में एचएसईबी के चार संगठनों में विभाजन से पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके थे, इसलिए ऐसे मामलों को एचवीपीएनएल अधिकारियों द्वारा निपटाया जाना है।
गरीब विधावा को दौड़ाना अत्यधिक निंदनीय: हाईकोर्ट
इसके बाद, वह इधर-उधर भागती रही और निगम के विभिन्न अधिकारियों से भी मिलती रही, लेकिन याचिकाकर्ता को पारिवारिक पेंशन मंजूर नहीं की गई। दलील सुनने के बाद, कोर्ट ने कहा कि यदि हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड का विभाजन अधिनियम के माध्यम से किया गया है और उसके बाद विभिन्न निर्देश जारी किए गए हैं कि किसकी पारिवारिक पेंशन किस संगठन द्वारा निपटाई जाएगी, तो यह उन बोर्डों का काम और भार था जिन्हें शामिल किया गया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह एक गरीब विधवा का काम नहीं था कि वह उपरोक्त तकनीकी जानकारी जानती कि उसे किस संगठन के समक्ष आवेदन करना है और पूरा दायित्व प्रतिवादियों-सांविधिक निकायों पर था, न कि एक गरीब विधवा पर।
जस्टिस पुरी ने कहा कि याचिकाकर्ता जो एक गरीब विधवा है, को एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक भागने के लिए मजबूर करने में प्रतिवादियों द्वारा अपनाई गई पद्धति न केवल असंवेदनशील है, बल्कि अत्यधिक निंदनीय भी है।
यदि मान लिया जाए कि याचिकाकर्ता को कोई आवेदन दाखिल करना था, तो भी वर्ष 2010 में ऐसा किया गया है, लेकिन केवल इस आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई कि याचिकाकर्ता को किसी अन्य संगठन के समक्ष आवेदन दाखिल करना था, जो एक विभाजित संगठन भी था।
हाईकोर्ट ने 1 लाख रुपये का लगाया जुर्माना
एक मामले का हवाला देकर कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक पेंशन सहित पेंशन और पेंशन संबंधी लाभ प्राप्त करने का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है। हाईकोर्ट ने हरियाणा बिजली वितरण निगम को एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए यह राशि याची महिला को देने व पारिवारिक पेंशन याचिकाकर्ता के पति की मृत्यु की तिथि से छह प्रतिशत प्रतिवर्ष (साधारण) ब्याज सहित देने का निर्देश दिया।
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