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Kapal Mochan Mela: राजा संध के टीले पर जूते मार कर गुरुद्वारे में माथा टेकने जाते हैं श्रद्धालु, जानें प्रथा

यमुनानगर के गांव संधाय के जंगल व खेतों के बीच बने इस गुरुद्वारे के बारे में लोग बहुत कम ही जानते हैं क्योंकि यह गांव आबादी व मुख्यालय से दूर हैं। गुरु गोबिंद सिंह भंगियानी का युद्ध जीतने के बाद कपालमोचन में आए थे।

By Naveen DalalEdited By: Updated: Sun, 14 Nov 2021 08:02 PM (IST)
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कपालमोचन में सूरजकूंड सरोवर में नहाने के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। यमुनानगर के कपालमोचन मेले को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यहां से पांच किलोमीटर गांव संधाय में राजा संध के टीले पर श्रद्धालु पहुंचते हैं। वह टीले पर जूते, चप्पल मारते हैं। गालियां भी देते हैं। इसके बाद टीले के सामने गुरुद्वारे में माथा टेकने जाते हैं। हालांकि यहां तक पहुंचने की डगर भी आसान नहीं है। श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने के लिए पैदल या फिर आटो में बैठकर ही जाना पड़ता है। मेले के दौरान तो यहां फिर भी लोगों की आवाजाही है। वरना रोजमर्रा में यहां वीराना रहता है। इसके बावजूद आस्था श्रद्धालुओं को यहां खींच लाती है। पांच किलोमीटर का सफर पैदल करने में भी श्रद्धालु बिल्कुल आलस नहीं करते। टीले से थोड़ी ही दूरी पर सती माता मंदिर में भी श्रद्धालुओं की आस्था है।

गांव संधाय के जंगल व खेतों के बीच बने इस गुरुद्वारे के बारे में लोग बहुत कम ही जानते हैं, क्योंकि यह गांव, आबादी व मुख्यालय से दूर हैं। गुरु गोबिंद सिंह भंगियानी का युद्ध जीतने के बाद कपालमोचन में आए थे। वह यहां पर 52 दिन ठहरे थे। युद्ध के बाद उन्होंने कपालमोचन में आकर अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे। इसी दौरान 40 दिन तक हर रोज रात को गुरु गोबिंद सिंह संधाय गांव में तप करने जाते थे। तब इस जगह को सिंधू वन कहा जाता था। गुरु जी अपने घोड़े पर आते थे। वे घोड़े को रास्ते में बने शिव जी की बाड़ी यानि शिव मंदिर में पेड़ के नीचे बांध कर आते थे।

राजा संध के टीले को मारते हैं जूते-चप्पल

गुरुद्वारा के दाई तरफ कुछ कदम की दूरी पर मिट्टी का बहुत ऊंचा टीला है। संधाय के 81 वर्षीय जोरा सिंह का कहना है कि उनके पूर्वज बताते थे कि यह कभी राजा संध का महल हुआ करता था। एक सती के श्राप के कारण वह किला मिट्टी में तब्दील हो गया। मान्यता है कि महाभारत काल में यह स्थान सिंधू वन के नाम से प्रसिद्ध था। यहां पर अन्यायी राजा संध राज करता था। उसी के कारण यहां का नाम जरासंधाय पड़ा जो कालांतर में संधाय बन गया। राजा अपने सम्राज्य में होने वाली शादियों की डोली लूटकर संधाय स्थित राजमहल में लाकर उनकी इज्जत से खेलता था। जनता परेशान थी, लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थी। एक दिन राजा संध ने एक ऋषि कन्या सती ग्यासनी देवी पर कुदृष्टि डाली। वह उसे उठाकर अपने महल में ले गया, लेकिन वह स्नान करने का बहाना बनाकर महल से भाग निकली। राजा उसके पीछे-पीछे गया। ग्यासनी देवी ने उसे श्राप दिया कि जिस महल में वह सुहागिनों की इज्जत से खिलवाड़ करता है वह जल्द ही बर्बाद हो जाएगा। राजा से बचने के लिए वह महल के पास बने तालाब में सती हो गई। श्राप के कारण महल खंडहर में तब्दील हो गया। इसमें लगी ईंटे पांच हजार साल पुरानी बताई जाती हैं जिनका आकार 12 गुणा 12 इंच है।

बुजुर्गों से इसके बारे में सुना है

श्राइन बोर्ड के सदस्य दाता राम का कहना है कि जो श्रद्धालु गुरुद्वारा में मत्था टेकने जाते हैं वो रास्ते में पड़ने वाले इस टीले पर पत्थर, जूते, चप्पल मारते हैं। इस बात का कोई प्रमाण तो नहीं है लेकिन इस बारे में उन्होंने बुजुगों से सुना है। वहीं आदिबद्री के पुजारी विनय स्वरूप ब्रह्मचारी का कहना है कि राजा के टीले को लोग जूते क्यों मारते हैं इसका कोई प्रमाण नहीं है। यदि किसी ने कुछ गलत किया है तो हमारे शास्त्रों के अनुसार उसे सजा देने का अधिकार हमें नहीं है। उसे सजा केवल ईश्वर देता है। यह प्रमाण है कि यहां किला था।

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