जिद ओ जुनून: डिस्कवरी चैनल देख जागा जज्बा, प्लॉट बेच एएसआइ ने लांघ डाली पर्वतों की चोटियां Panipat News
चोटियों को लांघने की चाहत में एएसआइ ने प्लॉट तक बेच डाला। अब छह और महाद्वीपों के पर्वतों की चोटी को पार करना अगला लक्ष्य है। 2020 से अभियान करेंगे शुरू।
By Anurag ShuklaEdited By: Updated: Tue, 19 Nov 2019 05:36 PM (IST)
पानीपत, [विजय गाहल्याण]। यूं तो इनके कंधे पर समाज की सुरक्षा का दायित्व है, मगर ऊंचे-ऊंचे पर्वतों को लांघने की चाहत भी कम नहीं। घर के हालात जज्बे के बीच आड़े आए तो प्लाट तक बेच डाला। पिता ने लाख नसीहत दी, पत्नी ने भी रोका, लेकिन इनके कदम रूके नहीं। यूरोप महाद्वीप की ऊंची चोटियों में शुमार एलब्रुस पर्वत की चोटी पर तिरंगा फहरा चुके हैं और अब अगला लक्ष्य दुनिया के छह सबसे ऊंचे पर्वतों को फतेह करना है। यह शख्स कोई और नहीं, पानीपत से चंद किलोमीटर दूर गोहाना के उत्तम नगर के रहने वाले एएसआइ कपिल ठाकुर हैं। लक्ष्य पूर्ति के लिए 2020 में वह अभियान शुरू करेंगे, इसके लिए हरियाणा पुलिस विभाग से डेढ़ साल का अवकाश भी लेंगे। इस अभियान पर तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपये खर्च होंगे, हालांकि सरकारी तौर पर अब तक कोई मदद न मिलने का कपिल को मलाल भी है। हालांकि जिद और जुनून के चलते पहाड़ों को कदमों तले लाने का जज्बा भी कम नहीं है।
डिस्कवरी चैनल देख जागा जज्बा, 2010 शुरू किया अभियान
कपिल ने बताया कि बचपन में डिस्कवरी चैनल पर पर्वतारोहियों को देखा था, तभी ठान लिया था कि विश्व के सबसे ऊंचे पर्वतों की चोटी तक पहुंचना है। 17 साल की आयु में घर से भागकर दोस्तों संग लेह गया। वहीं से पर्वतों को पार करने का हौसला मिला। 2010 में पुलिस में सिपाही के तौर पर भर्ती हुआ। 2010 में ही सौ पुलिस के जवानों में से 17 जवानों का हरियाणा एडवेंचर टीम में चयन हुआ। इनमें एक वह भी एक था। पर्वतारोही डीएसपी ममता सौदा से उन्हें ट्रेनिंग मिली। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।
प्लाट बेचकर ट्रेनिंग ली, सप्ताह में दो बार साइिकल से आते हैं ड्यूटी पर
कपिल बताते हैं कि ट्रेनिंग व पर्वत पर चढ़ाई का खर्च वहन करने की हैसियत नहीं थी। आर्थिक स्थित कमजोर होने के कारण प्लाट बेचना पड़ा। जीपीएफ के रुपये भी निकलवा लिए। करीब 45 लाख रुपये से उत्तराखंड के ओली, अमेरिका, रूस और कनाड़ा में ट्रेनिंग ली। शरीर को फिट रखने के लिए सप्ताह में चार दिन 10 किलोमीटर की दौड़ और दो बार साइिकल से पानीपत तक रेस लगाता हूं।
पिता कहते हैं बर्फ में दफन हो जाएगा, पत्नी भी करती हैं मनाकपिल ने बताया कि पिता सुरेश कुमार का फर्नीचर का काम है। पिता अक्सर कहते हैं कि पहाड़ पर चढऩे की बजाय नौकरी पर ध्यान दें। पर्वत पर चढ़ाई का शौक ठीक नहीं। कभी बर्फ में ही शव दफन मिलेगा। पत्नी अमलता टोकती हैं कि एक बेटा व दो बेटियों का भविष्य भी देख लें। पहाड़ खाने को नहीं देंगे।
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- 2011 में हिमालय पर्वत की पीर पंजाल चोटी फतेह
- 2011 में उत्तराखंड की कुबेर चोटी।
- 2013 में उत्तराखंड का कामेट पर्वत।
- 2016 में कश्मीर की कून चोटी।
- 2019 में माउंट एवरेस्ट बी कैंप।