कैथल में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल: दरगाह में हिंदू धर्म के पुजारी, इस्लामिक तरीके से इबादत
जवाहर पार्क स्थित बाबा शाह कमाल दयाल कादरी की दरगाह सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। इस दरगाह में हिंदू धर्म के पुजारी है और पूजा इस्लाम धर्म से होती है। मार्च में लगने वाले उर्स मेले में शीतलपुरी के डेरे से दरगाह पर चढ़ने वाली चादर पहुंचती है।
By Anurag ShuklaEdited By: Updated: Mon, 04 Jan 2021 11:41 AM (IST)
पानीपत/कैथल, [सुरेंद्र सैनी]। कैथल शहर के जवाहर पार्क स्थित बाबा शाह कमाल दयाल कादरी की दरगाह आकर्षण का केंद्र हैं। इस दरगार पर पूजा-अर्चना करने के लिए हर धर्म के लोग पहुंचते हैं। हिंदू समाज के लोग पूजा करते हैं तो मुस्लिम शीश नवाते हैं। इस दरगाह की खास बात यह है कि इस दरगाह के पुजारी हिंदू हैं। यहां पर पूजा करने के लिए पहुंचने वाले लोग हर वीरवार को चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं।
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दरगाह पर भले ही पूजा इस्लाम धर्म के अनुसार होती हो, लेकिन यहां का पुजारी हिंदू है। इस दरगाह का जीर्णोद्धार एक हिंदू परिवार के स्व. रोशन लाल गुप्ता ने करवाया था। वे वर्षों तक इस दरगाह की देखभाल करते रहे। वर्तमान में दरगाह पर रजनीश शाह देखभाल कर रहे हैं।
जारी है वर्षों पुरानी परंपरा
वर्षाें के बाद भी दरगाह पर परंपरा जारी है। बाबा शीतलपुरी के डेरे में बाबा की समाधि के निकट बाबा शाह कमाल की जोत जलाई जाती है। जब भी शाह कमाल का उर्स मेला लगाया जाता है तो बाबा शीतलपुरी के डेरे से सबसे पहली चादर शाह कमाल की दरगाह पर भेजी जाती है। इसी तरह जब शीतलपुरी के डेरे पर मेला लगता है तो बाबा शाहकमाल की दरगाह से आदर स्वरूप बाबा की समाधि पर पगड़ी भेजी जाती है। बाबा रजनीश शाह ने बताया कि हर वर्ष यहां उर्स पर मेला लगता है, जिसमें भंडारा व कव्वालियों का कार्यक्रम होता है।
429 वर्ष पहले बगदाद से आए थे कैथल
इतिहास के अनुसार हजरत बाबा शाह कमाल कादरी 429 वर्ष पूर्व बगदाद से कैथल आए थे। वे मुस्लिमों के पैगंबर हजरत गोसपाक महीउद्दीन की 11वीं पुश्त थे। उस समय दिल्ली पर औरंगजेब का शासन था। वह हिंदूओं को मुसलमान बनाने पर जोर दे रहा था और हिंदूओं को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करता था। बाबा शीतलपुरी धर्म परिवर्तन के खिलाफ थे। उन्होंने नवाबों की एक न चलने दी।
नवाब दिल्ली पहुंचे और औरंगजेब से बातचीत की। औरंगजेब ने बाबा शीतलपुरी की शक्ति परीक्षण के लिए बगदाद से कमालशाह को कैथल भेजा। शाह कमाल शेर पर सवार होकर कैथल में शीतलपुरी से शास्त्रार्थ करने पहुंचे। उस समय बाबा शीतलपुरी एक दीवार पर दातुन कर रहे थे। उनके सम्मान में उन्होंने दीवार से कहा कि ये फकीर इतनी दूर से चलकर आए हैं तो तू इनके सम्मान में चार कदम भी नहीं चल सकती। इतने में दीवार आगे चल पड़ी। शाह कमाल कादरी बाबा के चमत्कार से इतने प्रभावित हुए कि वे वापस बगदाद नहीं गए और कैथल के ही होकर रह गए।
तीन दिन तक चलता है सालाना उर्स मेलाहर साल मार्च माह में तीन दिनों तक उर्स मेला दरगाह पर लगता है। मेले में न केवल कैथल व आसपास के जिलों से बल्कि दूसरे राज्यों यहां तक की पाकिस्तान से भी मुस्लिम समाज के लोग चादर चढ़ाने के लिए पहुंचाते हैं। मान्यता है कि जो भी यहां चादर चढ़ता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।
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