प्रदीप शर्मा, पानीपत। शहर से 18 किलोमीटर दूर गांव शहर मालपुर। 36 साल पहले किसान ईश्वर सिंह को आए एक आइडिया ने गांव को मशरूम विलेज के रूप में नई पहचान दी। खेती में उनकी नवाचार करने की इच्छा ने किसानों को स्वावलंबन की राह पर ला दिया है।
बीते 36 साल में जहां लोग परंपरागत खेती कर अपना गुजर-बसर करते थे, आज वह मशरूम की बड़े स्तर पर खेती कर रहे हैं। यही नहीं मशरूम के क्वालिटी ओर क्वांटिटी दोनों ही अच्छी होने के कारण गांव में मशरूम की प्रोसेसिंग करने पर विचार किया जा रहा है। ईश्वर के छोटे भाई ओमप्रकाश इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। वह मशरूम प्रोसिंग यूनिट स्थापित करने के लिए लगातार बागवानी विभाग के संपर्क मे हैं।
मशरूम प्रोसेसिंग पर किया जा रहा विचार
गांव के किसान जोगिंद्र व सतपाल ने बताया कि फिलहाल गांव के लोग केवल सर्दी के मौसम में ही मशरूम उगाते हैं, लेकिन सालभर यही आय का जरिया बना रहे, इसलिए मशरूम की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने पर विचार किया जा रहा है। मशरूम से आचार, मुरब्बा, शूप व अन्य कई प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं, इसके लिए एफपीओ बनाकर सरकार से मदद लेकर मशरूम को सालभर के लिए आय का जरिया बनाने की कौशिश की जाएगी।
कैसे आया ईश्वर को आइडिया?
ईश्वर सिंह के पिता भी खेती करते थे, लेकिन ईश्वर सिंह खेती में नवाचार के पक्ष में थे, इसलिए हर समय खेती में कुछ हटकर करने की चाह थी, ईश्वर सिंह सोलन किसी काम से गए हुए थे, वहां पर मशरूम सेंटर में ट्रेनिंग चली हुई थी, मन में विचार आया क्यों न वह भी ट्रेनिंग कर मशरूम की खेती का उत्पादन शुरू कर दें।गांव आकर उन्होंने अपने भाईयों से बात की, लेकिन कुछ समय बाद उनकी रेलवे में नौकरी लग गई, उसके भाईयों ने इसको क्रियान्वित किया। वर्तमान में ईश्वर के चार भाई ओमप्रकाश, जयभगवान, जोगिंद्र व जगबीर यह काम कर रहे हैं।
20 हजार लागत, 40 हजार होता था मुनाफा
ईश्वर के छोटे भाई ओमप्रकाश बताते हैं कि जब वह छोटे थे उन्होंने इस काम को महज एक शेड से शुरू किया था। उस समय इस पर करीब 20 हजार रुपये लागत आती थी ओर इससे 40 हजार रुपये मुनाफा हो जाता था।उसस समय यह राशि हमारे लिए बहुत बड़ी थी। जब पहली बार इतने पैसे मशरूम के काम में बचे तो बड़े स्तर पर काम करना शुरू कर दिया। अब 35 से 40 शेडों में मशरूम की खेती कर रहे हैं।
गांव के लोग भी जुड़ने लगे
शहर मालपुर में जब पहली बार इस काम को ईश्वर के भाईयों ने शुरू किया तो सब उनका सांप की छतरी उगा दी कहकर मजाक उड़ाते थे, लेकिन जब उनके इस नवाचार से आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव हुआ तो गांव के लोग उनसे जुड़ने लगे ओर धीरे-धीरे कर 70 प्रतिशत गांव के किसान इस खेती से जुड़ते चले गए, आज अच्छे खासे-पैसे कमा रहे हैं।
मंडी में मशरूम पहुंची, व्यापारी खुद पहुंचने लगे
मशरूम की शुरूआत से ही इसको बेचने में कोई परेशानी नहीं आई। ओमप्रकाश बताते हैं कि उनका सारा माल दिल्ली जाता था, गांव के लोग भी इसको करने लगे तो उत्पादन हर साल करीब 2000 टन के पार पहुंच गया। अच्छी क्वालिटी ओर क्वांटिटी होने के कारण दिल्ली के व्यापारी गांव में ही पहुंचने लगे ओर पहले से ही किसानों के साथ मशरूम के डील करने लगे हैं।
ऐसे किया मशरूम की क्वालिटी को बेहतर
ईश्वर सिंह ने अपने साथ भाईयों की भी ट्रेनिंग करवाई। जो लोग उनके साथ जुड़ते चले गए मशरूम रिसर्च सेंटर सोलन व मूरथल से उनकी ट्रेनिंग कराई गई। इस खेती की बारीकियां समझी ओर अच्छा क्वालिटी उगाने में कामयाब हुए।
