एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कांग्रेस के भीतर भी और बाहर भी
कई कांग्रेसी तो यह भी दावा करते हैं कि सोनिया गांधी पहले भी हुड्डा को पसंद नहीं करती थीं लेकिन विधानसभा चुनावों में हुड्डा के पैरोकारों के कारण उन्होंने हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए हामी भर दी।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 05 Jul 2021 10:52 AM (IST)
जगदीश त्रिपाठी, पानीपत। भूपेंद्र सिंह हुड्डा। हरियाणा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष। एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रहे हैं। कांग्रेस में भले ही वह सबसे सशक्त नेता हों, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा, राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख रणदीप सुरजेवाला उन्हें चुनौती देने की कोशिश करते रहते हैं। यह बात अलग है कि अब तक हुड्डा सब पर भारी पड़ते रहे हैं।
वैसे पसंद तो हुड्डा को पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई और स्वर्गीय बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी भी नहीं करती हैं, लेकिन दोनों अपने विधानसभा क्षेत्र में प्रभावहीन होते जा रहे हैं, इसलिए हुड्डा खेमे के लिए वे चिंता का सबब नहीं। उनकी चिंता कुमारी सैलजा को लेकर है और रणदीप सुरजेवाला को लेकर। कुमारी सैलजा विधानसभा चुनाव के ठीक पहले अध्यक्ष बनाई गई थीं, इसलिए टिकट वितरण के दौरान वह अपने कुछ लोगों को टिकट दिलाने में सफल रहीं और उनके कुछ लोग जीत भी गए। लेकिन रणदीप तो पहले जींद से विधानसभा उपचुनाव हारे और फिर कैथल से अपनी ही विधानसभा सीट हार गए, फिर भी वह हुड्डा के लिए सिरदर्द पैदा करते रहते हैं।
कारण यह कि उन्हें राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों पसंद करते हैं। दोनों रणदीप को कुशल राजनीतिक और प्रतिभावान मानते हैं। किरण चौधरी की भी सोनिया गांधी तक सीधी पहुंच है। राहुल भी उनके प्रति साफ्ट कार्नर रखते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कराने के लिए जिन तेइस नेताओं ने चिट्ठी लिखी थी उसमें हुड्डा शामिल थे। जी-23 के नाम से प्रसिद्ध हो चुके इस गुट के नेता गुलाम नबी आजाद जब सोनिया गांधी की गुडबुक में होते थे तब दिल्ली दरबार में वह हुड्डा के पैरोकार होते थे। अब गुलाम नबी आजाद ही गुडबुक में नहीं हैं तो हुड्डा के होने के सवाल ही नहीं। लेकिन प्रियंका गांधी हुड्डा के फेवर में रहती हैं।
कांग्रेसी बताते हैं कि प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा के लिए हुड्डा ने बहुत कुछ किया है, इसलिए वह हमेशा हुड्डा के पक्ष में वीटो कर देती हैं। कई कांग्रेसी तो यह भी दावा करते हैं कि सोनिया गांधी पहले भी हुड्डा को पसंद नहीं करती थीं, लेकिन विधानसभा चुनावों में हुड्डा के पैरोकारों के कारण उन्होंने हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए हामी भर दी। अधिकतम टिकट भी उनकी मर्जी से बंटे। हुड्डा के जी-23 में शामिल हो जाने के बाद सोनिया उन्हें विवशता में स्वीकार कर रही हैं।
राहुल गांधी तो हुड्डा को शुरू से ही पसंद नहीं करते। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर को राहुल ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। लेकिन हुड्डा ने तंवर को ऐसे भंवरजाल में फंसाया कि वह डूब ही गए। अब हुड्डा को ले देकर प्रियंका का ही सहारा है, दूसरी तरफ उनके धुर विरोधी सैलजा और सुरजेवाला सोनिया और राहुल दोनों की गुड बुक में हैं। इसलिए दोनों के अपेक्षाकृत मजबूत जनाधार वाले हुड्डा के खिलाफ मोर्चा खोले रहते हैं।
हुड्डा पार्टी के भीतर मोर्चा खोले दोनों नेताओं से निपट रहे हैं। चौटाला की रिहाई के साथ ही उनको अब अपने जाट मतदाताओं को संजोए रखने पर भी लड़ना है। पिछले विधानसभा चुनाव में नवोदित युवा दुष्यंत चौटाला ने उन्हें तगड़ी चुनौती दी थी और दस सीटें लेकर हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के सपने को तोड़ दिया था। यद्यपि दुष्यंत के भाजपा के साथ गठबंधन कर लेने के बाद हुड्डा को लग रहा था कि अब जाट मतदाताओं के इकलौते नायक वही रह गए हैं। यह बात अलग है कि चौटाला के छोटे बेटे उन्हें चुनौती देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी चुनौती न गंभीर थी, न हुड्डा उसे गंभीरता से ले रहे थे। लेकिन अब ओमप्रकाश चौटाला मैदान में आ गए हैं। वह कभी हुड्डा से बड़े जनाधार वाले नेता थे। अब भी उनसे कमतर नहीं हैं।
ओमप्रकाश चौटाला की लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जिस दिन ओमप्रकाश चौटाला की सजा पूरी हुई उस दिन ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा था- किसानों का मसीहा आय़ा। हुड्डा को इस मोर्चे पर लड़ना है। साथ ही मानेसर लैंड और एजीएल प्लाट आवंटन घोटाले के प्रकरण कोर्ट में हैं ही। इनके साथ भाजपा-जजपा गठबंधन से तो उन्हें लड़ना ही है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।