व्हाइट बटन मशरूम ही उगाते हैं गांव के लोग
मार्केट में वैसे तो डींगरी, कीड़ा जड़ी, ओयस्टर, मिल्की जैसी कई प्रजातियों की मशरूम उपलब्ध है, लेकिन गांव के लोग केवल व्हाइट बटन मशरूम की ही खेती करते हैं, क्योंकि यहां के वातावरण के अनुसार व्हाइट बटन मशरूम ही अच्छे से उगाई जा सकती है। अन्य प्रजातियों के लिए वातावरण अलग होना चाहिए।
70 प्रतिशत किसानी मशरूम पर आधारित
ईश्वर सिंह का आइडिया गांव के लोगों को ऐसा भाया कि मशरूम की खेती बड़े स्तर पर करनी शुरू कर दी। गांव को मशरूम विलेज के रूप में नई पहचान दिला दी। वर्तमान में भी 70 प्रतिशत किसान परंपरागत खेती छोड़ मशरूम फार्मिंग करने में लगे हुए हैं। अभी मशरूम का सीजन शुरू हो गया है। इस बार भी यहां के किसानों ने 650 से 700 बड़े शेड लगाए हैं।
र साल उगाते हैं 2000 टन से ज्यादा मशरूम
करीब 4500 की आबादी वाले शहर मालपुर गांव के लोगों को मशरूम की खेती इस कदर भा गई है कि वह दूसरी फसलों गेहूं, धान व गन्ने की तरफ बहुत कम ध्यान देते हैं। इस छोटे से गांव से हर साल 2000 टन से ज्यादा मशरूम का उत्पादन होता है।
20 करोड़ तक पहुंची आमदनी
गांव में मशरूम की खेती से होने वाली बचत 40 हजार रुपये से शुरू हुई थी, यह करोबार बढ़कर अब करीब 20 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। गांव के लोग खुशी हैं।
अनुसूचित जाति के लिए 51 हजार अनुदान
मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से अनुसूचित जाति के किसानों को 300 बैग मशरूम की खेती पर 51 हजार रुपये का अनुदान देती है। जबकि अन्य किसी भी श्रेणी के किसान को सिर्फ एसी यूनिट लगाने पर 40 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान है।
मशरूम से कमाई, वेस्ट से बढ़ रही जमीन उपाजाऊ शक्ति
धान की फसल से बचे अवशेष जिस प्रकार से लोगों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं, इसके अवशेष जलाने से जमीन की उपाजाऊ शक्ति नष्ट हो रही है, लेकिन ठीक इसके विपरीत मशरूम की खेती में आदमनी तो अच्छी हो ही रही है साथ में इसके बचे हुए वेस्ट कंपोस्ट से जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ रही है।मशरूम लेने के बाद इसका जो वेस्ट कंपोस्ट होता है वह जमीन की कार्बन क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ नाइट्रोजन व अन्य पोषक तत्वों की कमी भी पूरी करता है।
नौकरियों के भरोसे नहीं युवा
शहर मालपुर गांव के बहुत कम लोग प्राइवेट नौकरियों में हैं। उनका मानना है कि प्राइवेट नौकरी से बेहतर मशरूम की खेती से आय हो जाती है। युवा नौकरियों के भरोसे नहीं है। गांव में ही मशरूम की खेती के रूप में स्वरोजगार स्थापित कर दिया।इससे खुद की आय तो होती ही है साथ ही ऐसे लोगों को भी रोजगार मिलता है, जो फैक्ट्रियों में दिहाड़ी-मजदूरी खोजने के लिए बाहर जाते थे। गांव के लोगों को अब गांव में ही रोजगार मिल रहा है।
क्या कहते हैं किसान
किसान कूड़ा राम ने कहा कि वह 25 साल से मशरूम की खेती कर रहे हैं। गांव के मशरूम की शुरुआत करने का श्रेय ओमप्रकाश सरपंच के बड़े भाई ईश्वर को जाता है। 36 साल पहले इस आइडिया को वह लेकर नहीं आते तो आज यहां के लोग संपन्न नहीं होते।इस बार उन्होंने 27 फीट चौड़े 70 फीट लंबे 6 शेड लगाए हैं। इस बार मशरूम का बाजार गर्म रहने की उम्मीद है। एक शेड से 10 से 12 टन कंपोस्ट आता है, जिसमें से 2.5 टन तक मशरूम आसानी से निकल जाती है। सीजन में सालभर का अच्छा खर्च निकल जाता है